तुम अपनी प्रतीक्षा की बात करते हो
तुम्हारे तो पाँव हैं
टहल सकते हो
दूसरी ठाँव पा सहते हो
लेकिन जीवन के असंतुलित भागदौड़ में
संस्कारों की भोर
सांध्य दीपक की प्रतीक्षा में
सूख रही है .... एक आँगन तलाश रही है !

रश्मि प्रभा

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प्रतीक्षारत तुलसी

तुलसी,
आज भी बिरवा होने का भ्रम पाले
आँगन में खडी़ है
प्रतीक्षारत
कि सुबह कोई पूजेगा /
अर्ध्य देगा / सुहाग लेगा
शाम कोई सुमिरन करेगा
संध्या के साथ वह भी पूजी जायेगी

अब,
सुबह से ही भूचाल आ जाता है
घर में
जो देर शाम तक
निढाल हो गिर जाता है बिस्तर में
अल्मारियों में टंगे हैंगर
इंतजार करते रह जाते है
कपड़ों का
सिर तलाशते रह जाते हैं
गोद
कोई रोता भी नही बुक्का भरके
किसी को याद नही आती
तुलसी
जो आज भी बिरवा होने का भ्रम पाले
किसी कोने में सूख रही है
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मुकेश कुमार तिवारी

11 comments:

  1. सुन्दर भावाव्यक्ति।

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  2. क्योंकि लोग अब 'तुलसी'के वैज्ञानिक महत्व को नहीं केवल ढोंग को तरजीह देते हैं।

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  3. वाह ...बहुत बढि़या।

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  4. आँगन में तुलसी, उस घर के संस्कार एवं अध्यात्मिक
    विचारों की झलक को दर्शाती है! पर, दुर्भाग्य से अब इसकी महता कम हो रही है !
    बहुत सुन्दर भावपूर्ण रचना !

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  5. kya baat behtreen likha ahi .. Tulsi sur aaj ki zindagi ki aisi sunder vyakhya aur kahin nahin padhi

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  6. विचारों से परिपूर्ण भी !

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  7. tulsi upekshit aur hmare bhaaw aur sanskaar bhi...bahut sundar rachna..

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  8. तुलसा महारानी नमो नमो, हरि की पटरानी नमो नमो!

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  9. न आँगन है न तुलसी ..
    बहुत सुन्दर भाव

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