tag:blogger.com,1999:blog-5300117287075212784.post3625307531962385948..comments2023-12-02T15:15:35.792+05:30Comments on वटवृक्ष: जंगल का लोकतंत्ररवीन्द्र प्रभातhttp://www.blogger.com/profile/11471859655099784046noreply@blogger.comBlogger10125tag:blogger.com,1999:blog-5300117287075212784.post-55640952306071175662012-06-22T20:26:42.808+05:302012-06-22T20:26:42.808+05:30बहुत सुन्दर ..
वर्तमान परिप्रेक्ष में भीबहुत सुन्दर ..<br />वर्तमान परिप्रेक्ष में भीM VERMAhttps://www.blogger.com/profile/10122855925525653850noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5300117287075212784.post-36593941858221253202012-06-21T16:28:23.738+05:302012-06-21T16:28:23.738+05:30बढ़िया कथा।
एक बार ऐसे ही शेर से ऊबकर जंगली जानवर...बढ़िया कथा।<br /><br />एक बार ऐसे ही शेर से ऊबकर जंगली जानवरों ने चुनाव किया और बंदर को अपना राजा घोषित कर दिया। बंदर वृक्ष की ऊँची शाख पर बैठा अपना शासन चलाता था। एक दिन शेर एक बकरी के बच्चे को उठाये लिये जा रहा था। बकरी की माँ ने राजा बने बंदर से मदद की गुहार की। बंदर ने ध्यानपुर्वक गुहार सुनी और इस शाख से उस शाख पर उछलने कूदने लगा। इतने में शेर ने बकरी के दूसरे बच्चे को भी उठा लिया। बकरी की माँ ने फिर गहार लगाई..शेर मेरे बच्चों को खाये जा रहा है..बचाओ..बचाओ...। बंदर फिर एक डाल से दूसरे डाल पर उछल कूद मचाने लगा। बकरी फिर चिल्लाई...कैसे राजा हो? अपने प्रजा की रक्षा नहीं कर पा रहे हो! इस बार शेर क्रोधित हो सबसे नीचे की शाख से लटकते हुए बकरी की माँ पर झल्लाया..<br /><br />ऐ बकरी! ज्यादा में में मत कर!! तेरे बच्चों को शेर खा रहा है यह तो मैं भी देख रहा हूँ। मगर मेरी भाग दौड़ में कोई कमी हो तो बताओ?:)देवेन्द्र पाण्डेयhttps://www.blogger.com/profile/07466843806711544757noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5300117287075212784.post-91718523873606303462012-06-21T09:30:37.004+05:302012-06-21T09:30:37.004+05:30सुखद आश्चर्य!
धन्यवाद एवं आभार !सुखद आश्चर्य!<br />धन्यवाद एवं आभार !वाणी गीतhttps://www.blogger.com/profile/01846470925557893834noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5300117287075212784.post-70151062358932177592012-06-21T09:16:49.551+05:302012-06-21T09:16:49.551+05:30और इस तरह संक्रामक बीमारी को बढ़ावा मिला - शेर अपन...और इस तरह संक्रामक बीमारी को बढ़ावा मिला - शेर अपनी जगह पर डटा रहा . इस कहानी में सीख ही सीख है ....रश्मि प्रभा...https://www.blogger.com/profile/14755956306255938813noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5300117287075212784.post-21036899463978910722012-06-20T21:21:49.367+05:302012-06-20T21:21:49.367+05:30इन्ही कीटाणुओं का भय सबको खाये जा रहा है।इन्ही कीटाणुओं का भय सबको खाये जा रहा है।प्रवीण पाण्डेयhttps://www.blogger.com/profile/10471375466909386690noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5300117287075212784.post-47177730771505889872012-06-20T17:41:22.010+05:302012-06-20T17:41:22.010+05:30बहुत सुन्दर !बहुत सुन्दर !Coralhttps://www.blogger.com/profile/18360367288330292186noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5300117287075212784.post-91597956341606784952012-06-20T15:38:51.986+05:302012-06-20T15:38:51.986+05:30बहुत सुंदर प्रेरक कथा ,,,,
MY RECENT POST:...काव्...बहुत सुंदर प्रेरक कथा ,,,,<br /><br />MY RECENT POST:...<a href="http://dheerendra11.blogspot.in/2012/06/blog-post_19.html" rel="nofollow">काव्यान्जलि ...: यह स्वर्ण पंछी था कभी...</a>धीरेन्द्र सिंह भदौरिया https://www.blogger.com/profile/09047336871751054497noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5300117287075212784.post-83569382936336043022012-06-20T12:35:49.257+05:302012-06-20T12:35:49.257+05:30बहुत बढ़िया...............
सादरबहुत बढ़िया...............<br /><br />सादरANULATA RAJ NAIRhttps://www.blogger.com/profile/02386833556494189702noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5300117287075212784.post-31795465357283477832012-06-20T12:24:29.168+05:302012-06-20T12:24:29.168+05:30बेहतरीन प्रस्तुति .. आभारबेहतरीन प्रस्तुति .. आभारसदाhttps://www.blogger.com/profile/10937633163616873911noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5300117287075212784.post-52225806322118480502012-06-20T11:42:37.176+05:302012-06-20T11:42:37.176+05:30वर्तमान राजनीति में यही हो रहा है। बहुत प्रेरक कथा...वर्तमान राजनीति में यही हो रहा है। बहुत प्रेरक कथा।अजित गुप्ता का कोनाhttps://www.blogger.com/profile/02729879703297154634noreply@blogger.com