कोई भी खेल व्यर्थ नहीं खेले जाते , लेकिन बचपन की मासूमियत में हम कहाँ जान पाते हैं - किस मोड़ पर सांप आएगा,
किस मोड़ पर सीढ़ी - पूरी ज़िन्दगी का अधिकांश लम्हां ९९ की डंक से गर छटपटाता है, तो हर शुरुआत क़दमों को मजबूती
भी देती है ............ यूँ हीं ... बस यूँ हीं ज़िन्दगी तमाम होती है !

रश्मि प्रभा




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सांप सीढ़ी ....

बचपन में खेल कर
सांप - सीढ़ी का खेल
सीख लिया था
ज़िंदगी का फलसफा .

खाने - दर - खाने
चलते हुए मानो
बस ज़िंदगी
चलती सी ही है .

और जब आ जाती है
सीढ़ी कोई तो
समझो ज़िंदगी में
कोई खुशी हासिल हुई

इन खुशियों के बीच
जब डंस लेता था सांप
तो प्रतीक था
ज़िंदगी में कष्ट आने का .

निन्यानवे पर होता था
सबसे बड़ा सांप
जो इंगित करता था
कि मंजिल पाने से पहले
करनी होती है
सबसे बड़ी बाधा पार .

गर नहीं कर पाए
निन्यानवे को पार
तो वो पहुंचा देता था
दस के आंकड़े पर .

फिर से
सारी बाधाओं को पार कर
खुशियों की सीढ़ी लांघते हुए
कवायद करनी होती थी
मंजिल पाने की .

और
बार- बार की कोशिशें
करा ही देती थीं
वो सौ का आंकड़ा पार ..
इस तरह
खेल - खेल में ही
सीख लिया मैंने
ज़िंदगी का व्यापार .
.............

संगीता स्वरुप

13 comments:

  1. सुन्दर और सार्थक अभिव्यक्ति !

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  2. well said Sangeeta di

    jivan aisa hi he, kabhi dhhop kabhi chanv

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  3. सुन्दर और सार्थक अभिव्यक्ति !

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  4. सुन्दर अभिव्यक्ति, जीवन को सांप सीढ़ी के खेल के दर्शन में ढालकर लिखी गयी अद्भुत रचना

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  5. ये जीवन है सांप सीढी का खेल ...हम्म ...सही बात ...

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  6. बहुत ही सरल शब्दों में
    बचपन के खेल से आपने कितनी बड़ी बात कर ली
    सच है की हम सीढियाँ ही चाहते
    जबकि गौर तलब बात ये है की
    'सिखने' वाली सारी बातें हमने साँपों से सीखी हैं

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  7. बहुत ही सरल शब्दों में
    बचपन के खेल से आपने कितनी बड़ी बात कर ली
    सच है की हम सीढियाँ ही चाहते
    जबकि गौर तलब बात ये है की
    'सिखने' वाली सारी बातें हमने साँपों से सीखी हैं

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  8. खेल जिन्दगी के बहुत से फलसफे सिखा देते हैं

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  9. जिंदगी को जीने का हुनर जिसे आ गया वह सांप सीढ़ी के खेल में महारत हासिल कर लेता है, बहुत अच्छी रचना, आभार !

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  10. बहुत हीं सुन्दर अभिव्यक्ति के लिए संगीता जी को बधाईयाँ !

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  11. बार- बार की कोशिशें
    करा ही देती थीं
    वो सौ का आंकड़ा पार ..
    इस तरह
    खेल - खेल में ही
    सीख लिया मैंने
    ज़िंदगी का व्यापार .
    jivan ka ganit sikh liya hamne is rachna se, aur ye kitna bada sach hai ki bas ab manzil aane ko hai ki sab kuchh dhwast, jaise ki 99 ke baad sidhe 10 par pahuncha deta saanp.
    bahut achhi aur sochne ko prerit karti rachna, badhai sangeeta ji.

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  12. बार- बार की कोशिशें
    करा ही देती थीं
    वो सौ का आंकड़ा पार ..
    इस तरह
    खेल - खेल में ही
    सीख लिया मैंने
    ज़िंदगी का व्यापार

    sundar sikh deti rachna.

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