कभी तो समझो इस इंतज़ार को
कभी तो ...
पूरा दिन गुज़रता है एक आवाज़ के लिए
हाँ तुमसे कुछ सुनने के लिए ....




रश्मि प्रभा




===========================================================


हाउस वाइफ

फोन.. शांत,
कोने में .. एकांत,
तुम्हारा स्वर आए
तरसती हूं
दिनभर।
करती हूं इंतज़ार
शाम का,
घर आओगे
जी भर तुझसे बतियाऊंगी
हां, उस एक क्षण की
सुख-शांति के लिए
करती हूं
दिन-भर
तुम्हारा इंतज़ार
इस घर की चहारदीवारी
मनहूस-सी लगती मुझे
इसके बाहर भी तो है संसार
ले जाओगे मुझे
मोतीझील,
धर्मशाला,
चौक कल्याणी,
कहीं भी ...
कहीं भी ....
करती हूं इंतज़ार।
आते हो थके से ,
पर शांत फोन
अचानक ही
घनघना जाता है
और तुम
हो जाते हो व्यस्त
दिन भर का
मेरा इंतज़ार
रह जाता है इंतज़ार
और मन
हो जाता है त्रस्त .
My Photo
मनोज कुमार,
09831841741
ए मौला ज़्यादा नहीं , दे कुछ तो औक़ात
सर को ऊँचा कर सकूँ , मैं मानुष की जात

22 comments:

  1. कभी तो समझो इस इंतज़ार को
    कभी तो ...
    पूरा दिन गुज़रता है एक आवाज़ के लिए

    बहुत ही सुन्‍दर शब्‍द रचना ..इस बेहतरीन अभिव्‍यक्ति के लिये आभार ।

    ReplyDelete
  2. स्त्री मनोभावों का बेहतरीन विश्लेषण किया है इस कविता मे…………सार्थक रचना।

    ReplyDelete
  3. पुरुष होकर स्त्री मनोदशा का चित्रण करना बहुत मुश्किल होता है परन्तु मनोज जी ने बेहद खूबसूरती से स्त्री मानोभावों को उकेरा है. साधुवाद ! नमन !

    ReplyDelete
  4. बहुत ही सटिक चित्रण किया है आज के परिवेश में.........बहुत सुंदर

    ReplyDelete
  5. मनोज जी कभी किसी कवि ने इतनी सहजता से गृहणी के मनोभावों को नहीं पढ़ा होगा... सुन्दर कविता..

    ReplyDelete
  6. ये कविता तो मुझे अच्छी तरह याद थी...यहाँ पढना भी अच्छा लगा !

    ReplyDelete
  7. मोतीझील,
    धर्मशाला,
    चौक कल्याणी

    मुज़फ़्फ़रपुर की याद आ गई। खूबसूरत कविता। बधाई स्वीकारें।

    ReplyDelete
  8. aaw...!

    sach.. sundar aur sateek!
    perfect.

    ReplyDelete
  9. @ विश्व दीपक जी,
    हम कोलकाता, दिल्ली, चेन्नई या मुम्बई में रहें, प्रतीक तो अपनी धरती के ही याद आते हैं।

    ReplyDelete
  10. व्यस्त पति की पत्नी की त्रासदी खूब बयाँ की है आपने...बधाई
    नीरज

    ReplyDelete
  11. shayad yeh har ghar ki cyatha katha hai... behtarin prastuti...

    ReplyDelete
  12. ek gahrelu stri ki mano dasha ka sajeev chitran
    wah bhai wah!

    ReplyDelete
  13. हाउस वाइफ का दर्द वाकई बहुत शिद्दत से प्रस्तुत किया है और इसको वही बयान कर सकता है जो झेल रहा है. लेकिन मनोज जी आपने प्रस्तुत किया - तब तो सोचना पड़ेगा कि ये कैसे हुआ?

    ReplyDelete
  14. वाह जी, एक हसबंड एक वाइफ के दर्द को इतनी अच्छी तरह पेश करेगा ये तो वाकई काबीले तारीफ है ...

    ReplyDelete
  15. कितना सरल, सच्चा ,सीधा और सुन्दर बिम्ब प्रतिबिम्बित किया है, मनोज जी आपने। वाह!

    ReplyDelete
  16. एक हाउस वाइफ की मनोदशा ....उसकी आशाओं..आकांक्षाओं और निराश मन का बड़ी संजीदगी और कुशलता से चित्रण किया है...

    ReplyDelete
  17. यह इंतज़ार भी क्या गज़ब चीज़ है..
    पर मोबाइल ने अपना ये नकारात्मक पहलु काफी गहरा छोड़ा है..
    सुन्दर अभिव्यक्ति...

    ReplyDelete
  18. एक हाउस वाइफ कि मनोदशा को बहुत बारीखी से लिखा है |बधाई
    आशा

    ReplyDelete
  19. मनोज जी की रचना में उनके ब्लॉग पर पढ़ चुकी थी... परन्तु आपके शब्दों ने उसे सारांश दे दिया...

    ReplyDelete
  20. सच , मनोज जी ने बहुत ही अच्छी तरह से पत्नी की मनोदशा का वर्णन किया है। सुन्दर प्रस्तुति।

    ReplyDelete

 
Top