छन न न से गिरा मन-सपनों की घाटी में,
बटोर लाया सपने
कुछ खट्टे,कुछ मीठे,
पारले की गोलियों जैसे...........
अपनी टोली बुलाई-
और सपने बांटने लगा.......
माँ सिखाती रही है,
मिलजुल बाँट के चलना,
कम होंगे
तो सपनों की घाटी है न !
छ न न से गिर जायेगा मन
बटोर लाएगा सपने
खट्टे-मीठे -
पारले जैसी !
रश्मि प्रभा


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मेरा परिचय
अदब और तहज़ीब के नवाबी नगर लखनऊ की रहने वाली एक आम सी लड़की हूँ... पेशे से एक सॉफ्टवेर इंजीनियर हूँ और लखनऊ में ही कार्यरत हूँ... शौक़ के नाम पर जो थोड़ा बहुत समय ख़ुद को दे पाती हूँ वो पेंटिंग, गार्डनिंग, रीडिंग, ट्रैवलिंग और म्यूज़िक सुनने में जाता है... हाँ एक काम और करती हूँ... सपने ढेर सारे देखती हूँ :)

लिखना कभी भी आदतों में शुमार ना था... हाँ अच्छा पढ़ना हमेशा से अच्छा लगता था... गुलज़ार, फैज़, निदा फाज़ली उन चंद शायरों में से हैं जो दिल के बेहद क़रीब हैं... पढ़ने की ये आदत ब्लॉग जगत तक खींच लायी और फिर सोचा इन तमाम नामी गिरामी हस्तियों की रचनायें जो हमें पसंद हैं आप सब के साथ भी बाँट लूँ और जन्म हुआ हमारे ब्लॉग का "लम्हों के झरोखे से..."

ख़यालों और ख़्वाबों की दुनिया में विचरना शुरू से ही अच्छा लगता है... कब आप सब ब्लॉगर साथियों से प्रेरित हो कर ये ख़्वाब और ख़याल लेखनी के ज़रिये ब्लॉग के पन्नों पर उतरने लगे पता ही नहीं चला... और अब तो जब कब ये ख़याल खींच लाते हैं इन पन्नों तक... और आपकी हौसला अफज़ाई हिम्मत देती है यूँ ही आगे बढ़ते रहने की...

बाक़ी इतना ही कहना चाहूँगी कि -
"हो कर मेरी सरहदों में शामिल, आप ही जान लो मुझे,
किसी और तरह आपको ख़ुद से मिलवाऊं कैसे"
( पता नहीं किस अनजान शायर ने लिखा है पर दिल के बेहद क़रीब है )
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इमेजिज़
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कितना कुछ चलता रहता है हमारे आस-पास... हर वक़्त... कितनी ही इमेजिज़ बदलती रहती हैं हर पल ज़िन्दगी के पन्नों पर... इक पल बेहद चमकीला... जैसे आफ़ताब उतार आया हो कहीं से... और इक पल थोड़ा मद्धम... जैसे मुश्किलों के बादलों ने चाँदनी को अपनी आग़ोश में ले लिया हो... पर कौन थाम पाया है वक़्त की नब्ज़... कौन रोक पाया है इन गुज़रते लम्हों को... अच्छे-बुरे... रौशन-मद्धम... जैसे भी हों... बीत ही जाते हैं... हम तो बस इनके साथ बहते रहते हैं... इनकी ही रौ में... उन्हें थामना हमारे बस में नहीं... बस देखते रहते हैं बीतते हुए... उन खुशियों को... उन ग़मों को... उन पलों को...

और जब थाम नहीं सकते उन्हें तो आइये जी ही लेते हैं... जी भर के... बह लेते हैं कुछ दूर उनके साथ... बिना किसी शिकायत... बिना किसी अफ़सोस... और "फ्रीज़" कर लेते हैं उन्हें यादों के सफ़्हों में... पेंट कर लेते हैं उन्हें ज़हन के कैन्वस पर... कल जब फ़ुर्सत के पलों में कभी यादों की गैलरी में एग्ज़ीबिशन लगायेंगे तो ये तमाम पल हमारी ज़िन्दगी के गवाह होंगे... उस सफ़र के गवाह होंगे जो हमने बस "यूँ ही" तय नहीं किया, तय करने के लिये... उस सफ़र का लुत्फ़ उठाया... उसे जिया... और संजोया... यादों में... हर पल...

ऐसे ही कुछ मुख्तलिफ़ से लम्हों की इमेजिज़ सजायीं हैं आज यहाँ... ज़िन्दगी की किताब से उतार कर ब्लॉग के सफ़्हे पर... उम्मीद है पसंद आयेंगे शब्दों में पिरोये ये चंद लम्हे...

कल ऑफिस से वापस आते वक़्त देखा था
सूरज ने नदी में कूद के ख़ुदकुशी कर ली
कुछ देर बाद वहीं से
इक सफ़ेद सा साया उभरा
ज़रूर उसका भूत होगा
लोग कहते हैं "चाँद" निकला है !!!

