tag:blogger.com,1999:blog-5300117287075212784.post1018461585745175..comments2023-12-02T15:15:35.792+05:30Comments on वटवृक्ष: मरने से पहलेरवीन्द्र प्रभातhttp://www.blogger.com/profile/11471859655099784046noreply@blogger.comBlogger31125tag:blogger.com,1999:blog-5300117287075212784.post-5963014828318681532010-10-29T15:23:59.348+05:302010-10-29T15:23:59.348+05:30bahut hee sundar sach...
.. bbadi khubsurti se li...bahut hee sundar sach... <br />.. bbadi khubsurti se likhi aapki rachna, kehne ke liye kuch nahi..डॉ. नूतन डिमरी गैरोला- नीतिhttps://www.blogger.com/profile/08478064367045773177noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5300117287075212784.post-87256197296570894792010-10-29T15:23:57.951+05:302010-10-29T15:23:57.951+05:30bahut hee sundar sach...
.. bbadi khubsurti se li...bahut hee sundar sach... <br />.. bbadi khubsurti se likhi aapki rachna, kehne ke liye kuch nahi..डॉ. नूतन डिमरी गैरोला- नीतिhttps://www.blogger.com/profile/08478064367045773177noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5300117287075212784.post-76437953691655638672010-10-29T15:23:56.212+05:302010-10-29T15:23:56.212+05:30bahut hee sundar sach...
.. bbadi khubsurti se li...bahut hee sundar sach... <br />.. bbadi khubsurti se likhi aapki rachna, kehne ke liye kuch nahi..डॉ. नूतन डिमरी गैरोला- नीतिhttps://www.blogger.com/profile/08478064367045773177noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5300117287075212784.post-83248612689866833502010-10-29T09:53:51.866+05:302010-10-29T09:53:51.866+05:30कठिन है, इस कविता पर कुछ कह पाना, बहुत कठिन; यह स्...कठिन है, इस कविता पर कुछ कह पाना, बहुत कठिन; यह स्पष्ट दिख रहा है कि इसपर सही प्रतिक्रिया देने के लिये कविता का तत्वज्ञान आवश्यक है । इतना जरूर कह सकता हूँ कि जिसका जीवन एक उद्देश्य के प्रति भी प्रतिबद्ध हो गया उसे सही अर्थों में जीने का कारण मिल जाता है और वह अपना जीवन सार्थक भी कर जाता है। <br />यहॉं कवि मृत्युपूर्व अपनी सुवास बिखराना चाहता है, स्वाभाविक है कि ऐसे कृत्यों के प्रति प्रतिबद्ध है जिनसे सुवास बिखरे, उन्मुक्त हँसी चाहता है तो स्वाभाविक है कि उससे ऐसे कारण भी जुड़़े होंगे जो उसे बन्धन आडम्बर रहित हँसी दे सकें, उसमें उस प्रगाढ़ प्रेम की चाह है जो हमारी संस्कृति में 'दिल से रे' के पारिवारिक संबंधों में ही संभव है, उसमें शरीर त्याग से पहले अपने अपराध स्वीकारने का साहस है, क्या-क्या नहीं है। अब सकारात्मक उद्देश्य लेकर तो जीना ही संभव है, मर नहीं सकते। लंबा मृतप्राय: जीवन जीने से अच्छा तो यही है कि जितना जियें भरपूर जियें। Live life King size.तिलक राज कपूरhttps://www.blogger.com/profile/03900942218081084081noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5300117287075212784.post-22276560380927628562010-10-28T17:59:15.311+05:302010-10-28T17:59:15.311+05:30Aapki kavita bahut hi achhi hai.
