पिछली सर्दियों में
बड़ी गरमाई थी....

पैबन्दों के समान
वक्त के छोटे टुकड़े
साथ बिताये थे जो तुम्हारे,
पिछले जाड़ों में
टांक लिए थे एक 'शाल' में
मैंने उनको!

इस जाड़े तक
जाने कैसे
जाने कब
शाल अब  उधड़ी सी दिखती है
कही सिलाई खुली
कही धागे टूटे
ठीक मेरी तुम्हारी तरह!

इस जाड़े में
यादों की शाल
शीत रही है मन को
.... जाने कब
वो गरमाहट लौटेगी
.... जाने कब
हम तुम साथ बैठ
ओढ़ेगे स्नेह की शाल
.... जाने कब
यादों के पैबन्दों पर न टिका होगा
कोई मौसम!

******
My Photo

शैफाली गुप्ता

10 comments:

  1. मंगलमय नव वर्ष हो, फैले धवल उजास ।
    आस पूर्ण होवें सभी, बढ़े आत्म-विश्वास ।

    बढ़े आत्म-विश्वास, रास सन तेरह आये ।
    शुभ शुभ हो हर घड़ी, जिन्दगी नित मुस्काये ।

    रविकर की कामना, चतुर्दिक प्रेम हर्ष हो ।
    सुख-शान्ति सौहार्द, मंगलमय नव वर्ष हो ।।

    ReplyDelete
  2. .... जाने कब
    यादों के पैबन्दों पर न टिका होगा
    कोई मौसम!
    अनुपम भाव संयोजित किये हैं आपने ...

    ReplyDelete
  3. .... जाने कब
    हम तुम साथ बैठ
    ओढ़ेगे स्नेह की शाल
    .... जाने कब
    यादों के पैबन्दों पर न टिका होगा
    कोई मौसम!
    God Bless U ..... !!

    ReplyDelete
  4. इस जाड़े में
    यादों की शाल
    शीत रही है मन को
    .... जाने कब
    वो गरमाहट लौटेगी
    .... जाने कब
    हम तुम साथ बैठ
    ओढ़ेगे स्नेह की शाल
    .... जाने कब
    यादों के पैबन्दों पर न टिका होगा
    कोई मौसम!



    बहुत सुंदर अभिव्यक्ति ......

    ReplyDelete
  5. सुन्दर अभिव्यक्ति

    ReplyDelete
  6. सुन्दर अभिव्यक्ति

    ReplyDelete
  7. सुन्दर अभिव्यक्ति

    ReplyDelete
  8. बहुत खूबसूरत...

    ख्याल और साथ गर्म रहे तो मौसम की क्या मजाल कि अहसासों के शॉल से जीत जाए..

    बधाई,
    विश्व दीपक

    ReplyDelete
  9. बेहतरीन...!!तुम्हें पढ़ना ,मुझे अच्छा लगता है,शैफाली.
    सीधे सादे शब्द ...दिल में उतर जाते हैं.
    कभी कभार..इन यादों के पैबंद के सहारे ही ...लोग सारी ज़िंदगी गुज़ार देते हैं..
    पर,हाँ...यादें नित नयी होती रहे...उनमें खज़ाना जुडता रहे...साथ होने से,पास होने से...तो क्या बात है.

    ReplyDelete

 
Top