अब- हमें
लौटना होगा
पुनः सम्भालना होगा
अपने इस घर को
लगानी होगी हर चीज़
करीने से
मुक्त करना होगा
घर का कोना-कोना
सन्नाटों के जालों से,
भरना ही होगा
गंदे बदबूदार गड्ढों को ।

जब भरूं - मैं;
दरारों से खिरती
पुरानी यादों के खारों को,
नए अहसासों के
मीठे चूने से
तब भी तुम
यूं ही थामे रखना
मेरा हाथ !

नफ़रत की दीवारें हैं
फ़िर भी हमें
करनी है मरम्मत
थोड़ा वक्त तो लगेगा ही
तुम धीरज रखना
धरती की तरह !

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नरेन्द्र व्यास 
अभियांत्रिकी महाविद्यालय बीकानेर में कंप्यूटर डाटा ओपेरटर के पद पर कार्यरत | रचनाएँ कृत्या, अनुभूति, सृजनगाथा, नवभारत टाइम्स, कुछ मैग्जींस और कुछ समाचार पत्रों में प्रकाशित|  कविता, कहानी आदि हिन्दी की समस्त विधाओं की रचनाएं पढ़ने का इन्हें शौक है। इसीलिये इन्होने  आखिर कलश शुरू किया जिससे इन्हें  और अधिक लेखकों को पढने, सीखने और उनसे संवाद कायम करने का सुअवसर मिले और समकालीन हिंदी साहित्य रूपी पवित्र गंगा के निर्मल जल से ये स्वयं को भी पवित्र कर सकें । इनका ब्लॉग है : http://aakharkalash.blogspot.com/

11 comments:

  1. सजाने सवांरने वक्त तो लगेगा,,,बेहतरीन अभिव्यक्ति,,,

    RECENT POST ...: जिला अनुपपुर अपना,,,

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  2. वाह...
    बहुत सुन्दर रचना......
    मुश्किल वक्त में सहारा चाहिए....वरना मैं इतना भी कमज़ोर नहीं..

    सादर
    अनु

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  3. बहुत गहरे भाव...

    तुम धीरज रखना
    धरती की तरह !

    बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति, बधाई.

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  4. सब्र का फल मीठा होता है...धरती का सब्र काबिले तारीफ है...पर वक्त कुछ ज्यादा नहीं लग रहा है...मित्र...

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  5. बहुत सुंदर नरेंद्र जी .....

    तब भी तुम
    यूं ही थामे रखना
    मेरा हाथ !

    रिश्तों को निभाने की बात ...

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  6. बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति

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  7. नफ़रत की दीवारें हैं
    फ़िर भी हमें
    करनी है मरम्मत
    थोड़ा वक्त तो लगेगा ही
    तुम धीरज रखना
    धरती की तरह !

    sahee kaha aapne. badhai

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  8. जब भरूं - मैं;
    दरारों से खिरती
    पुरानी यादों के खारों को,
    नए अहसासों के
    मीठे चूने से
    तब भी तुम
    यूं ही थामे रखना
    मेरा हाथ !

    बहुत खूब

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  9. bahut Shandaar abhivykti hai dil ki gahrai se jadon ko sahejne ka chintan umda

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  10. बहुत सुंदर प्रस्तुति ।

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