ise bar-bar padh...Aapki kavita bahut hi achhi hai.<br /><br />ise bar-bar padha ja sakta hai.russblog.comhttps://www.blogger.com/profile/08402966637612771201noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5300117287075212784.post-44287702870819653322010-10-28T15:15:53.970+05:302010-10-28T15:15:53.970+05:30marne se pahle, marna nahi chahta.....:)
kitni py...marne se pahle, marna nahi chahta.....:)<br /><br />kitni pyari baat kahi bhaiya aapne!!<br /><br />sidhe saadhe sabdo me ek behtareen rachna<br /><br />jeevan darshan ko batati ek shandaar kriti!!मुकेश कुमार सिन्हाhttps://www.blogger.com/profile/14131032296544030044noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5300117287075212784.post-17729889134305424372010-10-28T14:09:36.751+05:302010-10-28T14:09:36.751+05:30'वस्तुत: तो यह मानवीय सरोकारों की कविता है। इस...'वस्तुत: तो यह मानवीय सरोकारों की कविता है। इसमें 'मैं' को व्यक्तिवाची न देखकर व्यष्टिवाची देखने से यह व्यापक अर्थयुक्त कविता है। कवि को इस व्यापक सहृदयता के लिए बधाई।'<br />उपर्युक्त कथन में कृपया 'व्यक्तिवाची' के स्थान पर 'व्यष्टिवाची' तथा 'व्यष्टिवाची' के स्थान पर 'समष्टिवाची' पढ़ा जाय। <br />क्षमायाचना सहित।बलराम अग्रवालhttps://www.blogger.com/profile/04819113049257907444noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5300117287075212784.post-1778597147856898792010-10-28T13:34:35.803+05:302010-10-28T13:34:35.803+05:30शानदार रचना.शानदार रचना.अंजना https://www.blogger.com/profile/07031630222775453169noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5300117287075212784.post-2184354123497407642010-10-28T10:23:31.465+05:302010-10-28T10:23:31.465+05:30इतनी समझ मियां मजाल को आ जाये तो फिर वो मरे हो क्य...इतनी समझ मियां मजाल को आ जाये तो फिर वो मरे हो क्यों .....<br />अच्छी रचना, राजेश जी को बधाइयाँ ....Majaalhttps://www.blogger.com/profile/08748183678189221145noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5300117287075212784.post-50305295517224687502010-10-28T08:28:18.542+05:302010-10-28T08:28:18.542+05:30.
@--मरने से पहले क्या मरना...
एक इंसान अपने जीव....<br /><br />@--मरने से पहले क्या मरना...<br /><br />एक इंसान अपने जीवन में कई बार मरता है। और हर बार उसका एक पुनर्जन्म होता है। इस पुनर्जन्म में उसे एक नयी शक्ति, नयी चेतना, नयी दिशा, नयी उमंग और एक नया सवेरा मिलता है।<br /><br />जैसे सोना ताप कर कुंदन हो जाता है, वैसे ही जीवन में बार बार मरना एक अलौकिक व्यक्तित्व को जन्म देता है।<br /><br />आओ मृत्यु तुम्हें गले लगा लूँ ,<br />तुमको चुम्बन से भर दूँ,<br />तुमको आलिंगन में ले लूँ । <br /><br />.ZEALhttps://www.blogger.com/profile/04046257625059781313noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5300117287075212784.post-75589700634332338212010-10-28T07:51:47.954+05:302010-10-28T07:51:47.954+05:30जीवन को जी लेने की उत्कट अभिलाषा, समय का चौंधियाना...जीवन को जी लेने की उत्कट अभिलाषा, समय का चौंधियाना हमारी आँखों में, बचने का उपक्रम, छाँह ढूढ़ने का प्रयास। बहुत ही अच्छी कविता।प्रवीण पाण्डेयhttps://www.blogger.com/profile/10471375466909386690noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5300117287075212784.post-88363216245763717622010-10-28T07:38:16.656+05:302010-10-28T07:38:16.656+05:30'मरना नहीं चाहता हूं, मरने से पहले' इसीलिए...'मरना नहीं चाहता हूं, मरने से पहले' इसीलिए तो कविता बन पाई है.Rahul Singhhttps://www.blogger.com/profile/16364670995288781667noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5300117287075212784.post-79390067845342031982010-10-28T05:22:01.974+05:302010-10-28T05:22:01.974+05:30मैं मरना नहीं चाहता
मरने से पहले ...
