मासूमियत और बहेलिया
बच्चे और चिड़ा के लिए चिड़िया की प्यार भरी सोच
न चिड़िया रही न बच्चे न चिड़ा - !!!





रश्मि प्रभा
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फितरत

पिया तुम चन्दन, मैं तुमरी लता, तुम हो दीया और मैं तुमरी बाती,
जाने ऐसी कितनी बातें कह कह कर, चिड़िया रोज रिझाती अपने चिड़े को.
चिड़ा हँसता, पर कुछ न कहता, चिड़िया की मासूमियत से परिचित था वो!
डरता और हमेशा कहता, अब जब भी बाहर निकलना,
ध्यान देना, फिर से न आया हो....

पर बहेलिया भी तो शातिर था,
कैसे जाने देता चिड़िया को ?
राह देखता, कब चिड़ा घर पे न हो....
फिर एक दिन उसकी किस्मत जागी,
देखा, चिड़ा निकला कहीं जाने को.
भागा घर, लाकर बिछाया सबसे महीन जाल,
नए चमकते दाने डाले और
राह देखने लगा....
उसे अपने भाग्य से ज्यादा,
चिड़िया की मासूमियत पे भरोसा था....
थोड़ी देर बाद, सारे बच्चों को लेकर
चिड़िया दाना चुगने बाहर निकली.
"माँ, माँ वो देखो, इतने सारे नए नए दाने,
चलो न मिल कर सारे ले लें".
चिड़िया सहमी, ऐसा कैसे?
और चारोँ ओर देखा....
दूर बैठे बहेलिया पे उसकी नज़र पड़ गयी,
घबरायी और चिल्लायी -
"चलो भागो सब घर के अन्दर,
नहीं चुगना हमें ये दाना".
सारे बच्चों को समेट, वापस भागी....
सबको जाता देख, बहेलिया लपकते हुए पास आया.
कान पकड़े, गलती मानी, "बदल चुका हूँ मैं,
मेरा विश्वास करो, पिछली गलती का ही प्रायश्चित करने आया हूँ"....

इतना रोया, इतना मनाया, चिड़िया को दया आ ही गयी,
सोचा, होती ही रहती हैं गलतियाँ....
भोली चिड़िया और उसके बच्चे
पिछली सारी बातें भूल गए,
मासूमियत उनका स्वभाव था,
विश्वास करना उनकी फितरत,
क्षमा करना उनकी आदत,
उनको तो बस प्यार करना ही आता था...
“माँ देखो उसकी मुस्कान कैसी बदली बदली सी है, है न?
लगता है, गलतियों पे बहुत पछताया होगा, एक मौका दे दो न, माँ ”.
जैसी चिड़िया, वैसे ही मासूम उसके बच्चे.
और चिड़िया मान गयी.
चिड़िया ने चारोँ ओर देखा,
"ये चिड़ा भी न, जाने कहाँ चला गया....
अब तो दानो की कोई कमी ही नहीं,
ये बहेलिया तो अब अपना ही है न"....

फिर भी,
थोड़ा सहमे, थोड़ा सकुचाये, सब एक दूसरे को थामे,
चल पड़े दानो की ओर....
बहेलिया बोला “डरो नहीं, देखो ये सारे दाने तुम्हारे लिए ही हैं,
ले लो, जितना जी चाहे, ले लो, डरो नहीं,
चलो मैं अपनी आँखे मूँद लेता हूँ ”....
सबने समझा, अपने किये पर कितना पछता रहा है
और धीरे धीरे, सब दाने चुगने पहुँच गए,
बहेलिया के पास, निश्चिंत....

पहुचने भर की देर थी,
बहेलिया ने मिची आँखें खोली,
एक ही झटके से जाल खिंची
और सब....
उसने जाल समेटा,
झोले का मुंह बंद किया, दाने उठाये और चल पड़ा....
फिर कभी, किसी ने चिड़िया के गीत नहीं सुने.
कहते हैं,
चिड़ा आया, बहुत ढूँढा अपनी चिड़िया को
और फिर उसने भी ख़ुदकुशी कर ली....





सुमन सिन्हा
http://zindagikhwaabhai.blogspot.com/

6 comments:

  1. चिड़िया की मासूमियत से परिचित था वो!
    डरता और हमेशा कहता, अब जब भी बाहर निकलना,ध्यान देना,

    उसका भय गलत नहीं था न ...।

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  2. बहुत मार्मिक कविता!

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  3. ओह! कितना आपसी प्रेम था दोनों में ....इंसानी प्रेम की फितरत को चुनौती देती सार्थक चिंतनशील रचना ...
    .. प्रस्तुति हेतु आभार!

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  4. मासूमियत उनका स्वभाव था,
    विश्वास करना उनकी फितरत,
    क्षमा करना उनकी आदत,
    उनको तो बस प्यार करना ही आता था...

    उस को ख़ुद से ज़्यादा चिड़िया की मासूमियत पर भरोसा था ,,,और उस का भरोसा बिल्कुल सही था
    बहुत सुंदर कविता !!!

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  5. चुनाव घोषित हो गये हैं...बहेलियों के जाल बिछ गये हैं...बिसात पर फिर भोली-भाली जनता है...

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