दो कप पानी गैस पर रखते हुए
तुम मेरे साथ होती हो
ज्यों ज्यों चाय का रंग गहराता है
अदरक की खुशबू आती है
तुम मुझमें गहराती जाती हो
चाय मैं पियूँ या तुम
बात एक ही होती है ......




रश्मि प्रभा


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दो कप चाय...अदरक वाली...

सोचना
आदत ही बुरी है
फिर सोचा कि शाम हुई
फिर
तुम ज़ेहन में आए
अब सोचता हूं
कि न सोचूं तुम्हे
और सोचता ही जाता हूं
तुम्हारे बाल
तुम्हारे होंठ
तुम्हारी हंसी
तुम्हारा स्पर्श
और सर्दी की उस शाम की
वो बारिश...
सोच रहा हूं बना लूं फिर
वो अदरक की चाय
दो कप..
एक मेरा, एक तुम्हारा
दोनो पी लूं फिर
तुम मुझसे अलग कहां हो...

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मयंक

14 comments:

  1. तुम मुझसे अलग कहां हो...

    वाह ...बहुत खूब ।

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  2. चाय और वो भी अदरक वाली ...
    अच्छी कविता !

    और आपकी पंक्तियाँ भी..:)

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  3. अदरक की चाय और उनकी याद। गजब का मेल है भई।

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  4. अब तो अदरक वाली चाय पीने का मन हो आया है पी कर आती हूँ।

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  5. अदरक की मनमोहक चाय...

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  6. Kitnee sahajta se likh letee hain aap!

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  7. सरल शब्दों में गहन अनुभूति. दोनों कप चाय पी लेने का लाजिक गजब का है.
    वैसे चाय के दो कप देख कर चाय पीने का मन हो आया. माँ सुनेंगी तो कहेंगी, लालची कहीं का.

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  8. सच, एक ही तो हैं दोनों!

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  9. बहुत सुन्दर प्रस्तुति,बधाई.

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  10. bahut achchi rachna garm garm chaay ke jaisi antim lines ne to maja duguna kar diya.

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