आओ बच्चों आज तुम्हें एक कहानी सुनाऊं
बिल्ली की दबी चाल में चेहरे के नक़ाब हटाऊं


रश्मि प्रभा

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झूठी बिल्ली और भ्रष्टाचार

एक जंगल था उसमे सारे जानवर और पक्षी मिलकर रहते थे जैसे भालू ,बकरी, तोता ,कुत्ता ,बिल्ली आदि आदि |
एक दिन
सबने सोचा आज खीर बनाई जाय रोज रोज दाना ,घास खाते खाते उब गये सभी लोगो की राय से तय हुआ खीर बनाने का काम |कोई लकड़ी लाया ,कोई दूध लाया कोई चीनी लाया ,कोई बड़ा पतीला लाया जिसका जैसा सामर्थ्य उस हिसाब से हर कोई सामान लाया |खीर बनाई गई सबने खूब पेट भरकर खीर खाई थोड़ी बच गई उसे रख दी यः कहकर की शाम को आपस में बांटकर खा लेंगे और सब अपने काम पर जाने लगे |बिल्ली अपने सर पर कपडा बांधकर सो गई से सबने पूछा ?चलो बिल्ली मौसी तुम भी चलो |
मेरे सर में दर्द है मै यही रहकर आज आराम करुँगी |
सब अपने काम पर चले गये |
बिल्ली मौसी की निगाह तो बची हुई खीर पर थी जैसे ही सब लोग गये झट से उठी और सारी खीर चट की और वापिस अपनी जगह पर आकार सो गई |एक - एक कर सारे पक्षी और जानवर वापिस आ गये |
उन्होंने देखा बिल्ली अभी भी सोई है सभी उसके हाल पूछने लगे |
बिल्ली टस से मस नहीं हुई |
सबको भूख लग रही थी खी बची है यः सोचकर किसी ने बाहर कुछ भी नहीं खाया |
जब बची हुई खीर का बर्तन खोला तो देखा बर्तन खाली था सब लोग आपस में एक दूसरे से पूछने लगे की खीर किसने खाई |खरगोश ने कहा -बिल्ली मौसी से पूछो शायद उसने किसी को खाते देखा हो ?
तब बिल्ली मौसी अलसाई सी उनीदी आँखों का नाटक करके बोली -मै तो सुबह से ही सोई हूँ मै ने तो किसी को नहीं देखा |
अब सब जानवरों और पक्षियों ने तय किया की एक सूखे कुए में कच्चे धागे से झूला बांधा जाय और बारी बारी से सब बैठते जाय जिसने खीर खाई होगी झूला टूट जायगा और उसे अपने आप चोरी की सजा मिल जायगी |
तुरंत झूला बांधा गया |
बारी बारी से सब बैठते गये जैसे तोता बैठा तो उसने कहा - मिठू -मिठू मैंने खीर खाई हो तो झूला टूट जाय |
चिड़िया बैठी -बोली ची -ची मैंने खीर खाई हो तो झूला टूट जाय |झूला नहीं टूटा |
बकरी बैठी -बोली -में -में मैंने खीर खाई होतो झूला टूट जाय झूला नहीं टूटा \
अब बिल्ली मौसी की बारी आई (उसने मन ही मन सोचा ऐसे कोई झूला टूटता है क्या ?झूले को क्या मालूम की मैंने खीर खाई है )
म्याऊं -म्याऊं मैंने खीर खाई हो तो झूला टूट जाय ऐसा कहना था; बिल्ली का, कि झूला टूट गया और बिल्ली सूखे कुए में गिर गई और लहूलुहान हो गई |
ऐसा था जंगल का न्याय और उस न्याय पर सबका विश्वास |
अब इस कहानी को उल्टा ले |बची हुई खीर को रखने के बाद जब सब बाहर चले गये तब सबके मन में विचार आया की शाम को तो बिलकुल थोड़ी ही खीर मिलेगी चलो अभी ही थोड़ी खा ली जाय |एक -एक कर सारे आये और खीर खाकर चले गये |शाम को वापिस आने पर देखते है की खीर का कटोरा तो खाली था |सभी एक दूसरे पर आरोप लगाने लगे खीर खत्म करने के लिए |न ही किसी ने सुझाव दिया की सभा बैठाई जाय ,या पता लगाया जाय की खीर की चोरी किसने की ?ठीक इसी तरह हम भष्टाचार का आरोप एक दूसरे पर लगाते रहते है |

बड़े से बड़ा मंत्री कहते है! देश में भ्रष्टाचार हो रहा है |
बड़ी से बड़े संत ?कहते है! देश में भ्रष्टाचार हो रहा है |
बड़े से बड़े उद्योगपति कहते है !देश में भ्रष्टाचार हो रहा है |
सत्ता में बैठे लोग कहते है ! देश में भ्रष्टाचार हो रहा है |
विपक्ष में बैठे लोग कहते है !देश में भ्रष्टाचार हो रहा है |
सरकारी कर्मचारी अपनी पहचान निकालकर जनगणना में अपनी ड्युटी रद्द करवाते है वो भ्रष्टाचार नहीं है ?
निजी कम्पनियों के "विभाग "अपनी कंपनियों के कार्य सरकारी लोगो को" दीपावली 'देकर करवाते है क्या वो भ्रष्टाचार नहीं है ?
क्या सरकार में हमारे लोग नहीं है ?दूसरे देश के है ?
क्या हम कभी संतो के प्रवचन नहीं सुनते ?
क्या हममे से ही उद्योग पति नहीं है ?
सत्ता में हो या विपक्ष में क्या हम नहीं है वहाँ ?
एक बिल्ली के लालच ने सबकी लालसा के दरवाजे खोल दिए |
कितु दिन भर भूखे रहकर ईमानदार रहते हुए सिद्धांतों पर चलने वाले पक्षियों और जानवरों का सबक क्यों नहीं ले पाए ....

शोभना चौरे
वेदना तो हूँ पर संवेदना नहीं,
सह तो हूँ पर अनुभूति नहीं,
मौजूद तो हूँ पर एहसास नहीं,
ज़िन्दगी तो हूँ पर जिंदादिल नहीं,
मनुष्य तो हूँ पर मनुष्यता नहीं ,
विचार तो हूँ पर अभिव्यक्ति नहीं|

4 comments:

  1. बेहतरीन प्रस्‍तुति के लिये आभार ।

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  2. शानदार प्रस्तुति!!

    माननीय शोभना चौरे जी से क्षमायाचना सहित कहानी आगे बढा्ते है…

    सभा भी हुई। झूला बनाने का निर्णय लिया गया। सभी जानवरों को झूले का ठेका लेने अपार रुचि थी। सोच रहे थे कि यदि यह झूला बनाने का ठेका मिल जाय तो ऐसा झूला बनाउं कि रोज झूलूं तब भी न टूटे। अन्तत: सभी ने मिल कर ठेका लिया। और मजबूत झूला बना दिया। अब जंगल में जब भी निर्णय की जरूरत पडती है, कोई भी जानवर आनंद से झूला झूलकर कुंए से बाहर चला आता है।

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  3. भ्रष्टाचार में हम भी बराबर के सहयोगी हैं ...
    सिर्फ प्रवचन सुनने से ही भला होता तो , जिस तरह से प्रवचन कर्ताओं की बाढ़ आयी हुई है , रामराज्य तो आ ही जाना था अब तक ..
    अच्छी प्रस्तुति !

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  4. बेहद प्रभावशाली अवलोकन्……………सोचने को विवश करता है।

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