नैनं छिन्दन्ति शस्त्राणि नैनं दहति पावकः।

न चैनं क्लेदयन्त्यापो न शोषयति मारुतः।।


रश्मि प्रभा







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THE GHOST (भूत)

होटल ब्रिस्टल पहुंच कर सीधे रिसेप्शन पर गया। काउंन्टर पर वोही चिर परिचित चेहरा। एक हसीन कमसिन खूबसूरत लडकी, जिसे देख कर कोई फिल्मी हीरोईन भी गश खा कर गिर पडे। उसे देख कर अक्सर सोचता हूं, कि होटल की मामूली नौकरी क्यों कर रही है। मुझे देख कर रिसेप्शन पर बैठी वो नाजुक परी हसीन लड़की जो रजिस्टर में कुछ लिख रही थी, सिर उठा कर हल्के से मुस्कुरा कर बोली “आइए मिस्टर भाटिया”
“मेरा नाम आप भूली नहीं।“
“आप हमारे होटल के रेगुलर कस्टमर हैं, पिछले तीन सालों से आप को इस होटल में रगुलर हर महीने देख रही हूं।“
“वैसे आप की जानकारी के लिए बता दूं कि जब से यह होटल खुला है, लगभग छः साल पहले, तब से जब भी नवयुग सिटी आता हूं, यही पर ठहरता हूं।“
“शुक्रिया, जानकारी देने का। लेकिन आप को भी जानकारी दे दूं कि मैं पिछले तीन सालो से यहां नौकरी कर रही हूं, तभी से आपको देख रही हूं और आपके बारे मे जानती हूं।“
“अच्छा श्वेता जी, इस बार हमे किस कमरे मे ठूसां जाएगा।“
“मजाक अच्छा कर लेते हैं आप।“
“बस आपका हंसमुख चेहरा देख कर कुछ दिल्लगी सूझ जाती है, वेसे आप के अलावा मुझे यहां स्टाफ कुछ अजीब सा लगता है।“
“ऐसी कोई बात नही है। स्टाफ अच्छा है। वैसे इस बार भी आपको उसी कमरे मे ठूंस दिया जाए तो कैसा रहेगा।“
“यानी कमरा नम्बर।“
“110, मुझ से पहले ही श्वेता खिलखिला कर बोली।“
“जो हुक्म सरकार का।“
“आखिर खास मेहमानों का कुझ खास ही ख्याल तो अवश्य ही रखना चाहिए ना।“
इतना कहते कहते श्वेता ने रजिस्टर मेरे सामने कर दिया, मेरा पूरा विवरण उसको याद था। मैने सिर्फ साइन करने थे। मजाक मे स्टाम्प पैड भी आगे सरका दिया।
“सब कुछ लिख दिया है, बस अंगूठा लगा दीजिए।“
“अपना भी कुछ स्टेटस है, यह बात कुछ अलग है कि अंग्रेजी मे एम.ए. चाहे हिन्दी मीडियम मे की है। अखिर वो भी रायल डीविजन मे। हस्ताछर तो अवश्य करेगें।“
रजिस्टर मे साइन करने के बाद मैं कमरा नम्बर 110 की तरफ चल पडा़। श्वेता ने रजिस्टर में एंट्री करते समय ही रूम सर्विस को फोन पर कमरे को दुरूस्त करने के लिए पहले ही कह दिया था। जब तक कमरा दुरूस्त होता, तब तक श्वेता मेरे साथ बातें करती रही। वेसे तो होटल ब्रिस्टल के सारे कमरे अच्छे हैं, लेकिन कमरा नम्बर 110 की खास्हियत उसकी बड़ी खिड़की थी, जो कि कमरे की चैड़ाई लगभग 12 फीट की थी। दो दिवारों के बीच पूरी खिड़की, जिससे शहर का चोडा हाईवे पूरा साफ दिखाई देता था।। हाईवे के पीछे खूबसूरत झील, जहां देर रात तक रौशनी और रौनक रहती है। रंग बिरंगी लाईटो के बीच झील और भी अधिक खूबसूरत लगती है। जहां देर रात तक बोटिंग की सुविधा है। झील के बीच मे फ्लोटिंग रेस्टोरेंट और साथ एक बडा़ डिस्ट्रिक पार्क। पार्क तो रात आठ बजे बंद हो जाता है। सुबह जोगिंग और मोरनिंग वॉक करने वालो की अच्छी भीड़ रहती है। पार्क खत्म होने के बाद पहाडी इलाका शुरू हो जाता है। नवयुग सिटी से कुल मिला कर 30 किलोमीटर पर एक छोटा सा हिल स्टेशन है, न्यूसमर हिल जहां पूरे साल बारह महीने खुशनुमा मौसम रहता है, न ज्यादा गर्मी न ज्यादा सर्दी।
