वह लड़की ... इश्क सा ख्याल 
करती रही इंतज़ार पतझड़ का ....

 

रश्मि प्रभा 
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वो पतझर के मौसम का बेसब्री से इंतज़ार करने वाली एक अजीब किस्म की लड़की थी! ऐसे मौसम में जब चारों ओर पीले पीले पत्ते हवा में उड़ते हुए ज़मीन पर आ गिरते , वह किसी गुलमोहर के नीचे किसी बेंच पर बैठ जाती और निचला होंठ दांतों से दबाये पत्तों का शोर सुनती रहती! उसे इस सन्नाटे भरे शोर में कुछ बोझिल आवाजें सुनाई देतीं! जैसे पत्ते अपनी शाखों से विदा लेते हुए धीमे धीमे सिसकियाँ ले रहे हों! उसे पूरा पतझर विदाई का मौसम महसूस होता था! ऐसे में उसे "कोई "बहुत याद आता! 

उसके कानों में पिछला वक्त रेंगता हुआ पूरे शरीर में दौड़ने लगता! वह अपनी रगों में "कोई " को महसूस करती हुई बर्फ की तरह जम जाती! आँखों में सर्द और जमे आंसुओं की किरचें चुभतीं! जब अँधेरा घिरने लगता तो वह किसी एक टूटे पत्ते को उठाकर घर ले आती! उसे लगता मानो अपने दरख़्त से अभी अभी जुदा हुए पत्ते को किसी के साथ की ज़रुरत है! 

वह खामोश रातों में अक्सर एक आवाज़ सुनकर उठ जाती... अपने सीने के बायीं ओर हाथ रखने पर उसे अपनी धड़कन की लय के साथ एक और धड़कन सुनाई पड़ती! वह समझ जाती , ये " कोई" धड़क रहा है! वह मुट्ठी में अपने दिल को भर लेती... " कोई" कहीं नहीं था! मगर " कोई " हर जगह था! कभी उसके होने के एहसास से भरकर ख़ुशी के मारे नाच उठती, कभी दूर तक उसकी आहट न पाकर उदासी में घिर जाती!

उसके गले में रुलाई की तरह "कोई" अटका हुआ था! रुंधे गले से बरसों बिता देना कोई आसान काम न था! आँखों से आंसू गिराना कठिन नहीं है ..कठिन है उन्हें गले में जमा करते जाना! "कोई" ... जिसे उसने बाहर कर देना चाहा था अपने मन से..और उसका ख्याल था कि मन की गुफाओं में लगे जाले देह के रास्ते बाहर फेंके जा सकते हैं! इसी कोशिश में वो आत्मा के गहरे एकांत से बाहर निकला और गले में अटक कर रह गया ! 
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ेध्यान से देखने पर उसकी गर्दन का रंग गुलाबी दिखाई देता ! वो याद करती... एक बार उसने कहा था कि इश्क का रंग हल्का गुलाबी होता है, हरी कली के अन्दर से जन्मते नन्हे गुलाब की तरह और उदासी का पीला! ठीक वैसा, जैसी रौशनी कोहरे भरी सुनसान रातों में सड़क के किनारे लगे लैम्प पोस्ट बिखेरते हैं! ध्यान से देखने पर उसकी आँखें ऐसी ही पीली तो दिखाई पड़ती ! वो आईने में बार बार अपनी गर्दन और आँखों के रंग को देखा करती ! 
!अपनी गर्दन को सहलाते हुए उसकी उंगलियाँ ठीक वैसा ही सुकून महसूस करतीं जैसा "कोई " की उँगलियों में फंसे हुए वे महसूस करा करती थीं!
वो सुबह मीरा को गुनगुनाती... दोपहर को बुल्लेशाह को पढ़ा करती , रात को अक्सर बूढ़े अमलतास से उस चिड़िया की कहानी सुना करती जिसने  अपने  खून  से सफ़ेद  गुलाब  को लाल सुर्ख रंग दिया था! ! उसका रोम रोम इश्क की दरगाह बन गया था जहां लैला और हीर भी आकर सजदे किया करती थीं!

