आगे निकलने के क्रम में
हम सबसे बिछड़ गए
सूरज को पाने का दंभ लिए
अन्दर ही अन्दर जल गए
अब ऐ ज़िन्दगी ... धीरे चलो
भागते दृश्य पलकों में ठहर नहीं पाते
कौन सा घर अपना है - जान नहीं पाते !


रश्मि प्रभा
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जिन्दगी जरा आहिस्ते चल ,

ऐ जिन्दगी जरा आहिस्ते चल ,
कहीं दौड़ते-दौड़ते न दम निकल जाए,
सकूं की तलाश चैन की चाहत में,
हम ये कहाँ बदहवासों के शहर चले आए,
सादगी खतरे में है हमारी,
डर है हमें कहीं हम भी न बदल जाएँ,
खतरनाक है सुबह यहाँ की शाम जमील है,
ये अदम खोर चौराहे,कहीं हमें भी न निगल जाएँ,
गर्मी तेज हैं यहाँ दौलत की, इंसान पिघलते हैं,
कहीं ऐसा न हो की मेरे भीतर का भी आदमी पिघल जाए,
हर कोई डंक मरता है यहाँ सांप और बिछुओं की तरह,
बात करता नहीं कोई ऐसी की दिल ये बहल जाए,
बड़ी ताजीब-ओ-सलीके से जिन्दगी बसर करते हैं लोग,
कभी उनका दिल नहीं करता कि बच्चों सा मचल जाएँ,
लौट आए हैं हम गाँव की झोपडी में ''अनंत'',
बड़ा मुश्किल है की फिर लौट के शहर के महल जाएँ
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अनुराग अनंत

17 comments:

  1. हर कोई डंक मरता है यहाँ सांप और बिछुओं की तरह,
    बात करता नहीं कोई ऐसी की दिल ये बहल जाए,

    bahut sunder .....katu satya kahati hui aaj ke paripeksh me ...sargarbhit rachna ...

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  2. भागते दृश्य पलकों में ठहर नहीं पाते
    कौन सा घर अपना है - जान नहीं पाते !
    बड़ी ताजीब-ओ-सलीके से जिन्दगी बसर करते हैं लोग,
    कभी उनका दिल नहीं करता कि बच्चों सा मचल जाएँ,
    शहर क्या अब गाँवों की स्थिती भी कुछ-कुछ ऐसी ही हो चली है..... !!
    काश स्थिति इस रचना से बदल पाती.... :)

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  3. तेज रफ़्तार जिंदगी है ..जैसे भागती रेलगाड़ी से सब धूमिल सा होता दीखता है ..वैसे जी अब जीवन हो चला है..

    सुन्दर भूमिका और बहुत अच्छी रचना..

    शुभकामनाएँ..

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  4. अब ऐ ज़िन्दगी ... धीरे चलो....uspar anuragjee ki kavita,kya boloon....lazabab hai.

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  6. बहुत अच्छी रचना..

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  7. बहुत सुन्दर
    जिंदगी जरा आहिस्ता चल ...

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  8. आप सभी सुधि पाठकों का धन्यवाद जो आपने मेरी पीड़ा और कथित रचना को समझा ............धन्यवाद

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  9. रश्मि जी का विशेष आभार ..जो उन्होंने आपसब मित्रों से परिचय करवाया ............मिल कर बहुत खुशी हुई .......

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  10. आगे निकलने के क्रम में
    हम सबसे बिछड़ गए
    बिल्‍कुल सही बात कही है आपने ...आभार ।

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  11. ये अदम खोर चौराहे,कहीं हमें भी न निगल जाएँ,
    गर्मी तेज हैं यहाँ दौलत की, इंसान पिघलते हैं,
    कहीं ऐसा न हो की मेरे भीतर का भी आदमी पिघल जाए....waah! bahut sundar..
    sundar sarthak prastuti...

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  12. sundar rachna..bahut bahut badhaai

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  13. bahut sundar bade sach ko darshati prastuti.

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  14. डर है हमें कहीं हम भी न बदल जाएँ!

    बहुत सुन्दर लिखा है आपने.

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