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अपने हाथों की लकीरों को देखती हूँ
और सोचती हूँ
जो तुम मिल नहीं सकते
तो तुम मिले ही क्यूँ
जो मिले हो तो फिर
मिलते क्यूँ नहीं....

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जवाब जानती हूँ
फिर भी ना जाने क्यूँ
कुछ सवाल हैं
जो तुमसे पूछने को जी चाहता है
जवाब की दरकार भी नहीं है
बस तुम्हारे चेहरे के बदलते रंगों
को पढ़ना चाहती हूँ...

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एक तन्हां सा सूरज कल शब
यूँ पेड़ पर ठुड्डी टिका के बैठा था
के जैसे एक शरारती बच्चा
माँ से डांट खा कर
आँखों में आँसू भरे
मुँह फुलाए बैठा हो...

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फैला के बाहों का दायरा
आग़ोश में लिया कुछ लम्हों को
और ओक में भर के कुछ पल
यूँ घूँट-घूँट ज़िन्दगी पी आज
कि आत्मा कुछ ऐसे तृप्त हुई
मानो अमृत चख लिया...
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वक़्त की कतरनें ...
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ये जो रंग बिरंगी कतरने हैं ना
तुम्हारे साथ बिताये वक़्त की
जी चाहता है इन कतरनों को जोड़
एक मुकम्मल उम्र सी लूँ
एक ख़ूबसूरत ज़िन्दगी बना लूँ

एक लम्बा सा दिन सियूँ
तुम्हारे साथ का
और एक लम्बी सी रात
हाँ कुछ सुस्त से लम्हों को चुन
एक फ़ुर्सत भरी दोपहर भी

वो कुछ पल कि जिनमे तुम
सिर्फ़ मेरे पास होते हो
दिल और दिमाग से
उन चमकीले पलों को जोड़
एक शबनमी शाम भी सी लूँ

सोचो गर ऐसा कर पाऊँ
ये ज़िन्दगी कितनी ख़ूबसूरत हो जाये
हर एक पल में तुम्हारा साथ पा के
और मैं इस ख़ूबसूरत उम्र को पहन
इतराती फिरूँ इस दुनियाँ में...

-- ऋचा

16 comments:

  1. गज़ब का लेखन है……………हर रचना दिल मे उतर गयी…………बहुत बहुत बधाई।

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  2. बहुत ही सुन्‍दर शब्‍द, बेहतरीन अभिव्‍यक्ति ।

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  3. सूरज का डूबकर भूत बन जाना , फिर चाँद बन कर निकालना ...इस तरह पहले कभी सोचा नहीं था ..अनूठी सोच ..
    बहुत सुन्दर ..!

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  4. ये जो रंग बिरंगी कतरने हैं ना
    तुम्हारे साथ बिताये वक़्त की
    जी चाहता है इन कतरनों को जोड़
    एक मुकम्मल उम्र सी लूँ
    एक ख़ूबसूरत ज़िन्दगी बना लूँ...
    बहुत भवुक कर देने वाली रचना.. उम्दा..

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  5. kammal likha he richa ji, each and every line, linedup here by you, just amazing, you r a versatile writer ,

    god bless you, i really enjoyed, the way u composed. keep it up

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  6. बेहतरीन अभिव्‍यक्ति,बहुत बहुत बधाई।

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  7. सुन्दर रचना, बेहतर प्रस्तुति !

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  8. रचना किसी को भी बरबस आकर्षित करने में समर्थ, पूर्णत: भावपूर्ण है यह अभिव्यक्ति !

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  9. इस प्रोत्साहन के लिये और हमारी इन रचनाओं को पसंद करने के लिये आप सभी का तह-ए-दिल से शुक्रिया !!!
    और एक ख़ास शुक्रिया रश्मि जी को जिन्होंने ना सिर्फ़ इस वटवृक्ष के तले हमें छाया दी बल्कि मीठा- मीठा पारले की गोलियों जैसा प्यार भरा आशीर्वाद भी दिया :)

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  10. पढ़ना भी एक कला है और उसको किस ढंग से आत्मसात कर लिया. पढ़ने वाला कलम और कागजों पर खुद बा खुद खेलने लगता है और फिर वह शब्दों और भावों में इतना उतर चुका होता है कि उसकी कलम निर्बाध चलती चली जाती है और रच जाती है कुछ ऐसा जो दूसरों के दिल में उतरता चला जाय.

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  11. अपने हाथों की लकीरों को देखती हूँ
    और सोचती हूँ
    जो तुम मिल नहीं सकते
    तो तुम मिले ही क्यूँ
    जो मिले हो तो फिर
    मिलते क्यूँ नहीं....
    हर रचना कमाल की लगी बहुत अच्छा लेखन है...बधाई

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  12. सशक्त लेखन के लिए बधाई
    आशा

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