नवयुग सिटी मे लगभग हर महीने ही व्यापार के सिलसिले में आना रहता है। सिटी से लगभग पांच किलोमीटर दूर औधोगिक क्षेत्र में ईकाईयों मे कच्चा माल सप्लाई हेतु और पेमेन्ट कैलेक्शन के लिए। लगभग दस वर्ष पहले यहां औधोगिक क्षेत्र की स्थापना हुई थी। एक खूबसूरत पलानिंग के साथ, कि पोलुशन का नामो निशान ही नहीं है। औधोगिक क्षेत्र के साथ साथ सिटी की स्थापना भी खूबसूरत पलानिंग के साथ की गई है। ऐसी सिटी और औधोगिक क्षेत्र का पूरे भारत वर्ष मे कोई मुकाबला नहीं है। जिसे हम कल्पना कहते है। उसे सरकार ने सार्थक कर के दिखाया नवयुग सिटी ने।
कमरे मे पहुंच कर हाथ मुंह धोने के पश्चात कुर्सी खिड़की के पास खिसका कर झील की रंग बिरंगी लाईटों का आनन्द उठाने लगा। क्योंकि सास बहू और कभी न खत्म होने वाले दूसरे सीरियलों मे मेरी कभी कोई रूचि नहीं रही, इसीलिए टीवी ऑन नहीं किया और आईपॉड कान से लगा कर संगीत के साथ साथ झील और न्यूसमर हिल की झिलमिलाती बतियों का आनन्द लेने लगा। रात को दूर तक जहां भी नजर जाती है, एक आर्कषक, कभी नहीं भूलने वाला नजारा दिखाई देता। बहुत देर तक संगीत सुनने के बाद आंखे नींद से बोझिल होने लगी, तब लाईट बंद करके बिस्तर पर लेट गया। सारा दिन व्यापार की भागदौड से शरीर शिथिल हो चुका था, फौरन ही नींद आ गई।
सुबह जल्दी नींद खुल गई। पांच बजे थे, रूम सर्विस छः बजे शुरू होती थी, कमरे से बाहर आ कर लम्बी लॉबी मे टहलने लगा। सुबह के समय मौसम खुशनुमा था, हलकी सी ठंडक के साथ सड़क पार डिस्ट्रिक पार्क से फूलों की खुशबू रूक रूक कर आ रही थी। मनमोहक वातावरण में खुद को रोक नही पाया और सुबह की सैर करने सड़क पार कर डिस्ट्रिक पार्क पहुंच गया। कदम अपने आप हलके से तेज हो गये। लगभग एक घंटे तक सुबह की सैर करने के बाद होटल पहुंचा । नाश्ता करने के बाद औद्योगिक क्षेत्र काम के लिए चल पड़ा। दोहपर के समय काम समाप्ति के बाद होटल पहुंच कर चेक आउट के लिए काउंन्टर पर पहुंचा। आज श्वेता नहीं थी।
“श्वेता नहीं आई,” मै ने रिसेप्शन पर बैठे लड़के से पूछा।“
“सर आज उसका ऑफ डे है।“
पेमेन्ट करने के बाद सीधे रेलवे स्टेशन पहुंच कर दिल्ली के लिए ट्रेन पकड़ी। कुछ दिनों के बाद शाम के समय घर पहुंच कर चाय की चुस्सिकों के बीच टीवी के चैनल बदले हुए न्यूज चैनल पर आ कर ठिठक गया, हाथ से चाय का प्याला छूटते बचा। पत्नी ने हैरानी से पूछा, “क्या बात है, क्या हुआ, क्या सोच रहे हो।“
“यह खबर सुनी।“
“कौन सी।“ चौंकती हुई पत्नी ने पूछा।
“इस लड़की के मर्डर की, यकीन नहीं होता।“
“जानते हो क्या।“ पत्नी ने पूछा।
“यह श्वेता है, होटल ब्रिसटल की रिसेप्शनिस्ट। इसका मर्डर हो गया है।“