सदियाँ बीत गयीं... वो इन्ही दो रंगों में जीती रही , इंतज़ार करती हुई  !... ना "कोई" आया , ना "कोई" निकला ! अब उसकी  गर्दन गहरी गुलाबी दिखाई देने लगी थी और आँखें..  जैसे आंसुओं में किसी  ने हल्दी घोल दी हो!
एक दिन  पतझर के मौसम में अचानक तब्दीली आई! अचानक पत्तों का टूटना और गिरना बंद हो गया! हवा सुहानी हो गयी! उसने हैरत से नज़रें उठाईं.... वो आँखें मलकर बार  बार देखती ! उसकी आँखों के सामने " कोई " खड़ा  था! उसने उस दिन एक और गुलाबी गर्दन और पीली आँखें देखीं....!

पल्लवी त्रिवेदी! उसके इंतज़ार का पतझर बीत चुका था और इश्क के दरख़्त पर कई रंगों वाले फूल खिल आये थे! दो पल बाद वो "कोई" की बाहों में थी! आसमान की आँखें भर आयीं और सामने पहाड़ की चोटी पर बरसों से जमी सफेदी पिघलकर बह निकली!वक्त गुज़रना भूलकर इस मिलन का गवाह बन गया था !
अब दोनों का बदन गुलाबी रंग का दिखाई देता था! और उनके क़दमों के नीचे से पीली नदी बह निकली थी!

पल्लवी त्रिवेदी 

9 comments:

  1. आँखों से आंसू गिराना कठिन नहीं है ..कठिन है उन्हें गले में जमा करते जाना!

    अंत भला तो सब भला ..... मनमोहक अंत ... !!

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  2. खूबसूरत ........आगाज़ से अंजाम तक .....बहुत खूबसूरत ......जब अँधेरा घिरने लगता तो वह किसी एक टूटे पत्ते को उठाकर घर ले आती! उसे लगता मानो अपने दरख़्त से अभी अभी जुदा हुए पत्ते को किसी के साथ की ज़रुरत है!
    ....उफ़ बहुत कुछ मिलते जुलते एहसास ......फिर से तस्कीन से पढूंगी .....शुक्रिया दी! अच्छी पोस्ट के लिए ...और पल्लवी जी बधाई .....

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  3. खूबसूरत ......आगाज़ से अंजाम तक ....बहुत ही खूबसूरत ......जब अँधेरा घिरने लगता तो वह किसी एक टूटे पत्ते को उठाकर घर ले आती! उसे लगता मानो अपने दरख़्त से अभी अभी जुदा हुए पत्ते को किसी के साथ की ज़रुरत है!
    बहुत कुछ मिलते जुलते एहसास .......जर्द गुलाबी रंग ....पढूंगी फिर से इत्मीनान से .....शुक्रिया दी ....और बधाई पल्लवी जी

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  4. खूबसूरत ......आगाज़ से अंजाम तक ....बहुत ही खूबसूरत ......जब अँधेरा घिरने लगता तो वह किसी एक टूटे पत्ते को उठाकर घर ले आती! उसे लगता मानो अपने दरख़्त से अभी अभी जुदा हुए पत्ते को किसी के साथ की ज़रुरत है!
    बहुत कुछ मिलते जुलते एहसास .......जर्द गुलाबी रंग ....पढूंगी फिर से इत्मीनान से .....शुक्रिया दी ....और बधाई पल्लवी जी

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  5. खूबसूरत एहसासों का सुंदर चित्रण....

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  6. बहुत सुन्दर अहसास.. पल्लवी जी को बधाई..आभार

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  7. बेहतर लेखन !!

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  8. गहन अहसास, सुंदर अभिव्यक्ति.

    बधाई पल्लवी जी.

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  9. 'कोई' के रूप में एहसास संजोये हैं |
    बहुत अच्छी|

    सादर

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