हम क्या थे,हम क्या हो गए 
इसे उसे दोष देते हुए 
अपनी ही मंडी में नीलाम हो गए !
देश के लिए बने गीत जब ज़ुबान से निकलते थे 
देश से जुड़े होने का गर्व होता था ....
इतने विष बाण चले 
........ अब अपनी सोच पर तरस आता है
कुछ बताने सुनने से हम कतराने लगे हैं !!!

 
रश्मि प्रभा 



=============================================================
जहां प्यार करने के लिए
दिल होने से ज्यादा गुंडा होना ज़रूरी है |
जहां ‘सत्य’ शब्द का इस्तेमाल
केवल अर्थी ले जाने पर किया जाता है |
जहां का राष्ट्रीय पशु कीचड़ में रहता है |
और राष्ट्रीय पुष्प भी कीचड़ में ही बहता है |
जहां के डॉक्टर थर्मामीटर पढ़ना नहीं जानते
और कुत्ते अपने बच्चों को नहीं पहचानते |
जहां का हर चोर प्रधानमंत्री बनना चाहता है |
और हर नेता अभिनेता; और हर अभिनेता नेता |
जहां की आज़ादी का जशन
ढोल ताशों संग मनाया जाता है
और अगले रोज़ गटर में बहता तिरंगा पाया जाता है |
जहां टीवी, रेडियो, फ्रीज रिश्ते तय करते हैं
और लड़की के हाथ की लकीरों को फाड़कर
उसमे खून की मेहंदी रच दी जाती है |
जहां के सरहद निर्दोषों के खून से रंग दिए जाते हैं
सीज़फायर के लिए |
जहां के श्रेष्ठ अस्पताल में मरीज़ मर जाता है
क्योंकि उसे रक्तदान करने वाला सूई से डर जाता है |
जहां के मजूर भूखे पेट मर जाते हैं
और उसके मालिक के कुत्ते बिस्कुट खाने से मुकर जाते हैं |
जहां के मध्यम वर्गीय लोग साले मरते न जीते हैं
खूंटे पर अपनी इज्ज़त को टांग, अपना ही खून पीते हैं |
जहां का बेटा प्यार में औन्धे मुंह इस कदर गड़ जाता है
माता पिता के सपनों से खेल, काठ सा अकड़ जाता है |
जहां लड़की के जन्म पर शोकगीत गाई जाती है
फिर उसके मौत पर गरीबों में कचौड़ी खिलाई जाती है
जहां मिट्टी के कीड़े, मिट्टी खाकर, मिट्टी उगलते हैं
फिर उसी मिट्टी पर छाती के बल चलते हैं |
जहां कागज़ पर क्षणों में फसल उगाए जाते हैं |
और उसी कागज़ में आगे कहीं वे
गरीबों में जिजीविषा भी बंटवाते हैं |
जहां चीख की भाषा छिछोरी हो गयी है
लेटेस्ट फैशन गालियों का है |
उस नपुंसक किन्तु सभ्य समाज में
कुछ कुत्तों के बीच घिरा अकेला कुत्ता
फिर भी चीखता है -
” घिन्न होती है सोचते हुए कि
छुटपन में मैंने कभी गाया था -
सारे जहाँ से अच्छा… “




सौरभ रॉय 

7 comments:

  1. ” घिन्न होती है सोचते हुए कि
    छुटपन में मैंने कभी गाया था -
    सारे जहाँ से अच्छा… “
    !!

    ReplyDelete
  2. हकीकत से मिलवा दिया …………झन्नाटेदार तमाचा है

    ReplyDelete
  3. उफ़..इतनी निराशा..सेहत के लिए अच्छी नहीं है..

    ReplyDelete
  4. सच है ! परन्तु संतुलित जीवन के लिए कालीरात में भी सुबह का इन्तेजार करना पड़ता है.
    New post तुम ही हो दामिनी।

    ReplyDelete
  5. सच दिखा दिया..बहुत बढ़िया.

    ReplyDelete

 
Top