नीरज गोस्वामी
मुम्बई, महाराष्ट्र, India
अपनी जिन्दगी से संतुष्ट,संवेदनशील किंतु हर स्थिति में हास्य देखने की प्रवृत्ति.जीवन के अधिकांश वर्ष जयपुर में गुजारने के बाद फिलहाल भूषण स्टील
मुंबई में कार्यरत,कल का पता नहीं।लेखन स्वान्त सुखाय के लिए.
Friday, September 21, 2007
जो सुकूं गाँव के मकान में है
वो ना महलों की ऊंची शान में है
जो सुकूं गांव के मकान में है
जब चढ़ा साथ तब ज़माना था
अब अकेला खडा ढलान में है
हम को बस हौसला परखना था
तू चला तीर जो कमान में है
लूटा उसने ही सारी फसलों को
हमने समझा जिसे मचान में है
बोल कर सच हुए हैं शर्मिंदा
क्या करें मर्ज़ खानदान में है
जिसको बाहर है खोजता फिरता
वो ही हीरा तेरी खदान में है
जिक्र तेरा ही हर कहीँ " नीरज"
जब तलक गुड तेरी ज़बान में है
बहुत ख़ूब नीरज भैया
ReplyDeleteबहुत ख़ूब , गाँव के मकान में अब भी मन बसता है।
ReplyDeleteसच गाँव के मिटटी के घर में जो शांति वो कंक्रीट के जंगल में कहाँ
ReplyDeletenew postक्षणिकाएँ
bahut badhiya ...
ReplyDeleteNiraj ji ko hamesha padhate hain ...!!
जिसको बाहर है खोजता फिरता
ReplyDeleteवो ही हीरा तेरी खदान में है
नीरज जी का लेखन तो हमेशा ही सारगर्भित होता है।
नीरज जी किसी परिचय के मुहताज कहाँ हैं ... उनकी लाजवाब गजलें अपने अआप में उनका परिचय हैं ...
ReplyDeleteगोस्वामी जी! आप का जबाब नहीं ,दिल की गहराईयों से लिखते हैं .....बहुत समृद्ध लेखन ....बहुत -२ शुभकामनाएं
ReplyDeleteहम को बस हौसला परखना था
ReplyDeleteतू चला तीर जो कमान में है
नीरज जी की रचनाएं तो हमेशा ही काबिले तारीफ होती हैं
जब चढ़ा साथ तब ज़माना था
ReplyDeleteअब अकेला खडा ढलान में है
इन पंक्तियों के लिए कोटिश: बधाइयाँ.......
गाँव की यादे ऐसी ही होती है 50 साल पुराने मीठे लम्हे अभी भी चित्र की तरह अंकित है दिमाग में भुलाये नहीं भूलते ।
ReplyDeleteसुन्दर ।