ग़ज़ल

पास अपने रौशनी काफी नहीं तो क्या हुआ 
दिल जले है ,जो दीया बाती नहीं तो क्या हुआ |

पार कर लेंगे उफनते दरिया को हम तैरकर 
हौंसला तो है, अगर कश्ती नहीं तो क्या हुआ |

उस खुदा की रहमतें मिलती रहें काफी यही
साथ मेरे जो तेरी मर्जी नहीं तो क्या हुआ |

खत्म होगा एक दिन ये दौर दहशत का सुनो 
आज तक जालिम हवा बदली नहीं तो क्या हुआ |

गीत हैं आहें मेरी , गाऊं सदा मैं झूम के 
साज हैं सांसे मेरी , डफली नहीं तो क्या हुआ |

हार मानी क्यों , मिलेंगे और भी मौके कई 
विर्क जो किस्मत अभी चमकी नहीं तो क्या हुआ |

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दिलबाग विर्क 
http://sahityasurbhi.blogspot.in/ 

14 comments:

  1. खत्म होगा एक दिन ये दौर दहशत का सुनो
    आज तक जालिम हवा बदली नहीं तो क्या हुआ...

    amen..

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  2. बहुत सुंदर ! जोश के जज्बे से भरी गजल !

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  3. बहुत ही अच्‍छी प्रस्‍तुति ... आभार ।

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  4. खत्म होगा एक दिन ये दौर दहशत का सुनो
    आज तक जालिम हवा बदली नहीं तो क्या हुआ |

    kash ki yah sch ho jaye . sarthak v prerak post hae aapki......
    aapke amantran ka shukriya.mae avashya hi shmil houngi..........

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  5. बहुत सकारात्‍मक रचना ..
    सुंदर !!

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  6. वाह दिलबाग जी बहुत ही खूबसरत पंक्तियां ।

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  7. सकारात्मक सोच की सार्थक कविता!

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  8. बहुत ही खुबसूरत और प्यारी रचना..... भावो का सुन्दर समायोजन......

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  9. पार कर लेंगे उफनते दरिया को हम तैरकर
    हौंसला तो है, अगर कश्ती नहीं तो क्या हुआ |
    वाह-वाह .....

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  10. आपकी पोस्ट चर्चा मंच पर प्रस्तुत की गई है
    कृपया पधारें
    http://charchamanch.blogspot.com
    चर्चा मंच-805:चर्चाकार-दिलबाग विर्क>

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