सिर्फ स्वप्न हैं
अनगिनत
आशाओं का
एक अजब सा
माया जाल है
हर तरफ
भागमभाग है-
आगे बढने की
कभी खुद की इच्छा से
खुद के बल से
और कभी
किसी को जबरन
धकेल कर
किसी 'सीधे' को
मोहपाश मे बांध कर
तेज़ी से
ऊपर की मंज़िल पर
चढ़ने की
बिना कोई सबक लिए
कछुआ और खरगोश की
कहानी से।
इस मायाजाल से
मैं रहना चाहता हूँ दूर
खड़े रहना चाहता हूँ
पैरों को ज़मीन से टिकाए
क्योंकि
ऊपर की मंज़िल के
सँकरेपन का आभास है
डर है
ऊपर से पैर फिसला
My Photoतो आ न सकूँगा
ज़मीन पर।



यशवन्त माथुर 
http://jomeramankahe.blogspot.com/

19 comments:

  1. वाह ...बहुत बढि़या अभिव्‍यक्ति ...प्रस्‍तुति के लिये आभार, यशवन्‍त जी को बधाई ।

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  2. बहुत सुन्दर कविता है यशवंत !

    पैर ज़मीन पर ही रहे
    पर सर ऊँचा
    और ऊँचा हो
    यही कामना है ...
    फ़ैल जाओ वटवृक्ष की तरह
    पर जुड़े रहो ज़मीन से ...

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  3. हर तरफ
    भागमभाग है-
    आगे बढने की...
    रहना चाहता हूँ दूर ...
    इसी में सुख एवं आत्मिक शांति है !

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  4. bahut acchi kavita yashwant ji...aabhar

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  5. आदरणीय रवीन्द्र सर /रश्मि आंटी
    मेरी इस कविता को वटवृक्ष का हिस्सा बनाने के लिये आपका तहे दिल से आभारी हूँ।

    सादर

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  6. इसी डर पर तो विजय पानी है………………बहुत सुन्दर प्रस्तुति।

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  7. अति सुन्दर , बधाई स्वीकारें.

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  8. सुन्दर भाव की रचना ..
    जमीन से जुड़ी हुई

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  9. प्रभावशाली रचना को सम्मान , पवों की सुभकामना ,
    बधाईयाँ जी /

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  10. प्रभावशाली रचना को सम्मान , पवों की सुभकामना ,
    बधाईयाँ जी /

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  11. बहुत खुबसूरत ख़याल....
    यशवंत जी को बधाई...
    सादर आभार...

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  12. बढ़ना तो उन्हीं का है जो जमीन से जुड़े हैं और अपनी शाखाओं पर अनेकों को आसरा दिए हुए हैं ....बढ़िया सोच

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  13. बहुत अच्‍छी और सार्थक रचना .. बधाई !!

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  14. bhaut hi khubsurat....happy diwali...

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