मेरे महिवाल
तुमने रंगों की गागर भरी थी
मैं चनाब का पानी लेकर क्या करती
तेरे गागर के रंगों से खुद को रंग लिया है
तेरे जीवन के कैनवस पर चित्रित हूँ .....



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तब और अब !!!

तब ...
मैं रात का इंतज़ार करती थी
पूरा दिन बेचैनी में गुज़रता
कोलाहल से परे
रात की नीरवता में
तुम्हारे आने की संभावना लिए
दिल क्या
पूरा वजूद धड़कता था
जागी आँखों में एक सपना उतरता था ...

अब...
वो रात नहीं
अब रात की नीरवता में
दिल अनमना हो उठता है
बेसब्री से इंतज़ार होता है दिन का
शाम तक दुनिया अपनी लगती है ...

यूँ कई बार यह दिन भी
मेरी मुट्ठी से फिसल जाता है
पर उम्मीदें सेकेण्ड की सूई सी
साँसें लेती हैं ...
खुश हूँ
उम्मीदों के पंख लगा
मैं तुमको ही सोचती हूँ
सीढियों के धड़कने का
दरवाजों के कांपने का
इंतज़ार करती हूँ ...

तब और अब में
रात और दिन का फासला तो है
पर रात भी तुम्हारी आहटों से होती थी
दिन भी तुमसे है !!!

रश्मि प्रभा

15 comments:

  1. अब रात की नीरवता में
    दिल अनमना हो उठता है
    बेसब्री से इंतज़ार होता है दिन का
    शाम तक दुनिया अपनी लगती है .
    किसी के के न होने के एहसास् से उपजी सुन्दर कविता। शुभकामनायें।

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  2. aajkal aap manovaigyanik kavita likh rahi hain rashmi ji jo man ko choo jaati hain.. udwelit kar jaati hain... darwajon kaa kaapna achha vimb hai...

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  3. shabdo me dhadkan hai...dhadkte man ki dhadkan bhari rachna

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  4. रात की नीरवता में
    तुम्हारे आने की संभावना लिए
    दिल क्या
    पूरा वजूद धड़कता था
    जागी आँखों में एक सपना उतरता था ...

    Tab uar Ab ... me hi zindagi basar hoti hai... mai aaj bhi sochata hu, kabhi kahtm n ho ye kashmakash... kyuki... mere jeene kaa makasad hi nahi, aadat si ban gai hai ye....
    magar

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  5. बहुत अची कविता रही रश्मि दी !

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  6. सब वक्त वक्त की बात है

    ना तब अपना था ना अब

    आपकी रचनात्मक ,खूबसूरत और भावमयी
    प्रस्तुति कल के चर्चा मंच का आकर्षण बनी है
    कल (25/10/2010) के चर्चा मंच पर अपनी पोस्ट
    देखियेगा और अपने विचारों से चर्चामंच पर आकर
    अवगत कराइयेगा।
    http://charchamanch.blogspot.com

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  7. सब समय के फेर की बात है, उस समय और आज के समय के अनुरुप सारे मूल्य बदल गए . अब प्यार उस परीक्षा से नहीं गुजरता है जिस के लिए उस समयकभी मिलन संभव ही न हुआ.

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  8. ye samay kaa hee fair hai... Tab aur ab jisko ham jeete hai .. aur jiske sang chaltey hai...Kavita bahut bhavnaaon se bhari huvi.. ..sundar

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  9. तब और अब में रात और दिन सा फासला ...
    मगर एहसास तो वही रहे ...!

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  10. tab aur ba ka fasle ko di.....aap hi sanjo sakte ho sabdo me......:)

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  11. वाह...क्या बात कही....

    बहुत ही भावपूर्ण सुन्दर कविता..

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  12. तब और अब में
    रात और दिन का फासला तो
    rat aur din to vahi hai par ehsas badal gaya .shayad vah na aye ya shayad vah kabhi bhi kahi se bhatkata hua aa jaye .intjar hi to jindagi hai

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  13. tab aur ab mein chaahe waqt badle ya haath se fisle sab ko aatmsaat karna hin jivan hai. bahut achhi rachna, shubhkaamnaayen.

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