बहुत सकारात्म...मैं मरना नहीं चाहता<br />मरने से पहले ...<br />बहुत सकारात्मक सोच ...वरना इंसान जीते रहते हैं आत्मा को मार कर ...!वाणी गीतhttps://www.blogger.com/profile/01846470925557893834noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5300117287075212784.post-41312580317048336372010-10-28T04:43:11.634+05:302010-10-28T04:43:11.634+05:30सच तो
यह है कि
मैं
मरना नहीं चाहता हूं
मरने से पह...सच तो<br />यह है कि<br />मैं<br /><br />मरना नहीं चाहता हूं<br />मरने से पहले ।<br />सकारात्मक सोच की कविता ..<br />मरने से पहले क्या मरना.M VERMAhttps://www.blogger.com/profile/10122855925525653850noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5300117287075212784.post-64429262217819608162010-10-28T00:15:36.233+05:302010-10-28T00:15:36.233+05:30वस्तुत: तो यह मानवीय सरोकारों की कविता है। इसमें &...वस्तुत: तो यह मानवीय सरोकारों की कविता है। इसमें 'मैं' को व्यक्तिवाची न देखकर व्यष्टिवाची देखने से यह व्यापक अर्थयुक्त कविता है। कवि को इस व्यापक हृदयता के लिए बधाई।बलराम अग्रवालhttps://www.blogger.com/profile/04819113049257907444noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5300117287075212784.post-76294145803655680852010-10-27T23:40:14.554+05:302010-10-27T23:40:14.554+05:30ज़िंदगी को नापने का पैमाना ही हमने बरसों का बना लिय...ज़िंदगी को नापने का पैमाना ही हमने बरसों का बना लिया है,जबकि ज़िंदगी तो बस जीने और मरने के दो खूँटे के बीच की दौड़ है. कवि ने जीवन की इस दौड़ के जिन पड़ाव का वर्णन किया है, वही जीवन को जीवन बनाते हैं और उनका न होना मृत्यु!<br />एक कहावत भी है कि ज़िंदगी लम्बी नहीं बड़ी होनी चाहिए. कवि ने इस ज़िंदगी को बड़ी बनाने की सारी अभिलाषाएँ व्यक्त कर दी हैं. और यह सिर्फ उनकी इच्छा नहीं मानवता को एक संदेश है कि<br /><b>ज़िंदगी फूलों की नहीं<br />फूलों की तरह महँकी रहे!</b><br />उत्साही जी, आपकी कविता हमेशा सीख देती है!चला बिहारी ब्लॉगर बननेhttps://www.blogger.com/profile/05849469885059634620noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5300117287075212784.post-10857627865755113602010-10-27T22:34:52.895+05:302010-10-27T22:34:52.895+05:30आत्म चिंतन के लिए आभार ,बहुत अच्छी रचना.आत्म चिंतन के लिए आभार ,बहुत अच्छी रचना.Sunil Kumarhttps://www.blogger.com/profile/10008214961660110536noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5300117287075212784.post-72750137267627778192010-10-27T22:12:24.337+05:302010-10-27T22:12:24.337+05:30राजेश भाई की कविताओं पर कुछ कहने से पहले कई बार लि...राजेश भाई की कविताओं पर कुछ कहने से पहले कई बार लिखना मिटाना पड़ता है.. कई बार कविता का पाठ करना होता है.. क्योंकि इतनी सधी हुई कविता होती है.. इतने विम्ब होते हैं कि दो पंक्तियों के बीच पूरा संसार, समाज, इतिहास छुपा होता है... यह कविता शुरू से सदहरण लगती हुई अचानक अंतिम पंक्त्यों में असाधारण हो जाती जा.. जीवन के प्रति अदम्य जिजीविषा इन पक्तियों में है.. जहाँ आज के समय में जब मूल्य बदल रहे हैं, जीवन के मायने बदल रहे हैं.. एक संक्रमण काल से गुजर रहे हैं हम.. खास तौर पर मानसिक स्तर पर.. हम हर पल किसी ना किसी तरह मर रहे हैं.. ऐसे में यह कविता जीवन के प्रति प्रतिबद्धित दिखती है... कि <br />"मरना नहीं चाहता हूं<br />मरने से पहले"अरुण चन्द्र रॉयhttps://www.blogger.com/profile/01508172003645967041noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5300117287075212784.post-60656913355367597452010-10-27T20:39:49.281+05:302010-10-27T20:39:49.281+05:30..अंतिम पंक्तियों में कविता अपने पत्ते खोलती है।
स.....अंतिम पंक्तियों में कविता अपने पत्ते खोलती है।<br />सच तो<br />यह है कि<br />मैं<br />मरना नहीं चाहता हूं<br />मरने से पहले<br />..एक सशक्त कविता।देवेन्द्र पाण्डेयhttps://www.blogger.com/profile/07466843806711544757noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5300117287075212784.post-45409234242129890042010-10-27T19:38:21.522+05:302010-10-27T19:38:21.522+05:30बाऊ जी,
नमस्ते!
