एक दिन की शहंशाही में
कुछ अलग सा स्वाद
दुनिया गोल है
पैसे का मोल है
और मुंह में पानी है....

रश्मि प्रभा 


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हाँ सर क्या लेंगे आप !

हं हं ये ज़रूरी नहीं की हर बार आपको इतने ही शिष्ट और सभ्य शब्द सुनाई दें कभी कभी तो ऐसे कर्कश ध्वनि आपके कानों में गूंजती है की आपका कुछ खाने का मन ही नहीं करेगा | क्यूँ ऐसा आपके साथ कभी नहीं हुआ | मिडिल क्लास नहीं होंगे ना, इसलिए | देखिये मैंने बहुत अच्छे रेस्टोरेंट्स में भी खाना खाया है और साधारण से दिखने वाले ढाबों पर भी खाया है |

हर जगह अलग-अलग नज़ारे देखने को मिलते हैं | अगर किसी शिष्ट जगह पहुँच गए तो आप एकाएक स्वयं को किसी बड़े राजा महाराजा से कम महसूस नहीं करेंगे | होटल का वेटर आपको इतना आदर देगा जितने की शायद आपको आदत नहीं होगी | पर क्या करे बेचारा घर पर बीवी से चाहे कितनी ही बुरी तरह से झगडा कर के आया हो आपका स्वागत वो मुस्कुराहट के साथ ही करेगा | बड़ा अच्छा लगता है | एक साफ़ सुथरी मेज़ पर वो बिलकुल चमचमाते गिलासों में पानी लाकर देगा | आपको भी प्यास लगी होगी पर आप आस पास के लोगों पर अपनी नज़र दौड़ाएंगे की वो इस परिस्थिति में क्या कर रहे हैं | यकीं मानिये अगर पड़ोस की टेबल पर बैठे सूटेड बूटेड आदमी ने पानी नहीं पिया है तो आप भी सहर्ष प्यासे मरना स्वीकार करेंगे | फिर आप नज़र डालेंगे मेन्यू पर | पहली बार में तो आप सारी डिशेज का रेट देखेंगे, फिर शुरू होगा औड मैन आउट वाला सिस्टम | यानि आप हर उस चीज़ को अपनी पसंद से बाहर करने का प्रयास करेंगी जो असल में आपके बजट के बाहर हैं | अब बारी आयेगी आपकी बीवी की जो शत प्रतिशत आपका ही अनुसरण करेगी, एक सीधा सा जवाब जो अपने लिए मंगा रहे हैं वही मंगा लीजिए | आप उन्हें थोड़ी अजीब सी निगाहों से देखेंगे और सोचेंगे की काश कुछ और ऑर्डर करती तो वो भी खाने को मिल जाता | पर चलो कोई बात नहीं जो है वही खाते हैं | अब बारी आएगी सबसे बड़ी परीक्षा की यानि बच्चों की | अगर धोखे से पूंछ लिया तो मान कर चलिए की मेन्यू की सबसे कीमती डिश पर ही उंगली जायेगी | अब क्या करें, अब आप उसे अपनी पूरी ताकत लगा कर उसे समझाने का प्रयास करेंगे की बेटा ये बिलकुल अच्छा नहीं है या ये बहुत सारा है आप इसे खा नहीं पायेंगे और ना जाने क्या क्या | बच्चा अगर समझदार हुआ तो आपका इशारा समझ जायेगा पर अगर वो कलयुगी संतान हुई तो ये मान लीजिए आपका बजट बिगडने वाला है |

यहाँ तक का सफर तो फिर भी ठीक था | अब बारी आयेगी उस अमूल्य भोजन को गले से नीचे उतारने की | वेटर बहुत ही सफाई से आपकी टेबल पर आपका सारा आर्डर लाकर रखेगा | अचानक एक ज़ोरदार धमाका होगा जानते हैं ये क्या हुआ, असल में आपके बच्चे ने टेबल पर रखा पानी का गिलास गिरा दिया होगा | आप एक लज्जित और अर्धविक्षिप्त मुस्कुराहट से आस पास के लोगों को देखते हुए कहेंगे की आज कल के बच्चे बहुत शैतान हो गए हैं | उसके बाद धीमे से अपने बच्चे को चुटकी काटते हुए उसे कहेंगे की घर चलो तब बताऊँगा, आज के बाद कभी घुमाने नहीं ले जाऊँगा | बच्चे को एकाएक अपनी गलती का अहसास होता है, और वो शांत हो जाता है | अब आप खाना खाना शुरू करते हैं | छुरी कांटे से खाना आपके लिए थोडा मुश्किल होगा पर आखिरकार आप फ़तेह पा ही लेंगे | और आखिर में वेटर को पेमेंट के दौरान सिर्फ रौब दिखाते हुए एक अच्छी खासी टिप देकर वहाँ से एक विजयीभव् जैसा भाव लेकर वहाँ से बाहर निकलेंगे |
कहानी यहीं खतम नहीं होगी असल में ये कहानी अगले दिन आपके दफ्तर और पड़ोसियों तक भी किसी ना किसी रूप में जायेगी | और तब समाप्त होगा आपका असली राजसी दिन |

