गज़ल

जिंदगी उनकी नज़र होती रहे
खूबसूरत ये डगर होती रहे

सादगी इतनी है तेरे रूप में
बंदगी आठों पहर होती रहे

मैं उठूँ तो हो मेरे पहलू मे तू
रोज ही ऐसे सहर होती रहे

डूबना मंज़ूर है इस शर्त पे
प्यार की बारिश अगर होती रहे

मुद्दतों के बाद तू है रूबरू
गुफ्तगू ये रात भर होती रहे

माँ का साया हो सदा सर पे मेरे
जिंदगी यूं ही बसर होती रहे

तेज तीखी धूप लेता हूँ मगर
छाँव पेड़ों की उधर होती रहे







दिगंबर नासवा 

जन्म- २० दिसंबर १९६० को कानपुर उत्तर प्रदेश,भारत में। शिक्षा- चार्टेड अकाउंटेंट। कार्यक्षेत्र- जून १९९९ से विदेश में पहले कैनेडा और फिर पिछले १० वर्षों से दुबई संयुक्त अरब इमारात में एक अमेरिकन अंतर्राष्ट्रीय कंपनी में सी एफ ओ के पद पर कार्यरत। दुबई अंतर्जाल और विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में समय समय पर रचनाएं प्रकाशित। परिकल्पना ब्लोगोत्सव द्वारा २०१० में सर्वश्रेष्ट गज़ल लेखन पुरस्कार। पिछले ४ वर्षों से अंतर्जाल में सक्रिय हैं और अपने ब्लॉग स्वप्न मेरे के अलावा विभिन्न पत्र पत्रिकाओं में लेखनरत हैं।

12 comments:

  1. बहुत खुबसूरत गज़ल..आभार..

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  2. तेज तीखी धूप लेता हूँ मगर
    छाँव पेड़ों की उधर होती रहे
    शानदार गज़ल

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  3. जिंदगी यूँ बसर होती रहे.
    बहुत बढ़िया गजल, बधाई है.

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  4. ...बहुत सुन्दर रचना को आपने रूबरू कराया है!

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  5. बहुत खुबसूरत रचना
    सादर्

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  6. वाह ..बहुत ही अच्‍छी प्रस्‍तुति।

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  7. गजल भा गई मन को ।
    उत्कृष्ट ।
    आभार भाई जी ।।

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  8. DIGAMBAR NASWA JI EK UMDAA GAZALKAR
    HAI . UNKEE YAHAAN GAZAL PADH KAR
    BAHUT ACHCHHAA LAGAA HAI . HAR SHER
    MEIN MITHAAS HAI .

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  9. आपसब का शुक्रिया इस गज़ल कों पसंद करने का ... और रश्मि जी का शुक्रिया इसे वटवृक्ष पे स्थान देने का ...

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  10. मुद्दतों के बाद तू है रूबरू
    गुफ्तगू ये रात भर होती रहे-

    क्या बात है जी ! बहुत सुन्दर गजल ...मुबारका जी ..

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