अगर मांग पाता खुदा से मैं कुछ भी
तो फिर से वो बचपन के पल मांग लाता |
वो फिर से मैं करता कोई मीठी गलती ,
वो कोई मुझे ; प्यार से फिर बताता |
वो जिद फिर से करता खिलौनों की खातिर ,
वो फिर से मचलता ; झूलों की खातिर |
वो ललचायी नजरें दुकानों पे रखता ,
वो आँखों से टॉफी के हर स्वाद चखता |
वो बचपन के साथी फिर से मैं पाता ,
वो तुतली जुबाँ में साथ उनके मैं गाता |
वो मालूम न होते जो दुनिया के बंधन ,
वो गर पाक हो पाते इक बार ये मन |
मैं फिर से ये गुम-सुम जवानी न पाता ,
अगर मांग पाता खुदा से मैं कुछ भी ,
तो फिर से वो बचपन के पल मांग लाता || 
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आकाश मिश्र 

3 comments:

  1. बचपन के दिन भी क्या दिन थे..बहुत सुन्दर...

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  2. कहाँ लौट पता है बचपन.. बस जिन्दा रखने की कोशिश की जा सकती है बस..

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