इस पूरी कथा के बाद अब आते हैं एक दूसरे चित्र पर जो ज्यादा आम है | ये जिंदगी है स्ट्रीट फ़ूड की, नुक्कड़ पर बिकने वाली चाट और पानी पूरी की | जो मेरे हिसाब से उस आलिशान होटल के खाने से कहीं ज्यादा स्वादिष्ट है | खास तौर पर आज मैं सभी महिला ब्लोगर्स को उनके पुराने या वर्तमान दिन याद दिलाने का प्रयास करूंगी | जब कॉलेज के बाहर लगे ठेलो पर अपनी सहेलियों के साथ खूब गोल गप्पे खाए हैं | आज भी जब कभी भी इन ठेलों के सामने से गुज़रना होता है तो हम वहाँ से कुछ खाए बिना नहीं रह पाते | सच कहूँ तो कोई फर्क नहीं पडता था की वो ठेला कैसा है उसने हाँथ धोए हैं या नहीं | मज़ा तो तब आता था जब कुछ सेकण्ड इंतज़ार के बाद आपका नंबर आता है तो एन उसी वक्त कोई और अपनी कटोरी आगे कर देता था | ऐसा लगता था मानो किसी ने हमसे हमारी पूरी जायदाद ले ली हो |एक और चीज़ जो अक्सर गर्ल्स कॉलेज के बाहर मिलती है, जिसे मैंने तो नहीं चखा पर हाँ अपनी सहेलियों को खाते हुए ज़रूर देखा है और वो है इमली और वो रंग बिरंगा चूरन और साथ में एक और ठेला जहाँ कुछ ठंडा मिलता था याद आया वो रंग बिरंगे बर्फ के गोले और फलूदा | ये तो मैंने खाया है और आज भी अगर मौका मिलता है तो उसे छोडती नहीं हूँ |

सच कहूँ तो ये सब चीज़ें सिर्फ और सिर्फ हमारे देश में ही मिल सकतीं हैं | ये वो स्वाद हैं जो सिर्फ आपकी ज़बान पर नहीं आपके दिल में रहते हैं | आप जब भी चाहें इनको बिना खाए इनका स्वाद ले सकते हैं | मुझे यकीन है इस पोस्ट को पढने के दौरान भी आप में से कईयों के मुंह में पानी आ गया होगा | तो कोई बात नहीं ये तो हमेशा हमारे बजट में आएगा | तो चलिए चलते हैं फिर उन्ही ठेलों पर | और कहते हैं "भैया थोडा मटर और डालो ना या थोडा पानी और मिलेगा"|
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क्रति
http://krati-fourthpillar.blogspot.com/

12 comments:

  1. Waah ! Bahut hi sundar prastui.. Bada acchha sandesh diya hai aapne.. Badhai...

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  2. एक दिन की शहंशाही में
    कुछ अलग सा स्वाद
    दुनिया गोल है
    पैसे का मोल है
    और मुंह में पानी है....

    बहुत बढि़या ।

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  3. नुक्कड़ पर गोलगप्पे खाना अच्छा लगता है आज भी बशर्ते साफ़ सफाई हो ...
    चाट जैसी ही खट्टी /मीठी/ तीखी- सी अच्छी पोस्ट!

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  4. पूराने दिनों की यादों को ताज़ा करती मज़ेदार और स्वादिष्ट पोस्ट मज़ा गया .... :)

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  5. वाह:क्या बात है, बहुत सुंदर और मज़ेदार पोस्ट..

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  6. वाह ! बहुत मज़ेदार पोस्ट...

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  7. बहुत बहुत धन्यवाद मुझको अपने इस खूबसूरत मंच में शामिल करने के लिए| बहुत अच्छा लगता है जब आप जैसे गुणीजन मुझ जैसे नए लेखकों को इस तरह प्रोत्साहन देते हैं| एक शिष्य की तरह में भी पूरी कोशिश करूंगी की आपको निराश ना करूं | एक बार फिर अनेकानेक धन्यवाद इस प्रोत्साहन के लिए |

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  8. sundar prastuti...:) bhaiya thoda paani aur dalo na....bahut hi acche

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  9. वाह ...बहुत रोचक और मजेदार पोस्ट ,मजा आ गया

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  10. बढ़िया लेखन.... वाह!
    सादर...

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