निहत्थे शक्तिहीन से युद्ध उचित नहीं - ऐसा शास्त्रों में कहा गया है 
तो स्त्री के साथ जो अन्यायी युद्ध होता है , 
वह सिद्ध करता है कि उसमें अपार क्षमता है 
पति और बच्चों से बढकर उसके लिए कोई शस्त्र नहीं 
पर यदि वह इन अवश्यम्भावी शस्त्रों से विहीन है 
तो इसके बगैर भी उसकी आत्मिक शक्ति 
उसके लिए शिव धनुष के समान है
अबला ना वह कभी थी ना है ना होगी ...

                        रश्मि प्रभा 



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रोशी अग्रवाल  

"अबला जीवन हाय तुम्हारी यही कहानी" "आंचल में है दूध और आँखों में पानी"
पढकर, लिखकर और सुनकर ही बड़ी हुई थीं मै
बचपन में था सोचा की कितना कमजोर बना दिया हमको
पर पाया था कहीं भी कोई कोई भी ना बदलाब जवानी में
तुम लड़की हो, लड़की की तरह रहना, खाना पीना और सोना
बहुत सी आजादी भी थीं, पर साथ ही बेड़ियाँ समाज की
सोचा अभी क्या, बदलाब तो आयेगा ही समाज में ?
हम हो तो गए आधुनिक पहनाबे में, रहने-सहने में
पर जरा भी तो ना बदला समाज देने में ताने ?
" नो वन किल्ड जेसिका" देखकर याद आ गयी "सुभद्रा जी कि कविता"
पहले दी थी सीता ने अग्निपरीक्षा, अब मार दी गई "जेसिका"
आज "शीलू-निषाद" हो या हो वो "पांचाली"
चीर हरण तो हर युग में हुआ ही है उस "अबला" का
आज बन गयीं हूँ नानी पर फिर भी समझाती हूँ हर वक्त यही जुबानी
कल मेरी माँ मुझको देती थी यही नसीहत बताकर कहानी
कि लड़की-जात ही है देने को क़ुरबानी ?
आज बताती हूँ यही अपनी "बेटी" को कि वो भी रखे ध्यान अपनी "बेटी" का
इस बहशी समाज सोसायटी और घर भीतर-बाहर फैले दरिंदो से
क्यूंकि यह तो हर वक्त ढूँढते है "जेसिका और शीलू" को लेने उनकी क़ुरबानी 
जरा भी ना बदली - ना बदलेगी यह परिभाषा की अबला जीवन, हाय तेरी यही कहानी. .......

3 comments:

  1. अबला ना वह कभी थी ना है ना होगी ...

    बिल्‍कुल सही कहा आपने ... बहुत ही अच्‍छी प्रस्‍तुति।

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  2. ये सच है कि स्त्री सिर्फ़ एक अन्याय के आगे टूट जाती है ! मगर ये उसकी कमज़ोरी नहीं... वरन हैवान, वहशी, दरिंदों की क़ायरता है ! उसकी आत्मा पवित्र तथा आत्मबल अनमोल है !
    ~सादर

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  3. आज बन गयीं हूँ नानी पर फिर भी समझाती हूँ हर वक्त यही जुबानी
    कल मेरी माँ मुझको देती थी यही नसीहत बताकर कहानी
    कि लड़की-जात ही है देने को क़ुरबानी ?
    आज बताती हूँ यही अपनी "बेटी" को कि वो भी रखे ध्यान अपनी "बेटी" का bahut achchhe se aapne sachchaaii ko abhivykt kiya hai ..

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