कविता अच्छी है....
लेकिन जिन पंक्त...बाऊ जी,<br />नमस्ते!<br />कविता अच्छी है....<br />लेकिन जिन पंक्तियों ने इसमें ना भूलने वाला तड़का लगा दिया है, वो हैं:<br />सच तो<br />यह है कि<br />मैं<br />मरना नहीं चाहता हूं<br />मरने से पहले...<br />स्वाद आ गया!<br />जुग-जुग जियो ना जियो, मगर जब तक जियो जी भर जियो!<br />आपका भी,<br />आशीषसूफ़ी आशीष/ ਸੂਫ਼ੀ ਆਸ਼ੀਸ਼https://www.blogger.com/profile/11282838704446252275noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5300117287075212784.post-78149248885407573352010-10-27T18:59:39.838+05:302010-10-27T18:59:39.838+05:30सच तो
यह है कि
मैं
मरना नहीं चाहता हूं
मरने से पहल...सच तो<br />यह है कि<br />मैं<br />मरना नहीं चाहता हूं<br />मरने से पहले...<br />बहुत उम्दा कविता है<br />राजेश जी, बधाई.शाहिद मिर्ज़ा ''शाहिद''https://www.blogger.com/profile/09169582610976061788noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5300117287075212784.post-29202456239078691322010-10-27T18:20:29.279+05:302010-10-27T18:20:29.279+05:30आपकी पोस्ट की पहली लाईन ने ही आईना दिखा दियाआपकी पोस्ट की पहली लाईन ने ही आईना दिखा दियासंजय भास्कर https://www.blogger.com/profile/08195795661130888170noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5300117287075212784.post-22096730952558552252010-10-27T18:19:17.436+05:302010-10-27T18:19:17.436+05:30मैं
चेतना शून्य होने से पहले
सोना चाहता हूं
रात भ...मैं<br />चेतना शून्य होने से पहले<br />सोना चाहता हूं<br />रात भर इत्मीनान से<br />ताकि न रहे उनींदापन<br />.... बेहद सुन्दर दार्शनिक भाव में किया आत्म चिंतन के लिए आभार ...कविता रावत https://www.blogger.com/profile/17910538120058683581noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5300117287075212784.post-24067419601456620172010-10-27T18:18:47.456+05:302010-10-27T18:18:47.456+05:30सकारात्मक सोच
कविता में कुछ पंक्तियां विशेष रूप स...सकारात्मक सोच <br />कविता में कुछ पंक्तियां विशेष रूप से अच्छी लगती हैं,कौन सी पंक्तियाँ छोड़ी जायें, यही मुश्किल है।<br />बहुत शानदार, आभार स्वीकारें।संजय भास्कर https://www.blogger.com/profile/08195795661130888170noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5300117287075212784.post-39470375096897139692010-10-27T18:09:00.440+05:302010-10-27T18:09:00.440+05:30बहुत सुंदर...बहुत सुंदर...अजित वडनेरकरhttps://www.blogger.com/profile/11364804684091635102noreply@blogger.com