बूंद ओस की हो
या नमी हो मिट्टी की
आँखें अपनी मनःस्थिति जीती हैं ....



रश्मि प्रभा

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एक बूँद ओस की......

सुबह सुबह पत्तों पर दूर से,
कुछ चमकते देखा-...
लगा जैसे
पत्तों में कोई मोती उगा,
कौतुहलवश पास गया
मुझे लगा
शायद ये पत्तों के आँसू हैं !
समझ के मेरी बातों को
वो मुझसे यूँ कहने लगी,
तुम्हें भ्रम हुआ है
न मै आँसू हूँ, न मै मोती
प्रकृति द्वारा बनाई गयी
मै तो एक बूँद हूँ ओस की,
आसमान से चलकर
आज ही ज़मीं पर उतरी हूँ
कुछ पल मुझे जीना है-
कुछ पल में मिट जाऊगी,
लेकिन कुछ पल के लिए ही सही
अपनी पहचान दे जाऊगी,
मै एक छोटी सी बूंद हूँ
मेरा अपना अस्तित्व है
तुम तो इंसान हो-
तुम कहो
तुम्हारा जीवन में क्या महत्व है........

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धीरेन्द्र भदौरिया.....

21 comments:

  1. सशक्त प्रस्तुति।

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  2. जीवन दर्शन सिखाने के लिए एक बूँद ओस ही काफी है...

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  3. wah......wakayee boond ki bhi ahmiyat hoti hai.

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  4. लेकिन कुछ पल के लिए ही सही
    अपनी पहचान दे जाऊगी,
    मै एक छोटी सी बूंद हूँ
    मेरा अपना अस्तित्व है
    तुम तो इंसान हो-
    तुम कहो
    तुम्हारा जीवन में क्या महत्व है........

    प्रकृति के कण कण में संदेश है .. समझा जाए तो .. उत्‍तम रचना !!

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  5. मै एक छोटी सी बूंद हूँ
    मेरा अपना अस्तित्व है
    तुम तो इंसान हो-
    तुम कहो
    तुम्हारा जीवन में क्या महत्व है........

    प्रेरित करती बूँद!
    सुन्दर प्रस्तुति!

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  6. बहुत सुन्दर रचना ,आभार.

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  7. tum kaho
    tumhara jeewan me kya mahatv hai...
    main apne bheetar jhank kar es prashan ka uttar dund rahi hoon..

    achchhi kavita..

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  8. vaah...aos ka bahut sundar vishleshan.jeevan bhi to oss ki tarah hai.

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  9. सशक्त रचना...
    धीरेन्द्र जी को बधाई...
    आभार वटवृक्ष...

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  10. बहुत अच्छी प्रस्तुति है.
    कोमलता और सहजता का अहसास कराती हुई.
    वटवृक्ष को 'रश्मि' पूर्ण कर दिया है आपने.

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  11. बेहतरीन अभिव्यक्ति
    प्राकृतिक उपालम्भों में स्वयम की तलाश

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  12. sundar bhaav os kee boondein bahut kuchh sikhaatee hein

    ओस

    हरे पत्तों पर ओस की बूंदें

    नन्हे मोतियों सी,
    चमक लेकर लुभाती हैं,

    सूरज की गर्मी से
    भाप बन उड़ जाती हैं

    आना और जाना,
    "निरंतर" प्रक्रिया है

    जब तक रहना है
    ओस की बूंदों सा चमकना है,

    हमें भी एक दिन उड़ जाना है,
    हमें भी एक दिन उड़ जाना है

    08-08-2010

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  13. ओस की बूँद ने इंसानी जीवन की व्याख्या कर दी !

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  14. हर इंसान अपने अपने हिस्से का काम कर ही जाता है धीरेन्द्र जी, चाहे सृजानात्मक हो या...
    रचना बहुत अच्छी है...बधाई.

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  16. बूँद का अस्तित्व ही क्या है....उसे जितना ही पोर पर सहेजना चाहो अंततः वह पोर से ढुलक हथेलियों को चीरती हुई ज़मीन पर चू पड़ती ...मैले हाथों पर एक लकीर बन ...उसके अस्तित्व का अवशेष....
    '

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  17. बूँद का अस्तित्व ही क्या है....उसे जितना ही पोर पर सहेजना चाहो अंततः वह पोर से ढुलक हथेलियों को चीरती हुई ज़मीन पर चू पड़ती ...मैले हाथों पर एक लकीर बन ...उसके अस्तित्व का अवशेष....
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  18. बूँद का अस्तित्व ही क्या है....उसे जितना ही पोर पर सहेजना चाहो अंततः वह पोर से ढुलक हथेलियों को चीरती हुई ज़मीन पर चू पड़ती ...मैले हाथों पर एक लकीर बन ...उसके अस्तित्व का अवशेष....
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  19. बूँद का अस्तित्व ही क्या है....उसे जितना ही पोर पर सहेजना चाहो अंततः वह पोर से ढुलक हथेलियों को चीरती हुई ज़मीन पर चू पड़ती ...मैले हाथों पर एक लकीर बन ...उसके अस्तित्व का अवशेष....
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