शब्दों के हिंसक प्रयोग से अधिक 
यह आत्मा का रुदन है 
आंसू सूख भी गए 
तो लकीरें काफी हैं 
इंसानियत को जगाने के लिए ........

 रश्मि प्रभा 



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जानती थी मैं
जीवन एक  संघर्ष है ,
हर युद्ध के पहले
युद्ध की घोषणा करना पड़ता है।
पर पशुयों को यह नियम पता कहाँ ?
बिना चेतावनी के मुझ पर हमला किया ,
हिम्मत नहीं हारा मैंने ,संघर्ष किया
पूरी शक्ति से,
अपने को बचने के लिए
उन नर पशुयों से।
जब तक थी चेतना  लडती रही,
चेतना हीन हुआ जब शरीर
क्षत -विक्षत किया
व्यभिचार किया
अपवित्र किया
फिर फेंक दिया मेरा मृतमान शरीर ,
घृणा ,वितृष्णा से
मैंने छोड़ दिया शरीर ।
मैंने देखा, सहा
दुराचारियों का अत्याचार ,
दुःख है मुझे ...
धर्म के ठेकेदार मुझे ही मानते हैं जिम्मेदार ।
पूछती हूँ तुमसे ऐ छद्मवेशी !
बोलो दिलपर हाथ रखकर
"क्या मानते उनको जिम्मेदार
यदि तुम्हारी बीबी, बेटी से होता बलात्कार ?"
बलात्कारी की न माँ , न बहन ,न बेटी होती है ,
हवस के अंधे के सामने ,केवल एक औरत होती है।
ठेकेदारों !
धरम के आड़ लेकर शोषण किया नारी को
सती बताकर शांत किया
अहल्या ,दौपदी, कुन्ती ,तारा , मन्दोदरी को।
नहीं बनना सीता , न ऐसी सती
न सुनना है धर्म की दुहाई ,
जितना किया है शोषण अबतक
करना होगा उसकी भरपाई।
देवी बनाकर किया पूजा ,
बनाकर पत्थर,मिटटी की मूरत ,
बना दिया गूंगी, बहरी ,अंधी,
अबला और अनपढ़ मुरख।
नहीं सहेगी कोई अत्याचार अब
अबला नहीं नारी,
छोड़ लज्जा का आभूषण
अब उठा लिया तलवारी।
शब्दों के भूल-भुलैया में
अब न फँसेगी  नारी ,
धर्म का हो या समाज का
अन्धविश्वास का खात्मा है जरुरी।
सती .........?    देवी ...........?
छलना नहीं तो और क्या है ?
सदियों से नारी का शोषण
ठेकेदारों ने ऐसा ही किया है।
थी मैं अनाम ,हूँ मैं अनाम
निर्भय ,किसीने कहा मुझे दामिनी
बहनों  ! जागो ,उठो ,लड़ो , निर्भय हो
मांगो  न्याय ,तुम ही हो दामिनी।
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कालीपद "प्रसाद"

8 comments:

  1. *बहनों ! जागो ,उठो ,लड़ो , निर्भय हो
    मांगो न्याय ,तुम ही हो दामिनी।

    आपका किया हुआ कोई काम महत्वहीन हो सकता है ,लेकिन सबसे महत्वपूर्ण यह है कि आप कुछ करें ............

    शारीरिक क्षमता से सामर्थ्य नहीं आती है ।।
    इसका संचार अदम्य इच्छा शक्ति से होता है ।।


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  2. बहुत प्रभावी और मार्मिक अभिव्यक्ति...

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  3. marmik post rashmi ji , yah kasak hraday me rah jayegi , na bach saki daaamini , par har baala ab awaj uthayegi

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  4. दिल को छू लेने वाली सार्थक अभिव्यक्ति

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  5. बहुत सार्थक और मार्मिक अभिव्यक्ति.आभार

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  6. दिल को छू लेने वाली मार्मिक पोस्ट...

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  7. दमन करने वाली पिपासा को निर्भय होकर लड़ना चाहिये..

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  8. वटवृक्ष में मेरी रचना को स्थान देने लिए धन्यवाद रश्मि प्रभाजी .सभी पाठकों का आभार .

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