लिखो ........ तब तक प्रकृति झकझोरती है
हवा में सरसराती प्राणवायु थरथराती है 
सूर्य भी शीतलता की मांग करता है ............... लिखो,लिखो,लिखो 



रश्मि प्रभा 

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मुझे लिखने दो , कि
सूर्य चुरा लेता है
अपनी किरणें
और नहीं भेजता उन्हें
अवनितल पर ।
हवाएं नहीं लेती अब
ठंडी गर्म सांसे
इसलिए नहीं मिलती ताजगी
प्रभात में
अब नहीं मिलती
शीतलता पेड़ों तले
क्योंकि वे चुरा लिए हैं
अपनी गहन हरियाली
और लीन हो गये हैं
ठूंठ होने की साधना में ।
मेघ नहीं बरसते समय से
पी गये हैं
अपना  स्वच्छ जल
कभी -कभार बरस पड़ते हैं
मुंह चियारे धरती के सीने पर
सायनाइड -सा जल ।
कुम्हार रखता है
गीली मिट्टी,अपने चाक पर
चाक खा जाता है,सारी मिट्टी
नहीं मिल पाते बर्तन
दीपावली व छठ पूजन के दिन
बच्चे नहीं बजा पाते भोंपा
लड़कियां नहीं खेल पाती हैं
चाकी - जांता का खेल ।
नदी सोख लेती है
अपना जल और
सुखा डालती है
लहलहाती फसल
मरियल फसल की मड़ायी में
लील लेते हैं,थ्रेसर
भूसा रखा जाताहै
सहेज कर
नाद चबा डालती है
पशुओं का सारा भूसा
गिन सकते हैं
अंकगणित के नियम से
बैलों की सारी हड्डियां ।
थाली हजम कर जाती है
परोसा हुआ भोजन
किसान तड़प जाता है
एक दाने के लिए
गृहिणी ठिठुर जाती है
अपने स्तन से चिपकाये
छुधमुंहे बच्चे के साथ , तब
जाड़े की कातिल गहन रात्री में
बच्चे के धंसे हुए गाल
पीठ से बातें करती हई अंतड़ियां
सूखे रेतों से भरी हुई आंखें
प्रतीक्षा करती हैं प्रभात में
क्षितिज के ऊपर चढ़ते
सूर्य की एकटक।
मेरा फोटो

आरसी चौहान 

8 comments:

  1. आरसी चौहान ji bahut achchhi kavita

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  2. बहुत गहन भाव..

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  3. हवाएं नहीं लेती अब
    ठंडी गर्म सांसे
    इसलिए नहीं मिलती ताजगी
    प्रभात में
    अब नहीं मिलती
    शीतलता पेड़ों तले
    क्योंकि वे चुरा लिए हैं
    अपनी गहन हरियाली
    और लीन हो गये हैं
    ठूंठ होने की साधना में ।
    बेहतरीन अभिव्‍यक्ति ....

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  4. बहुत मार्मिक और संवेदनशील कविता।

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  5. रह ना जाए असर बाकी ......... कुछ रह ना जाए कसर बाकी ........ सब लिख ईच्छा पूरी कर लेनी चाहिए !!

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  6. भावनात्मक अभिव्यक्ति ..आभार

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