क्यूँ गलत परिभाषा बनाते हो
कर्म से भागते हो तुम
और जो आधे शरीर से पूरे कर्म करते हैं
उन्हें अपाहिज कहते हो !!!


रश्मि प्रभा

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अपाहिज

वो मानव
जिसका कोई
अंग भंग हो
आम भाषा में
अपाहिज कहलाता है
पर मुझे नहीं लगता
कि भंगित अंग होने से
अपाहिजता का
कोई नाताहै ।
मैंने देखे हैं
ऐसे इंसान
जिनके नेत्र नहीं
वो सूंघ कर
काम चलाते हैं
जिनके हाथ नहीं
वो पैरों को हाथ बनाते हैं
और पैर विहीन
अपने कर से
चल कर जाते हैं ।
जिनके हाथ - पांव नहीं
वो धड़ को
इस्तेमाल में लाते हैं।
मैंने पैर की उंगली में
फंसे ब्रश से
चित्रकारी करते देखा है
एक हाथ से
सलाइयों पर
स्वेटर बुनते देखा है ।
फिर कैसे मान लें
कि ऐसे लोग
अपाहिज होते हैं ?

अपाहिज हैं वो लोग
जो मात्र सोच की
बैसाखी ले कर चलते हैं
और अपनी
अकर्मण्यता को
अपनी मजबूरी कहते हैं॥
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संगीता स्वरुप

25 comments:

  1. आपकी भूमिका और संगीता जी की कविता दोनों अनुपम हैं!

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  2. अपाहिज हैं वो लोग , जो मात्र सोच की ,
    बैसाखी ले कर चलते हैं ,और अपनी ,
    अकर्मण्यता को ,अपनी मजबूरी कहते हैं॥
    *******************************************************
    ऐसे सोच वालों को झंझकोर कर रख देगी.... !
    तब शायद,शायद आखें खुलवा दे ये रचना.... !!

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  3. रश्मि दी आपने सच कहा...
    सक्षम होकर कुछ ना करने वाला ही अपाहिज है..
    सार्थक कविता है संगीता जी की और सटीक भूमिका..

    सादर.

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  4. सार्थक सोच के साथ ..बेहद सटीक शब्दों में अभिव्यक्ति ...

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  5. अंतस को झकझोर देने वाली बहुत सटीक और प्रभावी रचनाएँ...

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  6. रश्मि जी ,

    आभार आपका ..मेरी इस सोच को यहाँ लाने के लिए ..

    सभी पाठकों का शुक्रिया

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  7. सोच से अपाहिज होना ही समाज के लिए हानिप्रद है . अच्छा सन्देश देती कविता

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  8. aap dono ka combination hai ise to lajavaab hona hee tha :)

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  9. धारा प्रवाह सटीक भावनाएं...अंतस तक झकझोर जाती हैं.हैट्स ऑफ टू संगीता जी.

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  10. बहुत सुन्दर संगीता जी ! आपकी रचना ने तो अपाहिजता की परिभाषा ही बदल दी ! वास्तव में अपाहिज वे ही लोग हैं जो शारीरिक रूप से तो सम्पूर्ण हैं लेकिन मानसिक रूप से लाचार, बेज़ार और अकर्मण्य हैं ! बहुत ही प्रेरक रचना ! रश्मि जी का आभार इसे हम तक पहुँचाने के लिये !

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  11. अपाहिज हैं वो लोग
    जो मात्र सोच की
    बैसाखी ले कर चलते हैं
    और अपनी
    अकर्मण्यता को
    अपनी मजबूरी कहते हैं॥

    सही कहा सोच अपाहिज होती है इंसान नहीं…………बहुत सुन्दर प्रस्तुति।

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  12. अपाहिज हैं वो लोग
    जो मात्र सोच की
    बैसाखी ले कर चलते हैं
    और अपनी
    अकर्मण्यता को
    अपनी मजबूरी कहते हैं॥

    बहुत ही अच्छी और प्रेरक रचना!

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  13. अपाहिज हैं वो लोग
    जो मात्र सोच की
    बैसाखी ले कर चलते हैं
    यकीनन ... अपहिजता अंग से ज्यादा सोच की होती है ...

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  14. बहुत ही अच्छी रचना!...

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  15. अपाहिज हैं वो लोग
    जो मात्र सोच की
    बैसाखी ले कर चलते हैं
    और अपनी
    अकर्मण्यता को
    अपनी मजबूरी कहते हैं॥

    वाकई सच कहा आपने

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  16. और अपनी
    अकर्मण्यता को
    अपनी मजबूरी कहते हैं॥

    मन के चक्षु खोलती ...भूमिका और कविता ....
    आभार आभार ....आप दोनों को ह्रदय से आभार ...!!

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  17. अपाहिज वो नहीं जिनके अंग-भंग हैं बल्कि अपाहिज वो है जिनकी मानसिकता कुंठित है|बहुत ही सुन्दर प्रस्तुति...बधाई..

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  18. हौसलों से भरपूर इन लोगों को देखकर कई बार अपनी कमतरी का एहसास होता है !
    प्रेरक और सार्थक रचना !

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  19. बहुत बहुत अच्छी कविता है संगीता जी

    अपाहिज हैं वो लोग
    जो मात्र सोच की
    बैसाखी ले कर चलते हैं
    और अपनी
    अकर्मण्यता को
    अपनी मजबूरी कहते हैं॥

    क्या बात है !

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  20. अपाहिज को सुंदरता से एवं सच्चाई से परिभाषित किया,आपने.

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  21. behtreen soch kash sabhi ki ho bhut prerna daai rachna.

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  22. व्यक्ति अपनी सोच से अपाहिज बनता है ..
    बहुत ही सुन्दर सार्थक एवं सशक्त अभिव्यक्ति ....

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  23. बहुत सार्थक चिन्तन है -अपाहिज मानसिकता होती है ,मात्र शरीर नहीं !

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