मन की धाराएँ तटों से टकराकर जब गुमसुम सी लौटती है
तो दिशा बदल क्षितिज के विस्तार में बढ़ने लगती हैं
और धरती से आकाश तक अपनी प्रत्यंचा खींच देती है
रश्मि प्रभा





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किशोर कुमार खोरेंद्र
स्थान -मुंगेली ,सी. के.
शिक्षा -स्नातक
व्यवसाय -स्टेट बैंक से रिटायर अधिकारी
वर्तमान पता -रायपुर ,छत्तीसगढ़
रुचि -पढ़ना ,लिखना ,घूमना ,साहित्यकारों से मिलना
मेरे बारे में -में मूल्त: एक कवि हूँ ....पहले बहुत पढ़ता था ..अब लिखता हूँ
गाँव में रहने के कारण ..तालाब ,खेत ,वृक्ष , मेरी कविताओं में आ ही जाते है
मेरे लिए कभी नारी ..प्रकृति बन जाती है
और कभी प्रकृति की सुंदरता ..अप्सरा बन जाती है
लेकिन प्रेम ..सौंदर्य ..की इस दुनिया के इस पार का ...यह वास्तविक जगत्
भी मेरे काव्य का विषय है ..जो प्रतीकों के माध्यम से उजागर होता ही रहता है
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ओस की बूंदों .....!

चुपचाप हैं कोलाहल
भयभीत सा लगता हैं मुझे
शंख नाद का आव्हान

न कोई प्रहार
न कोई प्रतिकार

मौन व्रत में
अहिंसा
इसलिए तांडव नृत्य कर रहीं हैं
हींसा
अभिव्यक्ती की स्वतंत्राओं ने
कांच के टुकड़ों की बूंदों से
किया हैं -प्रजातंत्र के
पवित्र सरोवर का निर्माण

इसलिए
विवाद के रक्त से भींगा हुआ हैं
हर घायल तीर्थ का .......
महा -स्नान

अव्यस्थित हैं .......
जनसख्या के विष्फोट के कारण ..
सुव्यवस्थता
भग्न मन्दिर के अवशेष कहते हैं ....
जन जन के हुए बिना उद्धार
सत्य ...!
तुझे कभी नहीं मिल पायेगा निर्वाण

अज्ञान के फूटपाथ के अंधेरों में
आसमान कों
फटी हुई कथरी सा -
ओढ़कर
ठिठुरता हुआ .......
अचेतना के संग
गहरी नींद में
में पडा हैं बेसुध ........ज्ञान

वाह कितने सुन्दर लगते हैं
पेंटिंग्स में ..चलचित्र में ...
भूख के हिमालय में ..आच्छादित बर्फ
और
प्यास की गंगा के बाढ़ से पीड़ित जल कणों
से
भींग कर बने कुहासे का
प्रथानाओं के पूर्व ही सुबह सुबह
छट जाने का-
एक प्राचीन कालीन अहसास

क्या यही हैं हमारी मुक्ती के
चिरंतन खंडित -अतिसूक्ष्म काल

ओस की बूंदों .....!
अमृत बन कर
हृदय कमल की बंद पंखुरियों
की पलकों कों छीटों से .....
जगाओ -बहुत खूबसूरत लगेगा तब

जागृत -सुप्रभात
() किशोर कुमार खोरेंद्र

10 comments:

  1. मौन व्रत में
    अहिंसा
    इसलिए तांडव नृत्य कर रहीं हैं
    हींसा
    अभिव्यक्ती की स्वतंत्राओं ने
    कांच के टुकड़ों की बूंदों से
    किया हैं -प्रजातंत्र के
    पवित्र सरोवर का निर्माण

    Ek navin parikalpna ke saath vichaarniy rachna. Thanks for great poetry.

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  2. ओस की बूंदों .....!
    अमृत बन कर
    हृदय कमल की बंद पंखुरियों
    की पलकों कों छीटों से .....
    जगाओ -बहुत खूबसूरत लगेगा तब...

    भाव से भरी कविता.. सुंदर

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  3. बहुत सुन्दर भाव और अभिव्यक्ति के साथ आपने शानदार रचना लिखा है जो काबिले तारीफ़ है! बधाई!

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  4. बहुत सुन्दर भाव...बधाई.

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  5. सुन्दर भाव् और सुन्दर तरीके से बयाँ हुवे..

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  6. phir se padhi apki ye kavita

    achchha laga

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  7. kishor ji ki rachnaaon mein gahan bhaav aur vistrit sansaar ki adbhut sammilit abhivyakti hoti hai, jise padhkar sadaiv abhibhoot ho jati hun.
    shubhkaamnaayen.

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  8. किशोर जी ,
    जब तक आत्मा जागृत नहीं होती तब तक कोई सुप्रभात नहीं होता....बेहतरीन अभिव्यक्ति....बधाई...

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