श्वेता की लाश होटल के स्टोर रूम में मिली। लाश के ऊपर स्टोर का सामान पड़ा था, तौलिये, चादरें इस प्रकार से रखी पाई गई, जैसे उनहें किसी ने छुया तक न हो। किसी को शक तक नहीं हुआ कि सामान के नीचे श्वेता की लाश पड़ी है। श्वेता को गला घोंट कर मारा गया, इसलिए कहीं खून के निशान नहीं मिले और फिर उसकी लाश को एक कोने में डाल कर स्टोर का सामान उस की लोश के ऊपर रख दिया। लाश को तौलियों, चादरों और अन्य सामान से बड़ी खूबसूरती के साथ ढक दिया। जब श्वेता एक हफ्ते डयूटी पर नहीं आई तो होटल मैनेजमैंट ने उसके घर फोन किया, उसके पति ने बताया कि वह अपने मायके गई है और 10-15 दिनों तक नही आएगी। बिना छुट्टी के श्वेता कभी भी ऐबसेंट नही रहती थी, इसलिए सभी को हैरानी हुई, कि श्वेता ने खुद क्यों खबर नही की। कुछ दिनों के बाद बदबू आने लगी तब श्वेता की लाश सफाई के दौरान स्टोर रूम में पा कर होटल मैनेजमैंट सकते मे आ गया। उसके पति के कहे अनुसार वह अपने मायके गई थी, वह होटल कब आई और कब उसका मर्डर हुआ, होटल मे इस रहस्य को कोई भी सुलझा नहीं सका। जब स्टोर रूम में बदबू आने लगी तब सफाई के दौरान श्वेता की लाश मिली और सब सकते में आ गए। पुलिस पूछताछ के लिए उसके घर गई, लेकिन उसका पति घर से गायाब था। घर पर ताला लगा था, उसके पति का कोई अता पता नहीं था। पड़ोस में उसके पति के बारे में कोई कुछ नही बता सका। लेकिन पुलिस को श्वेता के मर्डर का शक उसके पति पर था, जो बातें पड़ोस से पता चली, वह कुछ चैकाने वाली थी।
श्वेता एक खूबसूरत लड़की, जिस पर सारे कॉलिज के लड़के आशिक थे। घर वालों से बगावत कर के उसने रोहित से शादी की। रोहित वैसे तो श्वेता जैसा खूबसूरत था, लेकिन कुछ शक्की किस्म का लड़का थ। श्वेता हंसमुख सबसे घुलमिल कर बातें करने वाली लड़की थी, दूसरे लड़को से उसका बात करना रोहित को गवारा नही था, वह श्वेता के चरित्र पर शक करने लगा था। खुद तो कुछ काम करता नहीं था, उसका श्वेता की नौकरी पर भी एतराज था। इस बात को ले कर दोनों में काफी झगड़ा भी रहने लगा था। शादी के बाद श्वेता के घर वालों ने भी संमबन्ध तोड लिए थे, इसलिए वह मायके भी नहीं जाती थी और घर चलाने की खातिर होटल ब्रिस्टल में रिसेपशनिस्ट की नौकरी कर रही थी। लाश मिलने पर रोहित शहर से गायब हो गया और पुलिस उसे ढूंढ नही सकी, उसकी लाश को लेने जब श्वेता के मायके से भी कोई नही आया, तब होटल मैनेजमैंट ने उसका अन्तिम संस्कार किया।
इस बार जब नवयुग सिटी गया तो काफी भारी मन से होटल ब्रिस्टल मे एंटर हुआ। बार बार आंखे श्वेता का ढूंढ रही थी, मन मानने को तैयार नहीं था कि श्वेता अब इस दुनिया में नही हैं। रिसेप्शन पर कोई नयी लड़की बैठी थी। कमरे मे पहुंच कर आराम कर रहा था। चाय देने बैरा कालूराम आया, चुपचाप टेबल पर चाय रख कर जाने लगा, तब मैने उसे रोका।
“कालूराम, क्या हुआ था, श्वेता को।“
“बस साब जी कुछ मत पूछो, हमें तो यकीन नहीं होता है. सब उसके पति ने किया था। खुद तो निक्कमा था, बेचारी पर शक करता था।“
“क्या पकड़ा गया।“
“पता नही कहां भाग गया, अभी भी पुलिस नहीं खोज सकी।“ कह कर कालूराम चला गया।
