टुकड़े टुकड़े दर्द 
शीशे की किरचनों सी 
कहाँ ले पाती हूँ सारी चुभन !!!



रश्मि प्रभा 
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समंदर मैंने देखे हैं,
मगर बहुत दूर से,
उसकी गहराई में 
डूबकर नहीं देखा।

रेत के किनारों को
भी देखा है,
मगर बहुत दूर से
उन्हें छू कर नहीं देखा।

हाथ से फिसलती रेत
सुना तो बहुत है
अहसास मगर कभी
इसका करके नहीं देखा.

हाँ
एक और समंदर
जो हर जीवन में
अनदेखा पर
अहसासों में रहा करता है।
उस समंदर में
डूबने के अहसास को
जिया है मैंने ।

वे समंदर
ग़मों, कष्टों औ' पीड़ा के
होते है।
जो हर दिल की
पहुँच से बहुत दूर
होते हैं।

उस समंदर में
डूबते हुए
पल पल मरने
का अहसास
किया है मैंने।

हाथ से फिसलती हुई
एक
जिन्दगी को
न रोक पाने
की मजबूरी के जहर
का स्वाद
लिया है मैंने ।

पल पल किसी को
मौत के मुंह जाने के
दारुण दुःख के 
अहसास को
जिया है मैंने।

हम नाकाम,
नकारा, बेबस से
उन्हें मरता हुआ
देखते रहे चुपचाप।

उन्हें पीड़ा सहते हुए देख
उन पीड़ाओं को
न बाँट पाने की विवशता के
विष को पिया है मैंने।
हाँ
हम कठपुतली के तरह
नाचते रहे
औ' भवितव्यता ने
अपना काम कर दिया।
उन्हें मुक्ति कष्टों से दे दी।
औ' हम
उन कष्टों की यादों को
हाथ से फिसलती हुई
रेत की तरह
आज भी छोड़ नहीं पाये हैं.

[main2.jpg]



रेखा श्रीवास्तव 

9 comments:

  1. हम नाकाम,
    नकारा, बेबस से
    उन्हें मरता हुआ
    देखते रहे चुपचाप।



    शब्द कहे कभी जाते हैं और वे अपने सार्थकता कभी नहीं खोते हैं . आज आपने जो कविता वटवृक्ष के लिए ली वह फिर आज दर्द को दे गयी और आज ही किसी बहुत अपने को खोया है।

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  2. पल पल किसी को
    मौत के मुंह जाने के
    दारुण दुःख के
    अहसास को
    जिया है मैंने।

    ....बहुत मार्मिक..

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  3. नववर्ष की हार्दिक शुभकामनाएं. सार्थक प्रस्तुति . हार्दिक आभार हम हिंदी चिट्ठाकार हैं

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  4. हाथ से फिसलती हुई
    एक
    जिन्दगी को
    न रोक पाने
    की मजबूरी के जहर
    का स्वाद
    लिया है मैंने ।


    पल पल किसी को
    मौत के मुंह जाने के
    दारुण दुःख के
    अहसास को
    जिया है मैंने।

    मैंने जिया है !!

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  5. प्रभावी लेखनी,
    नव वर्ष मंगलमय हो,
    बधाई !!

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  6. दर्द की चीख
    निकलती है जब
    घुटती साँसे
    ...

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  7. bahut shanadaar rekha di..:)
    सुना था इक्कीस दिसम्बर को धरती होगी खत्म
    पर पाँच दिन पहले ही दिखाया दरिंदों ने रूप क्रूरतम
    छलक गई आँखें, लगा इंतेहा है ये सितम
    फिर सोचा, चलो आया नया साल
    जो बिता, भूलो, रहें खुशहाल
    पर आ रही थी, अंतरात्मा की आवाज
    उस ज़िंदादिल युवती की कसम
    उसके दर्द और आहों की कसम
    हर ऐसे जिल्लत से गुजरने वाली
    नारी के आबरू की कसम
    जीवांदायिनी माँ की कसम, बहन की कसम
    दिल मे बसने वाली प्रेयसी की कसम
    उसे रखना तब तक याद
    जब तक उसके आँसू का मिले न हिसाब
    जब तक हर नारी न हो जाए सक्षम
    जब तक की हम स्त्री-पुरुष मे कोई न हो कम
    हम में न रहे अहम,
    मिल कर ऐसी सुंदर बगिया बनाएँगे हम !!!!
    नए वर्ष मे नए सोच के साथ शुभकामनायें.....
    .
    http://jindagikeerahen.blogspot.in/2012/12/blog-post_31.html#.UOLFUeRJOT8

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  8. नववर्ष की हार्दिक शुभकामनाएं

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  9. उन्हें पीड़ा सहते हुए देख
    उन पीड़ाओं को
    न बाँट पाने की विवशता के
    विष को पिया है मैंने।
    हाँ
    हम कठपुतली के तरह
    नाचते रहे
    औ' भवितव्यता ने
    अपना काम कर दिया।
    उन्हें मुक्ति कष्टों से दे दी।
    औ' हम
    उन कष्टों की यादों को
    हाथ से फिसलती हुई
    रेत की तरह
    आज भी छोड़ नहीं पाये हैं.

    ..बेहद मर्मस्पर्शी रचना ....

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