कवि और मन
अतीत,वर्तमान,भविष्य
संभावनाओं के अनगिनत रास्ते
भय का संचार करती आहटें
दृश्यों के कई विकल्प देती हैं...
कवि मन की ऊँगली थामे-
कभी यहाँ,कभी वहां
एक ही क्षण में धरती से आकाश
आकाश से धरती
खुद में झरने का प्रपात
तो खुद में ही मरीचिका ....

रश्मि प्रभा
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खौफ़....

रात काफी हो गई है
कितना वक़्त हो गया
सो जाना जाना था अब तक मुझे
नींद है कि आने का नाम नहीं लेती
कवि हूँ, क्या नहीं कर सकती
कहाँ नहीं जा सकती
मन कहता है कहीं घूम आऊं
कहाँ जाऊं
रात है
गहरी काली रात
और लिख रही हूँ मैं
बिना किसी भय के
अचानक यह आवाज़ कैसी?
शायद ट्रकों के आपस में टकराने की आवाज़
भ्रम नहीं है यह ना कोई सपना
यथार्थ है
पहुँच गया मन मेरा वहां
ओह... कितना भयानक दृश्य
बिखरी हुई लाशें
बहता हुआ गरम खून
भिनभिनाते हुए मच्छर
और कोई भी नहीं
देखना....
कल कुछ नहीं होगा यहाँ
हाँ एक खबर जरुर बन जाएगी
छाप जाएगी अखबारों में
और मैं....
मैं अब भी जागूंगी
इस आह्ट के खौफ़ से........
[sandhya.jpg]

संध्या शर्मा

8 comments:

  1. अतीत,वर्तमान,भविष्य
    संभावनाओं के अनगिनत रास्ते
    भय का संचार करती आहटें
    दृश्यों के कई विकल्प देती हैं...
    कवि मन की ऊँगली थामे-
    कभी यहाँ,कभी वहां
    एक ही क्षण में धरती से आकाश
    आकाश से धरती

    बहुत ही अच्‍छी प्रस्‍तुति ... आभार

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  2. बहुत सुन्दर प्रस्तुति

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  3. मार्मिक और दर्दनाक मंज़र ...उफ़

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  4. मन कहता है कहीं घूम आऊं
    कहाँ जाऊं
    रात है
    गहरी काली रात
    और लिख रही हूँ मैं
    बिना किसी भय के
    अचानक यह आवाज़ कैसी?
    शायद ट्रकों के आपस में टकराने की आवाज़
    भ्रम नहीं है यह ना कोई सपना
    यथार्थ है
    पहुँच गया मन मेरा वहां
    ओह... कितना भयानक दृश्य
    बिखरी हुई लाशें ..waah bahut sundar prastuti , sach hai yah kavi man har kai jaldi se ud jaata hai kahin bhi pahuch jaata hai , yah kavi man ki aahate hai ki ek hi waqt me sab sun sur dekh leta hai ...

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  5. कवि मन की ऊँगली थामे-
    कभी यहाँ,कभी वहां
    एक ही क्षण में धरती से आकाश
    आकाश से धरती
    खुद में झरने का प्रपात
    तो खुद में ही मरीचिका .... waah rashmi ji behad satik chitran kiya hai aapne , badhai

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  6. वटवृक्ष की घनी छाँव में खुद को पाकर बहुत अच्छा लगा...
    कवि मन की ऊँगली थामे-
    कभी यहाँ,कभी वहां
    एक ही क्षण में धरती से आकाश
    आकाश से धरती
    कहाँ - कहाँ नहीं जाते हैं हम... बहुत-बहुत आभार...

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  7. बहुत प्रभावशाली प्रस्तुति...

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  8. एक खौफनाक और दर्नक मंजर का चित्रण बखूबी
    ढाला है शब्दों में...
    :;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;

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