रात को अचानक से नींद खुल गई। काफी देर तक करवटें बदलता रहा, आंखों के सामने बार बार श्वेता का हसीन चेहरा सामने आ जाता था। कमरे का दरवाजा खोल कर होटल की गैलरी में टहलने लगा। हल्की हल्की हवा चल रही थी और कुछ ठंडक भी थी। सामने हाईवे को देखने लगा। हाईवे आज सुनसान था। आसमान में हल्के बादलों की वजह से आज न्यूसमर हिल की लाईटें भी नजर नही आ रही थी। तभी कुछ अहसास हुया कि गैलरी में काई और भी है। पीछे मुड़ कर देखा कि एक खूबसूरत लड़की बहुत सारे तौलिये और चादरें ले कर आ रही है। सोचा कि रूम सर्विस में काम करती होगी, लेकिन जब वह लड़की मेरे पास से गुजरी तो मेरा सारा बदन उस हल्की ठंड मे भी पसीने से तर बतर हो गया। सफेद साड़ी मे मुझे ऐसा लगा कि वह श्वेता थी, लेकिन वह चुपचाप स्टोर रूम की तरफ चली गई। कौन थी वो। श्वेता जैसी लग रही थी, लेकिन वापस वह नही आई। मैं काफी देर तक इन्तजार करता रहा। अपने स्थान से मै हिल भी नहीं सका। कुछ देर बाद हिम्मत जुटा कर कमरे में आया लेकिन नींद नही आई। बार बार वोही लड़की आंखों के सामने आ जाती थी। काफी देर बाद जब सुबह होने लगी, तब जा कर कब आंख लगी, मालूम ही नहीं । दिन निकल आया था और सूरज काफी ऊपर चढ़ चुका था। नींद खुली, लेकिन आंखे बोझिल थी, रात की धटना ने पूरे बदन को झंझोर कर रख डाला था। हिम्मत कर के नहाने के लिये बाथरूम गया, ताकि किसी तरह नींद खुले। नहाने के बाद नाश्ते का आर्डर दिया। कालूराम ने टेबल पर नाश्ता रखा और चुपचाप वापस जाने लगा।
मैंने कालूराम को रोक कर पूछा “कालूराम रात को लगभग दो बजे नींद खुल गई थी तो टाइम पास करने के लिए बाहर गैरली में टहल रहा था, एक लड़की बिलकुल श्वेता जैसी बहुत सारे तौलिये और चादरें ले कर देखी, कुछ समझ में नही आया कि माजरा क्या है।“
पहले तो कालूराम चुप रहा लेकिन मेरे बार बार आग्रह करने के बाद कालूराम ने धीरे धीरे कहना शुरू किया “हां साब जी, जिसको आपने देखा, वह लड़की श्वेता ही थी। उस रात, जब उसका कत्ल हुया था, वह नाईट डयूटी पर थी। दिन की डयूटी वाला स्टोर कीपर अपने साथ स्टोर की गलती से चाबी ले गया था, नाईट डयूटी वाले स्टोर कीपर ने श्वेता से डुपलीकेट चाबी मांगी, जब काफी देर तक स्टोर कीपर ने चाबी वापिस नहीं की, तो श्वेता स्टोर रूम गई। उस रात श्वेता का पति भी होटल आया था रात को, यह बात होटल के दरबान ने कही थी। श्वेता का पति शक्की था, उसे श्वेता का नाईट डयूटी पसन्द नही था और वह उसके चरित्र पर शक करता था। अकसर उन दोनो मे झगड़ा होता रहता था। वह श्वेता के पीछे स्टोर रूम में पहुंच गया, वहां दोनो मे काफी झगड़ा हुया, यह बात स्टोर कीपर ने बताई थी। उन दोनो के झगड़ने पर पहले उसने बीच बचाव किया, लेकिन पति पत्नी के बीच नही पड़ने के लिये रोहित ने उसे धमकाया, तब वह स्टोर रूम से बाहर चला गया। उनका झगड़ा बढ गया और रोहित ने श्वेता को उसी के दुपप्टे से गला धोंट कर उसका खून कर दिया। उसकी लाश को स्टोर रूम में तौलियों और चादरों के नीचे ढक कर चला गया। जब स्टोर कीपर वापस स्टोर रूम पहुंचा, तब उसे वहां न तो रोहित मिला और न ही श्वेता। क्योंकि रोहित को आते देखा गया था, इसलिए जब श्वेता कहीं नजर नही आई तब हमने यह समझा कि वह रोहित के साथ वापिस चली गई होगी, लेकिन हमें नही मालूम था कि वो तो हमेशा के लिये हम सब को छोड़ कर चली गयी हैं। साब जी श्वेता की लाश मिलने के बाद से रोहित गायब है और आज तक पुलिस उसे ढूढ नही सकी है। श्वेता उस दिन के बाद हर रात दो बजे, जब उसका मर्डर हुया था, गैलरी में तौलियो और चादरों के साथ दिखाई देती है। वह किसी को कुछ नही कहती। शायद वह रोहित का इन्तजार करती है। मुझे लगता है कि वह रोहित से बदला लेगी।“ इतना कह कर कालूराम रूआंसा हो कर चला गया।
