कौन कहाँ कितना मुर्ख बना रहा है 
अब तो न कोई दावा रहा, न खुद पर ही भरोसा ...

रश्मि प्रभा 
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मैं भी एक विज्ञान का छात्र रहा हूँ। वही विज्ञान जिसके बारे में कहा जाता है कि विशिष्ट रूप से संचित, सुव्यवस्थित एवं क्रमवद्ध ज्ञान को विज्ञान कहते हैं।

जैसे वैज्ञानिकों की दृष्टि में धर्म आदि में कही गई बातें अतथ्यपरक एवं औचित्यहीन हैं वैसे ही मुझे लगता है कि विज्ञान अपने आप में एक ढकोसला है। हाँ अगर विज्ञान को एक विशुद्ध ज्ञान के रूप में देखा जाए तो सर्वप्रथम धार्मिक पुस्तकों यानि वेद आदि को विज्ञान की श्रेणी में रखना उचित है।

बराबर ये सुना करता हूँ कि आज विज्ञान बहुत आगे है। नई-नई खोजें करके मानव जीवन में क्रांति ला रहा है। हर एक क्षेत्र में विज्ञान ने बहुत उन्नति कर ली है। अरे मुझे तो आधुनिक विज्ञान की उन्नति दिखाई नहीं देती। ये तो धर्म-ग्रंथों के आधार पर ही उसी में से कुछ विचार, चीज आदि लेकर परोस देता है और कहता है कि यह नया आविष्कार, नई खोज है।

हँसी आती है मुझे इस आधुनिक विज्ञान पर। मैं तो सिर्फ इतना जानता हूँ कि आधुनिक विज्ञान हमारे धर्म-ग्रंथों में से ही कुछ चुराकर उसे नए रूप में प्रस्तुत कर वाहवाही लुटता है। आप खुद ही आधुनिक युग के विज्ञान की सतयुग, त्रेता आदि के विज्ञान से तुलना करेंगे तो पाएँगे कि आधुनिक विज्ञान तो रत्तीमात्र भी नहीं है इन युगों के विज्ञान के आगे। यहाँ विज्ञान की परिभाषा आधुनिक युग के विज्ञान की नहीं है अपितु मैं विशुद्ध ज्ञान की बात कर रहा हूँ।

विज्ञान कहता है कि जल का निर्माण हाइड्रोजन और आक्सीजन के मिलने से हुआ है तो फिर जल को लेकर इतनी चिंता क्यों? विज्ञान क्यों नहीं हाइड्रोजन एवं आक्सीजन को मिलाकर जल बना लेता है। अति तो तब हो जाती है कि जब विज्ञान कहता है कि जलीय जंतु जल में मिली आक्सीजन को ग्रहण करते हैं। भाई विज्ञानजी, अगर ऐसा है तो एक छोटे से तालाब में जिसमें बहुत सारी मछलियाँ रहती हैं उसके जल का विघटन क्यों नहीं हो जाता। मछलियों द्वारा बार-बार आक्सीजन लेने से उस तालाब में आक्सीजन की कमी हो जानी चाहिए और हाँ जल की भी। भाई विज्ञान वही मछली जल से बाहर आते ही कुछ क्षणों में अपना प्राण क्यों त्याग देती है, क्या उसको जल के बाहर आक्सीजन नहीं मिलती। सच तो यह है कि मछली को जीवित रहने के लिए जल की ही आवश्यकता है नहीं की आक्सीजन की अस्तु उसे आप मानव की तरह आक्सीजन देकर जिंदा नहीं रख सकते। धार्मिक ग्रंथों में जो लिखा है कि जल एक तत्त्व है मैं बस उसी को सही मानता हूँ। 

विज्ञान बाबा, क्या आपको पता है कि पौराणिक काल में भी आपरेशन होते थे। कायाकल्प होते थे। सर्जरी द्वारा भगवान गणेश के सिर पर हाथी का सिर जोड़ दिया गया था। तो क्या वह विज्ञान नहीं था या उस समय के लोग वैज्ञानिक नहीं थे। पुष्पक विमान के बारे में आपने तो सुना होगा ही विज्ञान बाबा जिसकी तुलना आपके आधुनिक जहाज से करना मुर्खता होगी। विज्ञान विज्ञान की रट लगाना गलत नहीं है पर धार्मिक बातों को झुठलाना गलत है। वास्तव में विज्ञान की बातें ही धर्मग्रंथो में दी गई है। विज्ञान जीवन को सुखमय, शांतिमय बनाने के लिए होता है जो ये धर्मग्रंथ करते आ रहे हैं। विज्ञान का अनुकरण कर कोई चोर हो सकता है, असभ्य हो सकता है पर इन धर्मग्रंथों का अनुकरण करके कदापि नहीं।

