बात अपने खून की होती है , दूसरे का खून पानी होता है - दर्द की भी क्या परिभाषा है !

जहाँ ज़िन्दगी मौत सी सूनसान हो , वहाँ अपनत्व के ख्याल का कतरा ... लगता है जैसे

दिल-दिमाग पर कोई हथौड़ा चला रहा हो !!!

 

 

रश्मि प्रभा




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खून अपना पराया



वो रो रही थी | हाथ जोड़ रही थी | तुमने घर के सभी लोगो को मार दिया | हमने क्या बिगाड़ा था | तुम्हें कहा भी था – घर में जो कुछ भी है ले जाओ तुम, पर तुम लोग नहीं माने .. माना हमारे दिन दरिद्रता में गुजर रहे है किन्तु घर में राशन- पानी, शादी के गहने बर्तन हैं, सब ले जाओ सब और मुझे भी मार दो पर मेरी इस दुधमुँह बच्ची को तो छोड़ दो, वो किसी को नहीं पहचान सकती | तुम्हारा कभी कुछ नहीं बिगाड़ेगी | सामने खड़े नौ कातिलों में से किसी के भी चेहरे पर कोई भी दया का भाव न उभरा | एक लड़का लगभग उन्नीस साल का, आगे बढ़ा | बच्ची को गोद से छीन लिया| महिला रोती गिडगिडाती रही और पर उस दरिंदे कातिल को रंच मात्र भी दया नहीं आई | उसने बच्ची को पानी के टेंक में फैंक दिया और बाकियों ने महिला का काम तमाम किया | मिल कर घर का सामान लूटा और चल दिए अपने अपने घर को...
कल्लू को चिंता थी कि राकू ( बेटा ) की शादी कैसे होगी और तिस पर मुखिया भवरे की बेटी से | कच्छाबनियान धारी कहते हैं लोग उनके गिरोह को और राकू का गिरोह के मुखिया भवरे पर अच्छी छाप है किन्तु अभी तक राकू ने महज चोरी चकारी, लूटपाट और ठगी ही की थी| कोई बड़ा काम नहीं किया था| अभी तक उसकी गिनती में एक का आंकड़ा भी जमा नहीं था | नाक नीची हो जाती जब बिरादरी वाले पूछते रिश्ता करने चला, पहले बेटे को लायक तो बना| और आज राकू ने कर दिखाया| आज उसने दो की संख्या जोड़ ली| एक दूधपीती और एक जवान |
घर पहुंचा तो राकू की माई बोली -ओए आ गया | इबकी कुछ नया कर के आया भी तू या यूँ हि वापस आ ग्ग्या | कल्लू ने सीना चौड़ा कर के बताया -आज तो दो जोड़ लिए अपने राकू ने, इब तू भवरे से बात चला राकू की शादी की | बैसे आज उस घर के पांच लोगों का सफाया किया | माई ने पूछा वहाँ मारामारी में कोई जोराजारी तो नहीं करनी पड़ी | कल्लू बोला - हां छोटी को तो आराम से बस पानी में .. पर वो जवान लौंडा थोडा तकड़ी काठी का दबंग था सो राकू को परेशानी हुवी तो हमने भी साथ जोर लगा दिया और कर दिया उसको साफ़ .. माई बोली ऐ राकू कहीं चोट तो न लग्गी तुझे , तुझे तो खूब तेल मल कर भ्भेज्जा था | राकू ने दिखाया - कुहनी में खरोंचे थे नाख़ून के | माई का दिल दर्द से भर गया .. पट्टी के लिए चुन्दडी का किनारा फाड़ के हल्दी तेल का मलहम बनाने लगी |

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डॉ नूतन गैरोला 

..http://amritras.blogspot.com/
मेरे बारे में -


जीती रही जन्म जन्म... पुनश्च मरती रही.... मर मर जीती रही पुनः..... चलता रहा सृष्टिक्रम... अंतविहीन पुनरावृत्ति क्रमशः~~~~... पेशे से डॉक्टर / स्त्री रोग विशेषज्ञ... बहुत दुखी देखे है |... जिंदगी और मौत की गुत्थमगुत्था -.. छटपटाता जीवन- घुटने टेकता मिटते देखा है |.. जिंदगी की जंग जीती जाए.. अमृतरस की आस है |..


बहुत कुछ सोचने को है, बहुत कुछ बोलने को है, पर चुप हूँ - देखतीं हूँ आप सभी के क्या विचार हैं |

14 comments:

  1. बेहतरीन प्रस्‍तुति ...।

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  2. अपने पराये के दर्द को सही उभारा है…………चाहे दर्द एक सा हो्ता है मगर अपने पराये का यही फ़र्क होता है।

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  3. उफ!! सम्वेदनाएँ भी कितनी स्वार्थी?

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  4. जहां संवेदना जाग गईं वहीं मानवता वरना पाशविकता.

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  5. ऐसा अमानवीय अपनत्व ?
    धिक्कार है ऐसे अपनेपन पर।

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  6. सोचने को विवश करती मार्मिक लघुकथा।

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  7. अपना खून खून है दूसरों का पानी ...
    मार्मिक कथा !

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  8. राकू ने दिखाया - कुहनी में खरोंचे थे नाख़ून के | माई का दिल दर्द से भर गया .. पट्टी के लिए चुन्दडी का किनारा फाड़ के हल्दी तेल का मलहम बनाने लगी | ..
    ..माँ का दिल माँ का होता है!.. चाहे कैसा भी बेटा हो नहीं देख पाती है वह उसका दुःख अपनी आँखों से ...
    बेहत मार्मिक लघुकथा ..
    प्रस्तुति के लिए आभार

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  9. दर्द के कितने सारे पहलुओं को लिख दिया...

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  10. patthar maarte un logon ko bhi dekha hai jo phoolon se maari chot par kumhlaate hain... main apnee friend ke saas swasoor kee aise hee giroh ke dwara huvi nirmam hatyaa dekhi hai ... un jaise nirdosh nhole bhale nirih logon kee hatya aisee kroorta se kee gayi .aur giroh khule aam fir bhi sahar me any samuhik hatyaaon ko amlijaama pehnata raha ... samaj kee is steethi par rona aata hai ..aur kabhi lagta hai ki ham kitne unsafe hain...

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  11. माँ का दिल ममता से भरा होता है मगर वो एक औरत भी होती है , हाय रे ये दुनिया जहां औरत के दिल भी अब पत्त्थर के होने लगे . आज की दिनिया का कड़वा सत्य शायद यही है भी

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  12. मार्मिक/सुन्दर पोस्ट

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  13. क्या प्रस्तुति थी.. बहुत ही दर्दनाक और सटीक. थोड़ा दिल दहल भी गया.. पर सच को बखूबी प्रस्तुत किया है.

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