दर्द अपने अपने हिस्से का
तुम भी जीते रहे
हम भी जीते रहे
न तुम्हें हमारी उदास आँखें पसंद थीं
ना मुझे
तुम मेरे लिए जीते रहे
हम तुम्हारे लिए जीते रहे
इतनी संजीदगी थी जीने में
कि दर्द भी शर्मिंदा हुआ ...

रश्मि प्रभा




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झूठी हँसी

उसके जख्‍मों पर,

जब भी मैने मरहम लगाया,

इक दर्द

उसके लबो पे उभर आया

घुटनों में

मुंह छिपाकर

वो दर्द को पी लेती थी

आंसुओं को आखों के किनारों से

बहने से पहले

रोक कर खड़ी हो जाती थी

हंसते हुये पूछती,

तुम्‍हें क्‍या हुआ

मुझे देखो

मैं हंस रही हूं

तुम्‍हें हंसाने के लिए

और तुमने मुंह क्‍यों बना रखा है

मुझे झेंपकर

हंसना पड़ता उसका साथ देने के लिए

.........

पर उसे भी पता था

और मुझे भी पता था
हँसी दोनों की झूठी है !

12 comments:

  1. दोनों ही रचना बेहद संजीदगी वाली लगी..
    गहरी और सशक्त..

    आभार

    (ब्लॉग पर "एक लम्हां" पढने ज़रूर आएं)

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  2. ओह! बेहद गहन भावाव्यक्ति .

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  3. दोनो रचनाए दिल में उतरती है। दिल की संवेदनाओ को परिभाषित करती हुई सुन्दर रचना। कभी मेरे ब्लाग पर भी आए।

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  4. वाह दीदी, दोनों रचनाएँ बहुत सुन्दर है ... एक सा भाव लिए हुए भी कितनी अलग है ...

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  5. रश्मि दी, आपका बहुत-बहुत आभार ...वटवृक्ष पर 'झूठी हंसी' को स्‍थान देने का ...।

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  6. .

    @--इतनी संजीदगी थी जीने में
    कि दर्द भी शर्मिंदा हुआ ...

    रश्मि जी ,
    अपने आप में अनोखी प्रस्तुति है ये। दर्द भी शर्मिन्दा हुआ। सर्वथा नयी अभिव्यक्ति। लेकिन संजीदगी से जीना ही तो जीना है।
    आभार।

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    @--पर उसे भी पता था
    और मुझे भी पता था
    हँसी दोनों की झूठी है ...

    सीमा जी ,
    जिंदगी में ऐसे बहुत से अवसर आते हैं हमें झूठी हंसी हंसनी पड़ती है , औरों की खातिर। इस हंसी में एक दर्द भी झिलमिलाता रहता है जिसे वो समझ लेते हैं , जो अपने होते हैं। यथार्थ को चित्रित करती इस उम्दा प्रस्तुति के लिए आभार।

    .

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  7. dono hi rachnayn behatareen hain.....dhanyawaad

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  8. dono hi rachnayn behatareen hain.....dhanyawaad

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  9. दोनों ही कवितायेँ बहुत ही सुन्दर है

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  10. वाह! बेहतरीन सृजन आदरणीया दीदी

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