चाहा है इन ख़्वाबों से कुछ बातें करूँ
गर्म कॉफ़ी के उठते धुंए से कोई नाता जोडूँ
जाने क्यूँ ये ख्वाब कुछ कहने से कतराते हैं
पर हर सुबह मेरे तकिये को
नम कर जाते हैं ...

रश्मि प्रभा




================================================================
इन बेज़ुबां ख़्वाबों का क्या करूं


एक ख़्बाब मिलता है सुबह सिरहाने,
कैसी बेचैनी है जो तकिए पर लेटी दिखती है।
जहां जाती हूं, घर में पीछे-पीछे चलती है।
लफ़्ज़ हैं कि तितलियों जैसे फड़फड़ाते हैं,
थाम भी लूं तो काग़ज़ पर उतरने से डरते हैं।

आंखों के कोने पर लटका एक आंसू
आज क्यों बाढ़-सा बहने को बेताब है?
क्या उलझन है जो मन में
एक गांठ-सी बनी बैठी है
किसे झकझोरूं, किसको खोलूं।

खिड़की से बाहर आसमां का कोई कोना
अपना नहीं लगता।
नीले-नीले बादलों की नाव
मुझे मंझधार में क्यों छोड़ जाती है
क्यों सब डूबता उतराता-सा लगता है।

सुबह सिरहाने मिला वो ख़्वाब
कुछ कहता ही नहीं,
बस साथ-साथ चलता है।
वो बेचैनी जैसे आंखों में उतर आई है
धूप में भी सब नमनाक दिखता है।

अनु सिंह चौधरी
http://mainghumantu.blogspot.com/
मैं एक प्रशिक्षित टीवी पत्रकार हूं। एनडीटीवी में चार-पांच साल रही। फिर जुड़वां बच्चों को बड़ा करने के लिए नौकरी छोड़ी। पति को सहयोग देने के लिए डॉक्युमेंट्री फिल्में बनाना शुरू किया, और अब डेवलेपमेंट सेक्टर में कम्युनिकेशन्स कंसल्टेंट हूं। थोड़ा बहुत लिखना-पढ़ना यहीं हो पाता है, ब्लॉग पर। वैसे लेखन भी अनायास ही शुरू हुआ।
मेरे बारे में ----
मकसद वो सब कहना है जो सुनती, समझती, देखती, गुनती आई हूं। यहां मेरे दायरे के हर रंग मिलेंगे - गांव की मिट्टी की खुशबू, पर्व-त्यौहारों की रौनक, औरत के कई मूड्स, यहां तक कि राजनीतिक और वैचारिक टिप्पणियां भी। लेकिन सब मेरे अपने विचार होंगे, मेरी सीमित संभावनाओं का दर्पण। भाषा की कोई बाध्यता नहीं होगी, कभी मैं हिंदी में लिखूंगी, कभी अंग्रेज़ी में। और लिख सकी तो भोजपुरी में भी!

22 comments:

  1. सुबह सिरहाने मिला वो ख़्वाब
    कुछ कहता ही नहीं,

    बहुत ही सुन्‍दर भावमय करते शब्‍द ...प्रस्‍तुति के लिये आभार ।

    ReplyDelete
  2. सुबह सिरहाने मिला वो ख़्वाब
    कुछ कहता ही नहीं,
    बस साथ-साथ चलता है।
    **
    yu to sampoorn rachna mukammal aur umda hai. khas kar ye antarang bhaav kamaal ke lage.. aabhar !!

    ReplyDelete
  3. मर्मस्पर्शी खूबसूरत रचना -
    शुभकामनाएं

    ReplyDelete
  4. रश्मि जी,
    शब्दों में प्राण फूंकना आपको भली भांति आता है !
    `आंखों के कोने पर लटका एक आंसू
    आज क्यों बाढ़-सा बहने को बेताब है?
    क्या उलझन है जो मन में
    एक गांठ-सी बनी बैठी है
    किसे झकझोरूं, किसको खोलूं।`
    कविता का हर बंद प्रशंसनीय है !
    -ज्ञानचंद मर्मज्ञ

    ReplyDelete
  5. मर्मस्पर्शी खूबसूरत रचना -
    शुभकामनाएं

    ReplyDelete
  6. आंखों के कोने पर लटका एक आंसू
    आज क्यों बाढ़-सा बहने को बेताब है?
    क्या उलझन है जो मन में
    एक गांठ-सी बनी बैठी है
    किसे झकझोरूं, किसको खोलूं।

    मर्मस्पर्शी एवं खूबसूरत अभिव्यक्ति. आभार.
    सादर
    डोरोथी.

    ReplyDelete
  7. रश्मि दीदी .
    प्रणाम !
    किसी भी रचनाकार को बेहद सुंदर तरीके से प्रस्तुत करती है ,इस के लिए आप का आभार , आप के प्रस्तुतिकरण से रचना और सुंदर हो जाती है ,
    साधुवाद !

    ReplyDelete
  8. बहुत ही भावभीनी अभिव्यक्ति।

    ReplyDelete
  9. अणु जी ! आसमान का कोई कोना अपना सा न लगे तो कितना अकेलापन लगता है ..... अनुभूति को शब्दों में बड़ी सफलता से प्रस्तुत किया है. भोजपुरी रचना के प्रतीक्षा रही...जल्दी भेजीं.

    ReplyDelete
  10. सुबह सिरहाने मिला वो ख़्वाब
    कुछ कहता ही नहीं,

    बहुत ही सुन्‍दर भावमय अभिव्यक्ति....आभार.

    ReplyDelete
  11. खिड़की से बाहर आसमां का कोई कोना
    अपना नहीं लगता।


    सभी पंकितयां मन मोह्नेवाली. बेहद गहन भावाभिव्यक्ति!

    ReplyDelete
  12. सुबह सिराहने मिला वो ख्वाब कुछ कहता नहीं , बस साथ साथ चलता है ...
    सुद्नर अभिव्यक्ति !

    ReplyDelete
  13. खिड़की से बाहर आसमां का कोई कोना
    अपना नहीं लगता।
    नीले-नीले बादलों की नाव
    मुझे मंझधार में क्यों छोड़ जाती है
    क्यों सब डूबता उतराता-सा लगता है।

    बहुत सुन्दर पंक्तियाँ ... कविता के भाव गहरे हैं ...

    ReplyDelete
  14. खिड़की से बाहर आसमां का कोई कोना
    अपना नहीं लगता।
    नीले-नीले बादलों की नाव
    मुझे मंझधार में क्यों छोड़ जाती है
    क्यों सब डूबता उतराता-सा लगता है।

    बहुत सुन्दर भावयुक्त पन्तियाँ

    ReplyDelete
  15. अनु जी , ख्वाब तो बेजुबां ही होते हैं ,शायद इसीलिये नामुमकिन के भी ख्वाब हम देख लेते हैं । सुन्दर प्रस्तुति ।

    ReplyDelete
  16. लफ़्ज़ हैं कि तितलियों जैसे फड़फड़ाते हैं,
    थाम भी लूं तो काग़ज़ पर उतरने से डरते हैं।bahut sunder rachna...

    ReplyDelete
  17. bhavpoorn,marnshparsi rachna..
    khwabon ki kalpana aur prastuti sarahniy...

    ReplyDelete
  18. सुन्दर भावपूर्ण प्रस्तुति!

    ReplyDelete

 
Top