किरणों ने अवशोषण कर नीर समुद्र का
सजाया है श्वेत - श्याम श्रृंगार नभ का
विरह अगन धधकाने आ गयी बदरिया
दूत बन जाओ मेघ बड़ी लम्बी है डगरिया

पिया बिसार कर सुध ले रहे सुख - छाँव
उड़ जाओ उस प्रदेश ,बैठे हैं वो जिस गाँव
स्मृतियों का डेरा है पलकों पे ,क्या करूँ सांवरिया
मन के घाव भरते नहीं कि कुहुक जाती है कोयलिया

बेध जाता है हिरदय को टेसू का अवहास
पपीहा जलाता दिल को ,नीरस लगे मधुमास
दिवस है ठहर गया ,आतप की वो दुपहरिया
जाने कब बह जाती है नैनों की कजरिया

धूप ने खूब चिढ़ाया शरद की ठिठुरन में
दीवारों का कर अवसंजन जलती विरहन में
आर्तनाद छलनी करता मन की दुअरिया
छा जाती है जब रात की खामोश चदरिया

चौखट पे नैनन ठौर साया जो दिख जाए तुम सा
कासे कहूँ दिल का हाल ,होश भी रहता गुम सा
यायावर पवन पहुंचा दे पैगाम उस नगरिया
उड़ रहा वक़्त लगा पंख ,गुजर रही उमरिया




कविता विकास 
http://kavitavikas.blogspot.in/

7 comments:

  1. बरसात की तरह भीगे भीगे शब्द । सुन्दर रचना।

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  2. वाह भीगी भीगी सी दिलकश रचना ....

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  3. nirmala ji ,suman ji aur alka saini ji ...aap sabon ko mera hardik dhanywaad

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  4. ravindra ji ,bahut aabhar ,dhanywaad

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  5. बारिश महसूस कर रहा हूँ |

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  6. बहुत सुन्दर कोमल भाव व्यक्त करती रचना..
    बेहतरीन:-)

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