समय की नाजुकता नहीं जानी
तो होगी सिर्फ हानि ....




रश्मि प्रभा

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छुट्टे नहीं हैं (लघु हास्य कथा )


चौक से स्टेशन का ऑटो पकड़ा
सामान बहुत था,किसी तरह बैठ गया
स्टेशन पहुंचा ,ऑटो का किराया तेरह रूपये हुआ
मैंने पंद्रह रूपये दिए
ऑटो वाला बोला छुट्टे नहीं हैं
दो रूपये का नुक्सान बर्दाश्त नहीं था
सो कहा आगे लेलो छुट्टे करवा लो
दो सौ कदम आगे बढे
किराया चौदह रूपये हो गया पर छुट्टा नहीं मिला
फिर वही समस्या
अब एक रुपया भी पास खुल्ला नहीं था
क्या करता ,थोड़ा और आगे चलने को कहा
किराया सोलह रूपये हो गया,दिमाग परेशान हो गया
जो नुकसान होना था हो गया
स्टेशन तक सामान के साथ जाना संभव नहीं था
सो उसे लौटने को कहा
वो बोला बाबूजी सर्कल से मोड़ना पडेगा
मरता क्या ना करता ,हाँ में सर हिलाया
घूम कर स्टेशन पहुंचा
किराया बढ़ कर इक्कीस रूपये हो गया
सर भन्ना गया
निरंतर होशयारी में दस का पत्ता साफ़ हो गया
समस्या फिर वही छुट्टा नहीं है,
कह कर ऑटो वाला मुस्कराया
कहने लगा बाबूजी इसी को कहते हैं
चौबेजी छब्बे जी बन ने गए दूबेजी रह गए
मैं खीसें निपोरने लगा
मन मसोस कर पच्चीस रूपये दे कर ,पीछा छुडाया
अब कसम खाली
बिना छुट्टे पैसों के घर से नहीं निकलूंगा
छुट्टे नहीं होंगे ,तो दिमाग नहीं लगाऊंगा
दो चार रूपये ,दान धर्म समझ कर दे दूंगा
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डा.राजेंद्र तेला"निरंतर"

14 comments:

  1. मजे़दार पोस्ट...

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  2. हा हा हा ऐसा ही होता है।

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  3. वाह आज कुछ माहौल हल्का कर दिया. हास्य व्यंग भी बहुत जरूरी हिस्सा है जिंदगी का. बधाई निरंतर जी.

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  4. होशियारी महँगी पड़ जाती है!
    रोचक!

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  5. बहुत मज़ेदार.

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  6. बिना छुट्टे पैसों के घर से नहीं निकलूंगा
    छुट्टे नहीं होंगे ,तो दिमाग नहीं लगाऊंगा
    दो चार रूपये ,दान धर्म समझ कर दे दूंगा

    jai baba banaras.........

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  7. चौबेजी छब्बे जी बन ने गए दूबेजी रह गए

    सही बात है !

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  8. वाह ! बहुत रोचक कहानी.. जिंदगी भी तो कुछ ऐसे ही भरमाती है...

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  9. bahut sundar...hot hai kabhi kabhi aisa bhi..

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