दिन डूबते जाते हैं
यादों के गिरह बढ़ते जाते हैं
तुम और तुम्हारी बातें
भीगे चेहरे पर टिक गए हैं ....




रश्मि प्रभा


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एक और दिन डूबता हुआ सा ..........!


यादों की एक किताब को सरहाने रखकर
.सारा दिन
..ना जाने क्या-क्या बुनते...... उधेड़ते रहे......!
हाथों पर तुमने उँगलियों से जो इबारत लिखी .
उसके निशान
पक्के हो चले है ....
बारिश की बूंदो में भीगने से
रंग और निखर आया है .......
ढुलकते जाते हो कभी गालों पर आंसूं बन कर
और कभी. होठों पे ठहरती सी बातों का
एक कारवां बन जाते हो .....
खामोशियों से भी ज्यादा था वीरान ये दिन.................!
सारे गीत कहीं चुप सी लगा के बैठे गए थे !
बेबस सी हवा में तैरती ,सिसकती यादें थीं
और.....
एक और दिन था
डूबता हुआ सा ..........!


विभा  

11 comments:

  1. वाह ...बहुत खूब ।

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  2. बहुत सुन्दर भावाव्यक्ति।

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  3. तुम और तुम्हारी बातें
    भीगे चेहरे पर टिक गए हैं ....
    kaise sochtin hain itna sunder.....

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  4. बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति , आभार.

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  5. सारे गीत कहीं चुप सी लगा के बैठे गए थे !
    बेबस सी हवा में तैरती ,सिसकती यादें थीं
    और.....
    एक और दिन था
    डूबता हुआ सा ..........!

    विभा जी एक बहुत ही प्यार भरी सुंदर कविता के लिए बधाई स्वीकार करें !

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  6. खामोशियों से भी ज्यादा था वीरान ये दिन...
    सारे गीत कहीं चुप सी लगा के बैठे गए थे !
    बेबस सी हवा में तैरती ,सिसकती यादें थीं...
    बेहद गहरी सोच... उतम अभिवयक्ति.... !!

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  7. विरह की अनुभूती ही ऐसी कविता लिखा सकती है ।
    सिसकती यादें और एक और डूबता हुआ सा दिन !

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  8. और एक दिन यूँ ही उदास बेमानी सा गुजर जाता है !

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