इस बात को अब कई वर्ष बीत गये हैं, जब भी होटल ब्रिस्टल में ठहरता हूं, नींद अपने आप ही रात को खुल जाती है, कदम खुद बखुद अपने आप होटल की गैलरी में खिचे चले जाते है, श्वेता चुपचाप सीडियों से आती दिखायी देती है, उसके हाथ में बहुत सारे तौलिये और चादरें होती है। वह स्टोर रुम की तरफ चली जाती है, कभी हिम्मत नही हुई कि उसके पीछे जाऊ या उसके साथ कोई बात कर सकूं। पुलिस ने अब उसके मर्डर की फाईल भी बंद कर दी है, लेकिन श्वेता का भूत रोज रात को होटल ब्रिस्टल की गैलरी मे दिखायी देता है।
इस बार काम समाप्त होने में काफी देर हो गई। मेरा रात की ट्रेन पकड़ कर वापस दिल्ली जाने का कार्यक्रम था। देरी के कारण ट्रेन छूट गई और मुझे होटल में रात गुजारनी पड़ी। जब होटल ब्रिस्टल में पहुंचा तो रात के ग्यारह बज रहे थे। बारिश भी मूसलाधार होने लगी।
“साब जी गरमा गरम खाना रेस्टारेंट में खा लिजिए, आपका सामान मैं कमरे मे रख देता हूं।“ कालूराम ने कहा।
खाना खाने के बाद कुछ देर तक कमरे में मैं आईपॉड में मन पसन्द गीत सुनता रहा। संगीत सुनते सुनते नींद आ गई। रात के दो बजे अपने आप नींद खुल गई। हर बार की भांती इस बार भी कदम अपने आप गैलरी जाने के लिये तैयार हो गये, लेकिन जैसे ही मैं ने कमरे का दरवाजा खोला, मैं दंग रह गया, दरवाजे पर श्वेता का भूत था। मेरा शरीर एक दम जकड़ गया, पसीने छूटने लगे।
“घबराईये मत मिस्टर भाटिया, आपको कुछ नही होगा, आप एक अच्छे इंसान हैं।“ श्वेता के भूत ने कहा।
मेरी बोलती बंद हो गई।
श्वेता के भूत ने कहना शुरू किया, आज आप जिस फैक्टरी में काम से गये थे, वहां आपके परिचित बंसल साहब के साथ एक स्मार्ट सा युवक था, जानते
हो वो कौन था।“
बड़ी मुश्किल से नही कह सका।
“वह रोहित है।“
“क्या।“ मैं सन्न रह गया।
“आपको मेरा एक काम करना पडेगा, मुझे रोहित से मिलना है, इस समय। मुझे आप उस फैक्टरी के गेस्ट हाऊस ले चलिये। काफी साल हो गए हैं, रोहित का इंतजार करते हुए। अब जब पुलिस ने फाईल बंद कर दी है, तब वो नवयुग सिटी में आया है।“
“इस समय, कोई सवारी भी नहीं मिलेगी।“ मैंने कहा।
“आप चलिये, होटल के बाहर एक ऑटो खड़ा है।“
मेरी समझ में कुछ नही आ रहा था, जैसे श्वेता कहती गई, मैं चुपचाप करता गया। रात के दो बजे सुनसान सड़को को चीरते हुए फैक्टरी जा पहुंचे। रोहित उस समय गेस्ट हाऊस में सो रहा था । श्वेता ने उस कमरे का दरवाजा खटखटाया। रोहित गहरी नींद मे था, उसे उठ कर दरवाजा खोलने मे कुछ समय लगा। रोहित आधी नींद मे था।
“कौन।“ उसने पूछा।
“मुझे मार कर चैन की नींद सो रहे हो।“ श्वेता ने कहा।
“श्वेता, न न… यह नहीं हो सकता।“ रोहित ने आश्चर्य से कहा। उसकी सिट्टी पिट्टी गुम हो चुकी थी।
