भूमिका तो वे बनाते हैं जिन्हें ज़मीन खींचनी होती है

जिनकी ज़मीन है
उनके लिए भूमिका कैसी !
मुझे जीना है ... मरने से पहले, बस कुछ अपने लिए


रश्मि प्रभा
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आत्मदाह



कोशिशें,
किसी उपग्रह से असफलता का चक्कर लगाती हुईं
मेरे ज़ख्मों की डायरी को दीमक बनकर चाट गयीं !
भावनाएं,
अनियंत्रित चुम्बकीय मान्यताओं से चिपक कर ठूँठ हो गयीं
और सपने ,
आँखों की गहराई नापते-नापते सागर की सच्चाई हो गए !
फिर भी मेरा विश्वास
हाथों में बहारों का राजाज्ञा -पत्र लिए यूँ ही
राजमहल की सड़कों पर पसरे-पसरे
उस सोने की मेहराब को देखता रहा ,
जिसका
कम से कम एक अणु
मेरे संकल्प का पुनर्जनम है ,
मेरे ख़ून की शहादत है !
मगर आज
मैं तुम्हारा राजाज्ञा-पत्र तुम्हें वापस करता हूँ,
तुम
मेरी क्रांति को मुक्त कर दो!
मुझे मेरा वह अणु लौटा दो,
जिसकी आँच में
अपने लहू को खौलाकर फिर से पी सकूँ ,
और आत्मदाह की पीड़ा से मुक्त होकर
कम से कम क्षण भर और जी सकूँ !

मेरा फोटो-ज्ञानचंद मर्मज्ञ
मैंने अपने को हमेशा देश और समाज के दर्द से जुड़ा पाया. व्यवस्था के इस बाज़ार में मजबूरियों का मोल-भाव करते कई बार उन चेहरों को देखा, जिन्हें पहचान कर मेरा विश्वास तिल-तिल कर मरता रहा. जो मैं ने अपने आसपास देखा वही दूर तक फैला दिखा. शोषण, अत्याचार, अव्यवस्था, सामजिक व नैतिक मूल्यों का पतन, धोखा और हवस.... इन्हीं संवेदनाओं ने मेरे 'कवि' को जन्म दिया और फिर प्रस्फुटित हुईं वो कवितायें,जिन्हें मैं मुक्त कंठ से जी भर गा सकता था....... !

10 comments:

  1. वाह ...बहुत ही सुन्‍दर प्रस्‍तुति ।

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  2. गहन चिंतन के साथ अच्छी प्रस्तुति

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  3. किसी उपग्रह से असफलता का चक्कर लगाती हुईं
    मेरे ज़ख्मों की डायरी को दीमक बनकर चाट गयीं !

    वाह, क्या बात है ! बहुत सुन्दर रचना !

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  4. मेरे मन की गहराईयों से
    ख़ुशियाँ
    उभरती रहती हैं
    पल पल , हर पल

    सागर है मन मेरा
    और दूध विचार
    मंथन में मगन हैं
    ख़ुद मेरे रौशन और तारीक जज़्बे

    बस अब क़रीब है अमृत
    और फिर मैं हो जाऊँगा मुक्त
    हरेक दाह-प्रदाह से
    ज़मीर की मौत से
    और जी सकूंगा
    एक इंसान की तरह
    सत्य के परमाणु के साथ
    जग को रौशन करता हुआ

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  5. बेहद गहन और उम्दा प्रस्तुति।

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  6. too good sir ji,

    bahut achhi prastuti!

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  7. बहुत ही सुन्‍दर प्रस्‍तुति ।

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  8. इस सशक्त रचना से परिचय कराने के लिए आभार।

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  9. मर्मग्य जी पुनः बधाई स्वीकारें, रचना वाकई काबिले तारीफ़ है.

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  10. आद. रश्मि जी,
    मेरी कविता "आत्मदाह" को वटवृक्ष पर सम्मान देने के लिए धन्यवाद और आभार !

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