छिः ... धिक्कार है
वंश इसे कहते हैं
जो शान की झूठी तस्वीर के लिए
माँ से परहेज करे
माँ को पत्थर बना दे ...

 रश्मि प्रभा

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माँ

कितनी अच्छी हो तुम, माँ !

कह सकता हूँ तुमसे
मन की सारी बातें,
यह कि मेरे दोस्त आएँ
तो अंदर ही रहना,
सामने आओ भी
तो अच्छी साड़ी पहन
बाल संवारकर आना
और दूरवाली कुर्सी पर बैठना.

उनकी नमस्ते का उत्तर
हाथ जोड़कर देना,
हो सके तो चुप ही रहना,
बोलना ही हो तो
ज़रा ध्यान रखना,
शर्म को सर्म,
ग़ज़ल को गजल मत कहना.

उनके सामने चाय न पीना,
सुड़कने कि आवाज़ आएगी.

मेरी इतनी सी बात मानोगी न,
मेरी अच्छी,प्यारी, माँ ?
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ओंकार

11 comments:

  1. उनके सामने चाय न पीना,
    सुड़कने कि आवाज़ आएगी.

    मेरी इतनी सी बात मानोगी न,
    मेरी अच्छी,प्यारी, माँ ?
    ....sach kitne peeda hoti hai ek MAA ko aise kshan mein....
    ....dikhawa ke liye kya kya na karte hain aaj ke peedi ke bachhe..
    bahut hi marmsparchi prastuti..aabhar!

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  2. सही कहा तभी तो माँ प्यारी और अच्छी हो सकतीहै जब बेटे के कहे पर चल सकती है

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  3. माँ को जानने के लिए कई जन्म और लेने होगे...

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  4. सुंदर, बहुत ही तीखा प्रहार।

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  5. ज़रा ध्यान रखना,
    शर्म को सर्म,
    ग़ज़ल को गजल मत कहना.
    चरितार्थ कर दिया ,"पूत" कपूत हो सकते है.... :(

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  6. प्रहार करती रचना
    माँ तो बस माँ है

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  7. adunik aulad ka sateek chitran.......

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  8. दिल भर आया...
    मगर जहाँ नज़र डालें यही दृश्य है.
    :-(

    सादर.

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  9. मार्मिक व्यंग्य है ....जिस माँ ने बोलना चलना उठना बैठना सिखाया उसी के प्रति ऐसे भाव ...!!! शर्मनाक स्थिति है

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  10. सुंदर... व्यंग्यात्मक रचना.

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