अरे भाई विज्ञान, पहले आप भी बोलते थे कि ग्रह नौ हैं और हमारा धर्म-शास्त्र तो युगों-युगों से बोलता आ रहा है कि ग्रह नौ हैं। हाँ पता नहीं कहाँ से आपने मन में आ गया कि अब ग्रह नौ नहीं आठ ही हैं तो वैज्ञानिक जनता भी बोलने लगी की ग्रह आठ हैं। पता नहीं क्यों लोग बोलते हैं कि धर्म-ग्रंथों में जो कहानियाँ दी गई हैं, जो लेख दिए गए हैं उनकी प्रमाणिकता पर संदेह है क्योंकि इनके बारे में प्रमाणिक जानकारी नहीं मिलती। तो भाई वैज्ञानिक जनता, मैं कहता हूँ कि ये आधुनिक विज्ञान जो नई-नई कथित आविष्कार, खोजें आदि कर रहा है क्या उसका प्रमाण आप के पास है। यहाँ पर भी तो आप उस कथित वैज्ञानिक की बातें ही मान रहे हैं। अगर वैज्ञानिक बोलता है कि पृथ्वी चपटी नहीं गोल है तो आप मान लेते हो। हो सकता है कि उस विज्ञान द्वारा लिया गया पृथ्वी का चित्र न होकर किसी और चीज का हो पर आप आँख बंद करके विश्वास कर लेते हो। आधुनिक विज्ञान ने बोल दिया की सूर्य स्थिर है तो आपने मान लिया। अच्छी बात है पर आप किस आधार पर कह सकते हैं कि सूर्य स्थिर है यह सदा सत्य है। अगर ग्रह नौ से आठ हो सकते हैं तो कल यही विज्ञान यह भी बोल सकता है कि सूर्य स्थिर नहीं घूमता है। जब विज्ञान अपनी ही बातों पर सहमति नहीं दे सकता तो हम इस पर विश्वास क्यों कर लें। धर्म-शास्त्रों में दी गई बातें तर्क पर आधारित हैं इसमें कोई दो-राय नहीं। हाँ इसके लिए आपको गहराई से चिंतन करने की आवश्यकता है बस। विज्ञान का मतलब विशुद्ध ज्ञान से है और वह ज्ञान इन कथित विज्ञान की पुस्तकों में नहीं अपितु गहरी खोज के बाद, चिंतन-मनन के बाद, परिशुद्ध सत्य पर आधारित हमारे धर्मग्रंथों में हैं। हाँ मैं यह मानता हूँ कि कुछ धर्म-ग्रंथों में भी कुछ ऐसी बातें हैं जो अतिश्योक्ति हैं पर इनमें इन ग्रंथों, अपने पूर्वजों का दोष नहीं, दोष आधुनिक मानव का ही है जो अपनी विद्वता का परिचय देते हुए इसमें भी सुधार कर दिए हैं और करना चाहते हैं। 

मैं सदा बोलता रहुँगा कि सूर्य पूरब में उगता एवं पश्चिम में डूबता है। हाँ भाई जो उगेगा वह तो डूबेगा ही तो आप विज्ञान भाई शब्दकोशों में से उगना और डूबना जैसे शब्द भी निकाल दीजिए और बोलिए की सूर्य ना ही उगता है ना ही डूबता है वह तो स्थिर है।

