मैं तुमसे हर रिश्ता निभाना चाहती हूँ 
क्या तुम चाहते हो ?




रश्मि प्रभा 
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मेरी उंगलियाँ तुम्हारे अंगूठे को
कस कर पकड़ लेती थीं .
सिर उठा कर देखती थी तुम्हें फख्र से ,
तुम्हारी लायी गुलाबी फ्रॉक में ...
तुम्हारे क़दमों से कदम मिला कर चलते हुए
मुझे लगता ,  दुनिया मेरे नन्हे पैरों के नीचे है .
तुम मेरा पहला प्यार थे .

लडती रहती तुम से बराबरी के लिए
और फिर
चुपचाप अपना हिस्सा तुम्हें दे देती  ...
मेरी हर बेवकूफी
हर शरारत के बराबर के हिस्सेदार ...
तुम्हें , मैं पूरे हक से याद दिलाती
हर झगडे पर 
कि मुझसे लड़ना नहीं
तुम्हारा काम है मेरी रक्षा करना ...
तुम मेरे सबसे पहले दोस्त  .

तुम से ही सीखा खुद को पहचानना ,
और जाना ,
कि ज़िन्दगी हद से ज्यादा खूबसूरत है .
खूबसूरत हूँ मैं ,
खूबसूरत हैं वो पल जो बीतते हैं तुम्हारे साथ .
तुम से ही सीखी
वो भाषा ,
जो शब्दों की मोहताज नहीं होती ...
तुमसे ही मिला पूरा होने का एहसास .

और
मेरे ही शरीर से उगे ,
मेरे ही खून से सिंचे ,
मेरे ही दूध पर पले ,
नन्हे से तुम !
जब नींद में मुस्काते
निहाल हो उठती मैं .
तुम सोते ... मैं रात - रात भर जागती .
तुम्हारी हर चोट का दर्द मैंने झेला
तुम ... मेरी उम्मीद , मेरा गर्व .

मैं
अब भी ..
तुम से प्यार करना चाहती हूँ .

उतार फेंको ये खौफनाक मुखौटे ...
बुझाओ ये अन्धेरा ...कि
मैं झाँकना चाहती हूँ
तुम्हारी आँखों के अन्दर ,
और देखना चाहती हूँ वहां
खुद को मुस्कुराते .

मैं हरगिज़ नहीं चाहती
तुम्हें प्यार करने के लिए
कभी भी
होना पड़े मुझे शर्मिन्दा .
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- मीता .

4 comments:

  1. मैं हरगिज़ नहीं चाहती
    तुम्हें प्यार करने के लिए
    कभी भी
    होना पड़े मुझे शर्मिन्दा .
    गहन भाव लिये .. सशक्‍त रचना
    आभार

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  2. मैं हरगिज़ नहीं चाहती
    तुम्हें प्यार करने के लिए
    कभी भी
    होना पड़े मुझे शर्मिन्दा .

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  3. पिता - पति - पुत्र स्त्री के तीन आयाम ..
    और
    एक स्त्री ख़ुद पाती दर्जा दोयम .... !!

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