गाँव से भागता हुआ आदमी जब 

शहर की ओर भागने लगा था तो 
सबकुछ पाने की चाह से कितना 
लाचार और बेबस सा था और है 



गाँव भी टूटने लगे हैं अब तो देखो 
लौटाकर आयें भी तो जैसे गाँव भी
नज़र आने लगा है गाँव भी बेरूखा 
न चौपाल है न फूंकता चलम कोई 



न कूएँ से भरती पानी पनिहारी भी 
खेत खलिहानों से बैलों की न जोड़ी 
न गाय भैसों से भरा खलिहान है 
न कूदते नहाते बच्चे तालाब में अब 



न प्यार के लिये मर मिटाता भी कोई 
मेहमान आतेजातें पडौसी को खबर नहीं 
रात के न भजन संध्या आरती होती है 
स्वार्थ का सूरज अब तपने लगा यहाँ भी 



गाँव से भागता हुआ आदमी जब 
सेल टीवी पीसी से उबने लगा आदमी 
बंगलों में भले लगाये हों पौधे लोन मगर
वो स्पर्श मिलता नहीं मिट्टी का अभी वो 
गाँव में छोडकर आये थे नंगे पाँव के निशाँ 



दूध दोहती माँ का प्यार गाय की मीठी नज़र
मख्खन से भरे बर्तन से उठती सुगंध अब 
छूट गया है प्यार हर चीज में भी स्वाद का 
माँ वृद्धाश्रम में रोटी हमारा समय भी हो गया



कसी लौटूं गाँव में अब शहर से भी आगे बढ़ा
खेत के पैसों की धूम से बिज़नेस की बात अब 
होने लगी है होड अब तो मकानों के जंगलों में 
न शहर में रह सकता मैं न गाँव का हो सकूं मैं


() पंकज त्रिवेदी 

जन्म- ११ मार्च १९६३/ संप्रति- श्री. सी.एच. शाह मैत्रीविद्यापीठ महिला कॉलेज। साहित्य क्षेत्र- कविता, कहानी, लघुकथा, निबंध, रेखाचित्र, उपन्यास, राजस्थान पत्रिका में पत्रकारिता/ रुचि- पठन, फोटोग्राफी, प्रवास, साहित्यिक-शैक्षिक और सामाजिक कार्यों में रुचि। प्रकाशित पुस्तकों की सूची- अगनपथ (लघुउपन्यास)  तथा भीष्म साहनी श्रेष्ठ वार्ताओं का- हिंदी से गुजराती अनुवाद,  अगनपथ (हिंदी लघुउपन्यास), संप्राप्तकथा (लघुकथा-संपादन),  आगिया (रेखाचित्र संग्रह),  दस्तख़त (सूक्तियाँ) - माछलीघर मां मानवी (कहानी संग्रह),  झाकळना बूँद (ओस के बूँद) (लघुकथा संपादन) ,   सामीप्य (स्वातंत्र्य सेना के लिए आज़ादी की लड़ाई में सूचना देनेवाली नोर्मन मेईलर की मुलाक़ातों पर आधारित संग्रह) तथा  मर्मवेध (निबंध संग्रह) - आदि रचनाएँ गुजराती में। दस्तावेजी फिल्म - १९९४ गुजराती के जानेमाने कविश्री मीनपियासी के जीवन-कवन पर फ़िल्माई गई दस्तावेज़ी फ़िल्म का लेखन और दिग्दर्शन/ निर्माण- दूरदर्शन केंद्र- राजकोट/ प्रसारण- राजकोट, अहमदाबाद और दिल्ली दूरदर्शन से कई बार प्रसारण। स्तंभ- टाइम्स ऑफ इंडिया (गुजराती), जयहिंद, जनसत्ता, गुजरात टु डे, गुजरातमित्र, फूलछाब (दैनिक)- राजकोटः मर्मवेध (चिंतनात्मक निबंध), गुजरातमित्र (दैनिक) - सूरतः माछलीघर (गुजरात कहानियाँ)/ सम्मान- सहस्राब्दी विश्व हिंदी सम्मेलन में तत्कालीन विज्ञान-टेक्नोलॉजी मंत्री श्री बच्ची सिंह राऊत के द्वारा सम्मान।

5 comments:

  1. गाँव से बागती लड़कियों पर कुछ नहीं लिखा क्या ?
    आदमी होकर आदमी पर ...

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  2. सच है| हम गावों के लोग, न शहर के हो पाए हैं न गावों के ही |

    एक सच्ची-मुच्ची अच्छी रचना...

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  3. bahut badiya chintansheel rachna ..
    prastuti ke liye aabhar!

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  4. गाँव से भागता हुआ आदमी जब
    सेल टीवी पीसी से उबने लगा आदमी
    बंगलों में भले लगाये हों पौधे लोन मगर
    वो स्पर्श मिलता नहीं मिट्टी का अभी वो
    गाँव में छोडकर आये थे नंगे पाँव के निशाँ ..... त्रिवेदी जी सच्चा मर्म चित्रित किया है जिसे सब महसूस करते हैं

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  5. सच्चाई का आइना दिखाती कविता. बहुत सुंदर.

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