पुरानी यादों में ज़िन्दगी कितनी सुन्दर नज़र आती है
खोये खोये रिश्तों की खुशबू पास बुलाती है



रश्मि प्रभा

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मेरा पुराना घर

मैने सोचा था , कि बैसाखी बनेगा तू मेरी
मेरे बच्चे तू आया है ,गिराने मुझको
एक-एक फूस को आंधियों में भी संभाले रखा
तू सालों बाद आया भी तो जलाने मुझको


मै खड़ा देख ही रहा था अपने पुराने मकाँ की तरफ़
बहुत धीमी सी आवाज़ नीव की ईट से आयी
तेरे दादा ने यहाँ रखा था बेटा मुझको
पीढियों तक की रक्षा की कसम मैने चुपचाप निभाई


पता है पिछ्ले डेढ़ साल से रिस-रिस कर पानी आता था मुझ तक
और मै इन्तज़ार में थी कि तू आयेगा तो संवारेगा मुझे
दबा के रखे थी आधी सदी से भी ज़्यादा इज़्ज़त
पता क्या था तू नग्न करायेगा मुझे


तभी अचानक दीवारें भी ललकार उठीं
देखती हूँ तू कैसे गिरा पाता है मुझे ?
नाच उठती थी तेरी किलकारियां सुन कर मै भी
आज तू इतना बड़ा हो गया कि डराता है मुझे ?


छत की ओर देखा तो वो भी घूर कर बोली -
मै कच्ची थी , एक तूफ़ां में तेरे दादा पे गिर गयी टूट कर
फिर भी मेरी हर इक ईट की वफ़ादारी देखो
अपने मालिक की जान बचाई थी ख़ुद मिट कर


कितने सालों से जब बिजली कड़कती, तो सहम उठती
के बरसना मत, मेरे बच्चे का सामान ना भीग जाये कहीं
अच्छा हो के खुद ही टूट कर गिर जाऊँ
मुझे गिराने में तेरी तक़लीफ़ ही बच जाय कहीं


दरवाजे खिड़कियां हर तरफ़ से बस प्रश्न ही प्रश्न
मै बदहवास सा घर से बाहर की ओर भाग उठा
चीखती , चिल्लाती ,कानों को भेदती आवाज़ें
ऐसा लगता था कि रूहों का झुंड जाग उठा


बाहर निकला तो दरवाज़े की चौखट बोली-
भागता क्यों है , रुक और बात सुन मेरी
ये सच है कि हम बूढ़े तेरे किसी काम के नही
पर सिर्फ़ सामान तो नही , हम बुज़ुर्ग़ियत की विरासत हैं तेरी


तेरे दादा-दादी का वो पहला कदम
तेरे बाप की हर किलकारी मुझमें
उनकी जवानी का हूँ गवाह मैं ही
उनके संघर्षों की हर कहानी मुझमें


वो जनेऊ, वो कुआँ पूजन को निकलना उनका
तेरी दादी के रतजगों की हर थाप मुझमें
तेरी माँ को विदा कराके घर लाना
तेरे नन्हे कदमो की हर नाप मुझमें


तेरे दादा के इन्तक़ाल पर मैं भी रोया
तेरे पिता के गुज़रने से तो मै टूट गया
अब गिरा ही दे, यही बेहतर है मेरे लिये
शहर के नाम पर, अब तेरा साथ भी तो छूट ही गया


शहर के नाम पर, अब तेरा साथ भी तो छूट ही गया........

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आशीष अवस्थी 'सागर'

14 comments:

  1. बहुत प्यारी यादें हैं...हमें भी अपने बचपन का घर याद आ गया...

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  3. एक घर की यादो का खूबसूरत चित्रण किया है ……………दिल मे उतर गयी कविता।

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  4. कविता पढते पढते सचमुच एक मकान जैसे फरियाद करता हुआ सम्मुख आ गया... सुंदर शब्दचित्र रचती हैं आपकी भावपूर्ण कविता...

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  5. aaj ka vyakti jab apne ma baap ko hi boodha or purana samajh ker vriddha ashram mei bhej deta hai to fir makan ka kya....

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  6. aaj ka vyakti jab apne ma baap ko hi boodha or purana samajh ker vriddha ashram mei bhej deta hai to fir makan ka kya....

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  7. भावमय करते शब्‍दों के साथ बेहतरीन अभिव्‍यक्ति ।

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  8. सुन्दर चित्रण, बाध्य रचना |
    मेरे ब्लॉग में भी आयें-

    **मेरी कविता**

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  9. behad khubsurat likha hain aapne.. pasand aaya

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  10. खूबसूरत यादों का मार्मिक चित्रण..भावमय शब्‍द..

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  11. भावमय करते शब्‍दों के साथ बेहतरीन अभिव्‍यक्ति ।

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  12. सच दिल में उतर गई आप की यह कविता भावपूर्ण एक शानदार और बेहतरीन अभिव्यक्ति ऐसा लगा मानो सच में कोई घर मुझसे भी यह सवाल करने लगा है
    बहुत बढ़िया अभिव्यक्ति मज़ा आगया पढ़कर ....

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  13. पुरानी यादों में ज़िन्दगी कितनी सुन्दर नज़र आती है.......aur purana ghar to kabhi bhi nahin bhulata.....lajabab.

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  14. bahut sundar panktiyan hain

    mann ko bahut gahre tak chu gayi,
    ek ek taar baj utha..

    Nirjiv vastuon ki sajeev bhawnaon ka anutha sammelan kiya hai aapne

    bahut bahut badhai !!

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