विज्ञानजी मैं आपको गलत साबित नहीं कर रहा। मेरा तो बस यह कहना है कि जैसे एक शोधार्थी शोध में लगा होता है वैसे ही आप भी शोध में लगे रहिए और विशुद्ध ज्ञान, सत्य की खोज कीजिए जिसमें कोई परिवर्तन न हो, न कि धर्मग्रंथों आदि पर ही उंगली उठाकर इन्हें अतथ्यपरक आदि की संज्ञा से नवाजते रहिए और हाँ ये एक तो चोरी और ऊपर से सीनाजोरी वाली कहावत को चरितार्थ मत कीजिए अगर इन धर्म-ग्रंथों से ज्ञान प्राप्तकर आप कुछ नया लाते हैं तो इन धर्मग्रंथों को नमन करना मत भूलिए।।
अंत में मैं अपनी इस रचना के साथ अपनी वाणी को विराम देता हूँ-

प्रभु ! तू बता अपनी
सच्चाई,
क्योंकि,तू अब नहीं बचेगा,
देख,मनुष्य ने ली है
अंगड़ाई.
क्या तू है ?
तेरा अस्तित्व है ?
देख,
विज्ञान आ गया है,
तेरा अस्तित्व,
हटा गया है.
तू खुद सोच,
मनुष्य लगाता है,
तेरे कार्यों में अड़चन,
वह तेरा करता है खंडन.
वह खुद ही लगा है,
बनाने,बिगाड़ने
सपनों को,अपनों को.
वह खुद ही बन बैठा है
भगवान ?
अगर तू है तो रुका क्यों है,
भाग जा,
जा ग्रहों पर छिप जा.
ना,ना,ना
वहाँ मत जाना,
देख,अब
आदमी के कदम,
थमेंगे नहीं,रुकेंगे नहीं,
वह तो ग्रहों पर
खाता है खाना.
अस्तु वहाँ छिपोगे तो,
पकड़े जाओगे,
कोई तेरी पूजा नहीं करेगा,
अपितु मारे जाओगे.
सोच खुद ही सोच,
मनुष्य कितना आगे निकल गया है.
वह कहता है कि
भगवान है झूठ,
कहीं उसका कोई
अस्तित्व नहीं,
विज्ञान ही है भगवान
सब कहीं.
तो फिर मैं तूझे
क्यों पूजूं ?
विज्ञान को ही पूजूंगा,
अभी नहीं,
उस दिन,
जिस दिन विज्ञान,
मौत को मार भगाएगा,
सब होंगे अमर,
किसी को तेरा नहीं होगा डर,
उस दिन,अहा उस दिन,
कितना खुश होऊँगा मैं,
खुशी,आनंद से,
झूम जाऊँगा मैं.
तब चिल्लाऊँगा,जोर जोर से,
मेरा प्रभु तो विज्ञान है,
और वैज्ञानिक हैं उसकी आकृति,
तब भाड़ में जाए तुम
और तेरी प्रकृति.
उस दिन हाँ उस दिन,
मैं तेरी पूजा करना,
बंद करूँगा,
देख हँस मत,
सिर्फ उसी दिन तक,
तुझे पूजता रहूँगा.

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प्रभाकर पाण्डेय “गोपालपुरिया”

6 comments:

  1. पता नहीं क्यों लोग बोलते हैं कि धर्म-ग्रंथों में जो कहानियाँ दी गई हैं, जो लेख दिए गए हैं उनकी प्रमाणिकता पर संदेह है क्योंकि इनके बारे में प्रमाणिक जानकारी नहीं मिलती। तो भाई वैज्ञानिक जनता, मैं कहता हूँ कि ये आधुनिक विज्ञान जो नई-नई कथित आविष्कार, खोजें आदि कर रहा है क्या उसका प्रमाण आप के पास है।

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  2. प्रभावी लेखन,
    जारी रहें,
    बधाई !!

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  3. सत्य-वचन ,आये दिन ख़बरों में जो वेज्ञानिकशोधों के परिणाम पढ़ने को मिलते हैं वह हम बरसों से अपने बुजुर्गों से सुनते आ रहे होते हैं ,विज्ञान उसे आज सिध्ह कर रहा है पर वह तो पहले से ही सिध्ह हैं |

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  4. नववर्ष की हार्दिक शुभकामनाएँ... आशा है नया वर्ष न्याय वर्ष नव युग के रूप में जाना जायेगा।

    ब्लॉग: गुलाबी कोंपलें - जाते रहना...

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  5. बहुत सुन्दर..नव वर्ष की हार्दिक शुभकामनायें!

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