कुर्सी पर बैठकर
वातानुकूलित कमरे में
भाषण देना आसान है
सड़कों की धूल फांको
फिर चिलचिलाती धूप में पानी को व्यर्थ बहते देखो
भाषण देने की बजाये खुद बन्द कर दोगे नल

रश्मि प्रभा 
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लबादा

लबादा ओढ़ कर जीते हुए
सबकुछ हरा हरा दिखता है
बिल्कुल
सावन में अंधें हुए
गदहे की तरह।

लबादे को टांग कर अलगनी पर
जब निकलोगे बनकर
आमआदमी
तब मिलेगी जिंदगी
कहीं स्याह
कहीं सफेद
कहीं लाल
और कहीं कहीं
बेरंग

मेरा फोटो




अरूण साथी

17 comments:

  1. बेहतरीन प्रस्‍तुति ।

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  2. सच्चाई है! पर कितने नेता ऐसा सोचते भी हैं?

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  3. बहुत सुंदर.............
    सच है आँखों के आगे होता कुछ गलत कैसे स्वीकार किया जाये.....

    सादर.

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  4. बहुत सुन्दर रचना!....आभार!

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  5. बहुत प्यारी रचना.

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  6. सत्य कह दिया।

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  7. आम आदमी बनकर ही जिंदगी के विभिन्न रंगों से परिचय होता है !
    सत्य वचन !

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  8. ज़िंदगी से मिलने के लिए वाक़ई हौसला चाहिए।

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  9. बहुत सीधे-सादे शब्दों में आईना दिखाती रचना .... !!

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  10. फिर चिलचिलाती धूप में पानी को व्यर्थ बहते देखो
    भाषण देने की बजाये खुद बन्द कर दोगे नल sahi kaha ...

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  11. वाह!

    कोई ऐसा शहर बनाओ यारों,
    हर तरफ़ आईने लगाओ यारों!

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  12. जिंदगी की हकीकत यही है।

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