“रोहित तुम समझते थे कि आज दस साल बाद तुमहे यहां कौन पहचानेगा, जब पुलिस ने भी केस फाईल बंद कर दी है। यही तुम्हारी भूल थी, मुझे मार कर तुम आनन्द की जिन्दगी कैसे जी सकते हो। मेरे जैसा तुम्हारा भी अन्त होना है। मैं नही भूली, तुम कैसे भूल गये कि हम दोनो ने साथ जीने मरने की कसमें खाई थी। मेरे कितने दिवाने थे, तुम मेरे, उससे ज्यादा मैं तुम्हारी दिवानी थी। कितना प्यार था, हम दोनो मैं। शादी के बाद तुम कितने बदल गये थे। मुझ पर शक करने लगे थे। सोचा था, सब ठीक हो जाएगा, जब तुम्हे नौकरी मिल जायेगी। तुम तो सिर्फ आराम की जिन्दगी बिताना चाहते थे, तुम्हारी नजर मेरे पिता की दौलत पर थी, जब शादी के बाद उन्होने रिश्ता तोड़ दिया तो तुमने नजरे ही फेर ली। तुम मुझ पर शक करने लगे। मुझे मार कर तुम क्या सोचते थे कि कि चैन की जिन्दगी बिता सकोगे, नही रोहित अब हम मिल गये हैं। आ जाऔ रोहित, चले, अब इकट्टे रहते हैं।“ श्वेता कहती गई, मैं सुनता रहा। लेकिन यह सुन कर रोहित मुझे धक्का दे कर भागा।
भागते भागते रोहित मेन रोड़ पर आ गया, सड़क पार करते हुए वह एक तेजी से आते ट्रक से टकरा गया । ट्रक निकल गया लेकिन रोहित बेजान लहु लुहान सड़क पर पड़ा था। अब उसकी सिर्फ लाश खून से लथपथ लावारिस सी पड़ी थी। चारों तरफ देखा, श्वेता कहीं नजर नही आ रही थी। मैं होटल वापिस आ गया।
उस दिन के बाद श्वेता का भूत कभी नजर नही आया।
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मनमोहन भाटिया
एक आम व्यक्तित्व, जो कुछ खास करने की इच्छा रखता है। लिखना शौक है। दिल्ली प्रेस की कहानी 2006 प्रतियोगिता में कहानी (लाईसेंस) को द्वितीय पुरस्कार मिल चुका है। अभिव्यक्ति कथा महोत्सव 2008 में कहानी (शिक्षा) पुरस्कृत हो चुकी है। समाचारपत्रों (हिन्दुस्तान टाइम्स, नवभारत टाइम्स, मेल टुङे, ईकोनोमिस टाइम्स) में नियमित रूप से समायिक विषयों पर पत्र छपते रहते हैं। पत्र लगभग 10 वर्षो से छप रहे है. कहानी लिखना 2006 से शुरू किया। कहानियां सरिता, नवभारत टाइम्स, अरगला, अभिव्यक्ति, स्वर्ग विभा और हिन्दी नेस्ट में प्रकाशित हो चुकी हैं।

9 comments:

  1. सुन्‍दर लेखन ...।

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  2. बेहद उम्दा कहानी।

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  3. कहानी ने बांधे रखा ...अनुपमा मर्डर केस याद आ गया ...

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  4. क्या कहूँ... कुछ समझ नहीं आ रहा...
    श्वेता या नवयुग सिटी की सुन्दरता बाँटनें का शुक्रिया करूँ... या जो श्वेता के साथ हुआ उसका दुःख...
    सच दुनिया में कैसे-कैसे लोग होते हैं ये अभी-भी समझ से बाहर है...
    परन्तु यह घटना प्रस्तुत करने के लिए बहुत-बहुत धन्यवाद...

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  5. अच्छी लगी कहानी

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  6. रोमांचक कहानी
    सुन्‍दर लेखन अच्छी लग

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