छोटी छोटी ख़ुशी कित्ती बड़ी होती थी
जब हाथ में होता था एक आना ...



रश्मि प्रभा

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देख और सुन रोज़ की महंगाई.....
फिर "यादें" अपनी पुरानी आई||

कहानी पुरानी....एक आने की!!! मेरी ज़ुबानी
यादें ....बचपन की!!!
यादें....किशोरावस्था की !!!
यादें ..यादें ..यादें ही रह जाएँगी बस!!
इस अवस्था की ....???

एक
क्या था वो भी, ज़माना सुहाना
चलता था जब, एक आना पुराना
एक रूपये में होते थे, चौंसठ पैसे
दो पैसे का एक टक्का पुराना
दो टक्के बनता,फिर एक आना
चार पैसे की बने, एक इकन्नी
दो इकन्नी मिल, बने दुअन्नी
दो दुअन्नी, या चार आने बने चवन्नी

दो चवन्नी, मिल बने अठन्नी
दो अठन्नी से, फिर बना रुपैया
सो बाप बड़ा न भैया, भैया
सब से बड़ा, बना रुपैया,
सो आने सोलह, का एक रुपैया
मानो न मानो, क्या था जमाना
चलता था जब, एक आना पुराना ||
दो
अब चलो चलाये हम इक आना
दो आने की आ जाती थी भाजी-पूरी दो
एक आने में पुरे, दो केले लो
एक आने में मिल जाये गर्म समोसा
हों चार आने तो खाओ इडली डोसा
अब केसे हो ये मेल सुहाना
मानो न मानो, क्या था जमाना||

एक आने में मिलती थी चाय गर्म
एक आने मिलती मट्ठी साथ नरम
याद है बचपन , वो स्कूल को जाना
जेब खर्च में मिलता था, तब एक ही आना
कहाँ गया वो वक्त सुहाना
मानो न मानो, क्या था जमाना||
गोल-गप्पे मिलते थे आने में छै और चार
यह आज हो गया उन पे कैसा वार
यह कैसी आ गई उन पर आंच
आज मिले, दस रुपये के पांच
वाह भई वाह यह कैसा जमाना
मानो न मानो, क्या था जमाना||

कुल्फी, छोले, बर्फ का गोला, कांजी-वडा
डट के खाया मेने अपने, स्कूल में बड़ा
भुट्टा, चाट,आम-पापड ,चूरण,छोले-भटूरे
सब मिलता था एक-एक आने पुरे पुरे
सच! नही कोई ये गप्प, लगाना
मानो न मानो, क्या था जमाना||
पांच आने में पिक्चर देखो
चार आने में कोकाकोला
देख के पिक्चर, बड गयी शान
मुहं में दबाया, एक आने के पान
अब सोचे क्या करें बहाना
मानो न मानो, क्या था जमाना||
तीन
एक रुपया ग़र मिले कहीं से
चल देते हम फिर वहीँ से
आज काफ़ी पिए जरूर
न था स्टैंडर्ड हम से दूर
आज निबाहेंगे हम याराना
मानो न मानो, क्या था जमाना||

मैं था वो था हम दोस्त पुराने
बचपन बीता हुए सियाने
पहुच गए हम कनॉट-प्लेस
लगा इक दूजे से हम रेस
अब क्यों और कैसा घबराना
मानो न मानो, क्या था जमाना||

आठ आठ आने में काफ़ी पी
बिस्कुट मिला साथ में हमें फ्री
कोई डाले चवन्नी juke-box में
हम बस बैठे थे इसी आस में
न पड़े कहीं ऐसे ही उठ जाना
मानो न मानो, क्या था जमाना||

अब पसंद अपनी का सुन रहे थे गाना
रफ़ी साहेब गा रहे थे अपना अफसाना
परदेसियों से न अखियाँ लगाना
परदेसियो को हैं इक दिन जाना
चल ढूंढे अब अपना ठिकाना
मानो न मानो, क्या था जमाना||

रात हो गई अन्धयारी थी
अब हमे बहुत लाचारी थी
डी.टी. यु, की बस को देखा
अब यही हमारी सवारी थी
सोचो घर क्या करें बहाना,
मानो न मानो, क्या था जमाना||
चार
फिर याद आ रहा वो वक्त पुराना
सुनाई दे रहा था जब ये गाना
बदला जमाना आहा बदला जमाना
छै नए पैसों का पुराना इक आना ||

अब न रहा वो दोस्त
न रहा वो रूठना ,मनाना
न रहा वो हसना ,रुलाना
वापस न आयेगा दोस्त पुराना
मानो न मानो, क्या था जमाना||

अब चारो तरफ है मौल ही मौल
कुछ लेने से पहले जेब को तौल
अब न आएगा वो वक्त पुराना
क्या था वो भी वक्त सुहाना
चलता था जब इक आना पुराना
मानो न मानो, क्या था जमाना ||

6 comments:

  1. waah aaj ke haalaton par likhi badhiya prastuti....

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  2. वाह ………गुजरा हुआ ज़माना आता नही दोबारा…॥

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  3. आज कल के हालातों पर बढ़िया प्रस्तुति| धन्यवाद|

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  4. sunder yadon ka silsila......pyari hai hamen bhi.

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  5. इकन्नी दुअन्नी के बाद चवन्नी का विदाई समारोह तो हो ही चुका है, बहुत जल्द ही रुपैया भी सब से बड़ा होना का तमगा खो देगा। यादों के बहाने बहुत कुछ कह गए हैं आप। बधाई।


    गुजर गया एक साल

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  6. यादों को सहेजती हुई सुंदर प्रस्तुति!

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